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गोरखा रेजीमेंट की नर्सरी से थर्रा गया जर्रा-जर्रा

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विवेक त्रिपाठी

लखनऊ। जूतों की टापों ने पूरे शरीर में जोश का रोमांच भर दिया। जमीन का जर्रा-जर्रा थर्रा गया। यह कोई गणतंत्र की परेड का नहीं, यह नजारा था भारतीय सेना 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की नर्सरी का। जो मध्य कमान में तैयार होकर आगे अपने साहस से पूरे देश की सुरक्षा अपने कंधों पर लेने वाले हैं।

मध्य कमान की ओर से मीडिया इंट्रैक्शन कैप्सूल का आयेाजन किया गया, जहां सेना की गतिविधियों और सैनिकों की स्पेशल ट्रेनिंग से मीडिया को रूबरू कराया गया। इस मौके पर सेना के अत्याधुनिक हथियारों के साथ ही राडार संचार प्रणाली व सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले अन्य उपकरण भी प्रदर्शित किए गए। मशीनगन, तोप, रॉकेट लांचर, छोटे हथियारों के साथ ही राडार संचार प्रणाली भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बनी। अत्याधुनिक हथियारों को करीब से देखने का मौका मिला।

इस दौरान अधिकारियों ने शस्त्रों की मारक क्षमता और खूबियों की जानकारी भी दी। सेना और आतंकियों के बीच किसी संस्थान में प्लान बना रहे आतंकियों के मुठभेड़ का डेमो दिखाया गया। सूचना मिली कुछ एक दुकान या बैंक में घुसने का प्लान बना रहे हैं। पांच मिनट बाद सैन्य टुकड़ी को ऑपरेशन के आदेश दिए गए। जवानों ने चारों तरफ से उस स्थान को घेर लिया, जहां आतंकी छिपे थे और कुछ ही देर में उन्हें मार गिराया। यह दृश्य हमेशा की तरह हमारे वीर जवानों ने ऑपरेशन सफलता के परचम फहराने का अहसास करा रहा था।

मीडिया सेना के लिए महत्वपूर्ण हथियार
सेना और मीडिया के आपसी तालमेल को और बेहतर करने के लिए आयोजित मीडिया इन्ट्रैक्शन कैप्सूल कार्यक्रम के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल, चीफ ऑफ स्टाफ हेडक्वार्टर सेन्ट्रल कमांड लेफ्टिनेंट जनरल जेके शर्मा ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मीडिया सेना के लिए महत्वपूर्ण हथियार है। मीडिया के बिना कोई काम नहीं चलता है। मीडिया के माध्यम से ही आम जनता तक हम अपनी बात पहुंचा सकते हैं।

उन्होंने 1971 में  भारत-बांग्लादेश के बीच हुए युद्ध में मीडिया की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया ने ही सेना की हौसलाअफजाई करते हुए उनकी संख्या ज्यादा दिखाकर दुश्मन को वैसे ही डरा दिया। दुश्मन कोई तैयारी कर पाता, इससे पहले ही कम सेना के बावजूद भारतीय सेना ने अटैक किया और विजयश्री हासिल की। इसी तरह 1999 के कारगिल युद्ध में सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हर कदम पर मीडिया सेना के साथ खड़ी रहती है। यह काबिलेतारीफ है। कभी-कभी कुछ जगह पर मीडिया का रोल थोड़ा अलग हो जाता है। इसका उदाहरण मुंबई में ताज होटल के अंदर हुई घुसपैठ का प्रसारण दिखाना शामिल है। इससे पाकिस्तान में बैठे लोग लगातार अपने लोगों को निर्देशित करते रहे, जिससे हमारे कमांडो को ऑपरेशन में ज्यादा वक्त लग गया।

उन्होंने कहा कि मीडिया और सेना के बीच समय-समय पर इन्ट्रैक्शन होते रहना चाहिए। इसमें अंतर नहीं होना चाहिए। मीडिया और सेना में भरोसे की कमी पर सेवानिवृत्त मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ ने कहा कि सेना में नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद 2015 से मीडिया से हमारा तालमेल शुरू हुआ। उन्होंने माना कि मीडिया और सेना के बीच गैपिंग है। मीडिया और आर्मी में भरोसे की कमी है। मीडिया और यूनिफॉर्म का गैप दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि हर चीज का कहीं तो दायरा होना चाहिए। कहीं तो लकीर होनी चाहिए। रिटायर्ड मेजर जनरल ने कहा कि बिना तथ्यों के कोई खबर न प्रकाशित की जाए और न ही टेलीविजन पर डिबेट की जाए। वजह यह है कि सेना का गलत संदेश आम जनता पर बहुत प्रभाव डालता है। ऐसे में तथ्यों के साथ ही रिपोर्टिंग हो तो बेहतर होता है। सेना हमेशा जनता की रक्षा के लिए है और सेना को भी यह उम्मीद रहती है कि मीडिया हर कदम उसके साथ है।

ब्रह्मास्त्र का काम करती हैं देश की सशस्त्र सेनाएं
रिटायर्ड मेजर जनरल संजय सरन ने कहा कि मीडिया से वैसे कोई खास ताल्लुक नहीं रहा है, लेकिन इंटरनेशनल मीडिया में कुछ हद तक मेरा ताल्लुक है। उन्होंने कहा कि सशस्त्र सेनाएं किसी भी देश का ब्रह्मास्त्र होती हैं, अगर वह फेल होती हैं तो सब कुछ फेल हो जाता है। उन्होंने मीडिया से अपील की कि जब फैक्ट क्लियर हों तभी कोई न्यूज प्रिंट हो नहीं तो सेना बहुत हर्ट होती है।

उन्होंने कहा कि सेना पर्सनलाइज्ड सिस्टम पर काम नहीं करती, बल्कि इंस्टिट्यूशनलाइज्ड सिस्टम पर काम करती है। यह ब्रिटिश की बड़ी देन है। उन्होंने सेना और मीडिया के आपसी गैप को खत्म करने की बात पर बल दिया और कहा कि यह दोनों के लिए ही फायदेमंद होगा। इस मौके पर लखनऊ रक्षा जनसंपर्क अधिकारी गर्गी मालिक सिन्हा, डीपीआर पीआरओ अभिजीत मित्रा ने भी अपने विचार रखे।

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