गणेशोत्सव के ओवर डोज़ से व्यथित हूँ मैं

Webdunia
मंगलवार, 9 सितम्बर 2014 (14:00 IST)
- सांईराम दवे
 
हे मेरे प्रिय गणपति प्रेमी भक्तों ! मैं आज वॉट्सएप पर एक मैसेज करने जा रहा हूँ। कोई उसे आप तक पहुँचा देगा, ऐसी आशा रखता हूँ। आप गणेश उत्सव मनाते हो, उससे यूँ तो मैं बहुत खुश हूँ लेकिन पिछले 10 सालों से गणेशोत्सव का जो ओवर डोज़ हो रहा है, उसने मुझे बहुत व्यथित किया है। इसीलिए मुझे ये संदेश देने की प्रेरणा हुई। आपको याद तो होगा ही, 14वीं सदी में संत मोरया गोसावी ने पुणे के नज़दीक मोरगांव में 'मौर्येश्वर' नाम से मेरा प्रथम मंदिर बनवाया। बस, तभी से लोगों ने 'गणपति बप्पा मोर्य' के बदले 'मोरया' बोलना शुरु किया। आप भूल गए कि मुगलों के सामने हिन्दु भाइयों को एकत्र करने के लिए 1749 में शिवाजी महाराज ने अपने कुल देवता के रूप में मुझे स्थापित कर मेरी पूजा शुरु करवाई। आपको यह भी याद ही होगा कि 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने मुंबई के गिरगांव में सार्वजनिक गणेशोत्सव से अंगरेजों के सामने भारत को संगठित करने के लिए इस उत्सव को गरिमा प्रदान की। इसी तरह पुणे में दगडु सेठ ने अपने घर में मेरी स्थापना करवाई, तभी से लोग मुझे दगडु सेठ भी कहने लगे।
 

 
तिलकजी ने मेरे इस उत्सव से भारत को एक करते हुए जागृत करने का श्रीगणेश किया था, पर आप लोगों ने तो मेरा तमाशा ही बना दिया। अरे यार, मुझे गली-गली में बैठा देते हो। आपकी श्रद्धा को तो मैं वंदन करता हूँ किंतु यह सब सिर्फ एक-दूसरे को दिखाने के लिए, स्पर्धा करने के लिए ? आप लोग तो मेरे नाम से 'शक्ति प्रदर्शन' करने लगे। इस उत्सव से भारत का भला हो सकता था, इसलिए आज तक मेरी भी रजा इस उत्सव के साथ थी, ना कि गणेशोत्सव सोसायटी के डेकोरेशन या भोज की स्पर्धा के लिए। कुर्सी के सिवा जिनका कोई देवता नहीं है, वो लोग मेरा ये उत्सव क्यूँ मना रहे हैं ? आए एम हर्ट, प्लीज़, मेरे प्रिय भक्तों, मुझसे संपत्ति का यह व्यय देखा नहीं जाता।
 
पूरे देश में गणेशोत्सव के दौरान अगरबत्ती की दुकान पर लाइन, मिठाई की दुकान पर लाइन, फूलवालों के यहां लाइन। अरे यार ! इन सबकी क्या ज़रूरत है ? गणेशोत्सव के बहाने मार्केट की डिमांड को पूरा करने के लिए हलवाई और दूधवाले नकली दूध या मावे से मिठाई बनाकर पब्लिक को चूना लगा रहे हैं और यही पब्लिक नकली दूध-मावे से बनी चीज़ें मुझे टिका देती है। अब मुझे वो डुप्लिकेट लड्डू खाकर किसको आशीर्वाद देना है और किसको श्राप, आप ही बताओ ?
 
श्रद्धा के इस अतिरेक से मैं फ्रस्ट्रेट हो चुका हूँ। एक गाँव या शहर में 50 या 100 गणेशोत्सव के आयोजन होते हैं। इसके बजाए क्यूँ न पूरा गाँव या शहर मिलकर एक ही जगह कार्यक्रम रखे, तब कहीं जाकर संत मोर्य गोसावी, बाल गंगाधर तिलक या दगडु सेठ और शिवाजी महाराज की आत्मा प्रसन्न होगी। और तो और वहाँ भी डिस्को या फिल्म की पार्टी नहीं, राष्ट्रभक्ति और संस्कृति का गान तो तभी हर्षित हो सकूँगा मैं।
 
