तीसरा कौन?

व्यंग्य

Webdunia
रमेशचन्द्र शर्मा
ND
सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर दूँ कि 'तीसरा कौन' न तो कोई जासूसी उपन्यास है और न ही रहस्य, रोमांच से भरपूर रोंगटे खड़े कर देने वाली कोई मुंबइया फिल्म।

' तीसरा' वह भ्रष्ट व्यक्ति है जो हर दो भारतीयों के बाद होता है। यह न तो मेरी मान्यता है न ही किसी अंक ज्योतिषी का दावा। यह तो उस सर्वे का निष्कर्ष है जो भ्रष्ट व्यक्तियों की खोज को लेकर किया गया। सबसे शर्मनाक और चुल्लूभर पानी में डूब मरने वाली बात यह है कि हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट होने के बाद भी भ्रष्ट देशों की प्रावीण्य सूची में हमारा 84वाँ नंबर लगा। ऐसा हमारे साथ ही क्यों होता है कि जहाँ भी हम विश्व गुरु होने की उम्मीद पालते हैं, वहीं फिसड्डी हो जाते हैं? भ्रष्ट देशों की सूची में भी यही हुआ। मेरी तो विनम्र राय है कि इस सूची पर भी जाँच आयोग बैठा देना चाहिए।

बहरहाल तीसरा भारतीय ही भ्रष्ट सही, मगर गौरतलब बात यह कि वह तीसरा कौन जिसका नंबर दो ईमानदार व्यक्तियों के बाद लगता है? दो ईमानदार व्यक्तियों को लेकर मेरी कोई जिज्ञासा नहीं, क्योंकि हमारे देश में ईमानदार होना बड़ी बात नहीं। अगर तीसरे ने टँगड़ी नहीं मारी होती तो आयोग को भाड़ झोंककर यह मानना ही पड़ता कि प्रत्येक भारतीय ईमानदार है। भारतीयों के ईमानदार होने की वजह भी जगजाहिर है। मसलन प्रत्येक भारतीय यह मानता है कि 'जैसा करम करेगा वैसा फल देगा भगवान, ये है गीता का ज्ञान।'

इसके अलावा भारतीय पुनर्जन्म पर भरोसा करता है। भारतीय धर्मस्थलों में जाता है। भारतीय तीर्थाटन करता है। पवित्र नदियों में स्नान करता है। घंटे-दो घंटे पूजाघर में पूजा-पाठ करता है। चींटियों को दाना डालता है। मछलियों को गोलियाँ खिलाता है। कबूतरों को दाना डालता है। कई-कई व्रत-उपवास करता है। सत्संग में जाकर प्रवचन सुनता है। दान-धरम करता है। कन्याभोज से लेकर दरिद्रनारायण को भोजन करवाता है। अच्छी स्थिति में होता रोगियों को फल वगैरह वितरित करता है। गरीबों को कपड़े देता है और अच्छी हालत में हो तो गरीब कन्याओं की शादियाँ करवा देता है। गरीब विद्यार्थियों को पुस्तकें आदि भी वितरित करवा देता है। वक्त जरूरत सनद रहे इस हेतु समाचार-पत्रों में सचित्र खबरें भी उक्त प्रसंगों की छपवा देता है।

ऐसे माहौल में लगता है कि सारे भारतीय सहृदय, संवेदनशील, करुणामय एवं परदुःख कातर हैं, मगर उस कमबख्त नामुराद तीसरे आदमी का क्या करें, जो सर्वे करने वालों की निगाह में आ गया! लगता है एकदम घोंचू है, सर्वेवालों को चकमा भी नहीं दे सका। एक प्रश्नचिह्न-सा सारे ईमानदार भारतीयों की छाती पर बैठ गया। बैठ ही नहीं गया, उल्लू के पट्ठे ने देश की नाक कटवा दी।

तीसरा कौन? इस सवाल का जवाब देने के लिए उसकी तलाश जरूरी है। तलाश के दौरान (या पहले से ही) यह एहतियात रखना जरूरी है कि उसे खास आदमियों में हरगिज नहीं तलाशा जाए। हम सवा अरब हिन्दुस्तानी सीना ठोककर कह सकते हैं कि हमारे खास आदमियों का नंबर पहला या दूसरा ही है।

वे तीसरे तो कतई नहीं हो सकते हैं। तीसरे आदमी की तलाश करने वालों की सुविधा के लिए हल्का-सा संकेत दे देता हूँ कि वे उसे खेतों में, निर्माण कार्यों में, फुटपाथों में ढूँढें। अवश्य ही वह कहीं मजदूरी करता हुआ या हल चलाता हुआ अथवा ठेला धकाता हुआ मिल जाएगा। तीसरा भ्रष्ट आदमी इन्हीं आम आदमियों में मिलेगा, यह तय है।

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