आप सादर आमंत्रित...हैं क्या?

Webdunia
स्वाति शैवा ल
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अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की बहुचर्चित डिनर पार्टी को और भी चर्चित कर गया बिन बुलाए मेहमानों का सार्वजनिकीकरण! सारे मीडिया को एक और मुद्दा मिला... कुछ दिनों तक चुभलाने के लिए और सवाल भी उठे सर्वोच्च राष्ट्र के, सर्वोच्च पद के आसपास की सर्वोच्च सुरक्षा व्यवस्था को लेकर। इस वाकये ने ओबामा दंपति को कितना प्रभावित किया और उक्त हाईप्रोफाइल डिनर में बिन बुलाए मेहमान तारिक और मिशेल सलाही सहित मीडिया भी इस वाकये को कितने दिन भुनाएगा ये एक अलग मामला है... लेकिन इस मुद्दे ने भारतीय दावतों की याद ताजा कर डाली।

हमारे यहाँ अक्सर विवाह समारोहों में ऐसे किस्से उपस्थित हो जाते हैं और ज्यादातर इनके पीछे मुफ्त का माल उड़ाने की ही मंशा होती है। चाहे वह फिर भूखे पेट की लालसा हो या फिर केवल चटोरी जबान की। एक विवाह समारोह और ढेर सारे आमंत्रित मेहमान... भीड़ में घूमते कुछ चेहरे ऐसे भी जो लड़की वालों के सामने खुद को लड़के की फलाँ बुआ के, बेटे के साले के बहनोई के मामा का बेटा बताते हैं और लड़के वालों के सामने खुद को लड़की के भाई का दोस्त या सहेली बनाकर पेश कर देते हैं... वे खुशकिस्मत हुए तो उनके जाने के बाद उनके राज खुलते हैं और न हुए तो दो बातें हो जाती हैं। या तो आयोजक उन पर हाथ साफ कर लेते हैं या फिर हँसकर उन्हें खा-पीकर खिसकने को कह देते हैं।

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वैसे भारतीय परंपरा में दोनों ही व्यवस्थाएँ पूरी गहरी भावना के साथ सम्मिलित हैं। ऐसे बिन बुलाए अतिथि केवल मनोरंजन के लिए भी आ सकते हैं और किसी बड़े हाथ मारने के इरादे से भी। होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे छात्रों से आपको ऐसे मजेदार किस्से सुनने को मिलेंगे जब महीने के आखिरी दिनों में घर से भेजा हुआ पैसा खत्म हुआ और भूख से कुलबुलाते पेट के साथ उन्होंने किसी शादी की पार्टी में धावा बोल दिया। कुछ लोग पूरे आत्मविश्वास के साथ खाली हाथ जाकर भी व्यंजनों का लुत्फ उठा लेते और कुछ होशियार बंदे दो खाली लिफाफे जेब में रख ले जाते।

कुछ भी हो पर भारत में आज भी बुझे चूल्हे के साथ बैठे पड़ोसी को भरपेट खिलाने और घर आए को भूखा न विदा करने की परंपरा जीवित है। इसलिए अधिकांशतः शादियों में भी ऐसे आमंत्रितों का पता चलने पर, ज्यादा तूल न देकर कुछ खिला-पिलाकर, चुपचाप भगा दिया जाता है। सुरक्षा व्यवस्था को छोड़ दें तो श्री ओबामा का भी क्या गया। जहाँ करोड़ खर्च हुए वहाँ दो प्लेट की औकात ही क्या... फिर उन दोनों बापड़ों ने तो खाना भी 'नी' खाया। भारत में बढ़ती प्रति प्लेट दावत की दर और मशीनीकरण का इस पर प्रभाव न पड़े यही दुआ है। तब तक हजारों की भीड़ में अगर दो भूखे पेट भर भी लें तो क्या!

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