प्रिय गणेश भक्तों ! दु:खी मत होना, पर मैं आपका एंटरटेनमेंट नहीं हूँ, मैं आपके हर एक शुभ कार्य की शुरुआत का निमित्त हूँ और आपने तो मेरे नाम के उत्सव से मुझे ही विमुख कर दिया। मैंने बड़ा पेट रखा, ताकि मैं अपने हर भक्त की बात और उनके सुख-दु:ख हजम कर सकूँ, पर आपने मेरे मोटे पेट का कारण भूख समझकर मझे ढेरों लड्डुओं का भोग लगाना शुरु कर दिया। मैं अपने प्रत्येक भक्त की छोटी से छोटी बात भी सुन सकूँ इसलिए मैंने कान बड़े रखे, पर आप लोगों ने तो 40 हजार वॉट का डीजे सिस्टम लगाकर मेरे कान पका दिए। मैं छोटे से छोटे भ्रष्टाचार और अनिष्ट को देख सकूँ, इसलिए मैंने छोटी आँखें रखीं, पर आप तो भ्रष्टाचारी से ही चंदा लेकर, उसी से मेरी आरती उतरवाते हो।
 
नवरात्रि को तो आपने पश्चिमी रंग में रंग ही दिया, अब कृपा करके गणेशोत्सव को डाँस या डिस्को पार्टी न बनाएं, तो ही अच्छा होगा। माताजी ने तो तुम्हें माफ कर दिया होगा, पर मुझे गुस्सा आएगा, तो मैं अपनी सूंड से आप सबको एक साथ धूमिल कर दूँगा, 'इट्स अ वॉर्निंग'। कुछ तो सोचो, पेटभर दारू पीकर मेरी यात्रा में डिस्को करते हुए आपको शर्म नहीं आती ?
 
करोड़ों रुपए में मेरे आभूषणों की नीलामी करने से क्या मैं प्रसन्न हो जाऊँगा ? क्या मैं चाटूकारिता पसंद करता हूँ, जो लाखों की भीड़ देखकर गदगद हो जाऊँगा ? अरे, चाहे मेरी शरण में एक लाख भक्त न आएँ, पर एक सच्चा भक्त भी अगर दिल में सच्ची श्रद्धा लिए आएगा, तब भी मैं राजी हो जाऊँगा। अन्न का अतिव्यय करते हुए लड्डू के ढेर मेरे सामने करने से तो अच्छा है कि आप वो लड्डू झोपड़पट्टी के भूखे बच्चों में बाँट दें, वो लड्डू खुदबखुद मुझ तक पहुँच जाएंगे। मेरे नाम से दिखावा ज़रा कम करो। प्रिय भक्तों, जिस समंदर ने आपको अनेक औषधियां और संपत्ति दी है, उसी में मुझे विसर्जित करके पर्यावरण का सत्यानाश करते समय क्या तुम्हें ज़रा भी हिचक नहीं होती ? 'इको फ्रेंडली' गणेश बनाने में क्या परेशानी है ? मेरे विसर्जन पर किसी ग़रीब के झोपड़े में उजाला हो, क्या कुछ ऐसा संकल्प नहीं ले सकते ?
 
इस गणेशोत्सव पर मेरी एक आखरी बात मानोगे ? मेरे नाम पर दान करने के लिए आपने जो राशि तय की है, उसके एक छोटे-से हिस्से से एक ग़रीब लड़के या लड़की की स्कूल की फीस भर दोगे, तो भी मेरा दिल खुशी से फूला नहीं समाएगा। इस संपत्ति का विवेक के साथ उपयोग करो। भारत में जन्मा हर एक नागरिक इस गणेशोत्सव पर भारत के प्रति वफादार रहने की सौगंध ले और भारत का हर एक युवा तंबाखू, गुटखा, दारू और जुए से बाहर निकलने की कसम खाए। साथ ही अगर हर बेटी, फैशन के सफोगेशन में से बाहर आने की प्रतिज्ञा लेगी, तभी मैं अगले साल आऊँगा। बाकी मेरे नाम पर गुटबाजी और देवी-देवताओं को इमोश्नली ब्लैकमेल करना बंद करो।
 
शायद आखरी बार भारत आया हुआ...
सिर्फ आपका- गणेश
पता- C/o 'महादेव', कैलाश पर्वत, स्वर्गलोक के पास।

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