तकनीकी तरक्की की मिसालों में मोटरसाइकलों और मोबाइल के साथ-साथ बैंक की एटीएम मशीनों ने चार चाँद लगा दिए हैं। इस मशीन के पारदर्शी रूम के बाहर वैसे तो सुरक्षाकर्मी रहता है, और ढेर सारे नियम भी चस्पा किए हुए हैं, लेकिन हमारे शहर की जनता निर्भिक है। वह किसी नियम की परवाह नहीं करती। बैंक वाले कितना भी समझाते रहें कि इस कक्ष में एक बार में एक ही व्यक्ति आए जिससे कि आपके कोड वर्ड की गोपनीयता भंग नहीं हो पर हमारे यहाँ एटीएम कक्ष में जब तक लंबी क्यू अंदर मौजूद नहीं हो, तब तक लोगों को मजा ही नहीं आता।
सुरक्षाकर्मी या तो मौन रहता है या चाय पीने चला जाता है या ऊपर नीचे ऐसे चिंतन की मुद्रा में देखता है कि लगता है इससे कुछ उम्मीद करना ही बेकार है। यदि कोई ग्राहक दूसरे किसी व्यक्ति को एटीएम कक्ष में घुसने से रोकता है तो झगड़े की पूरी संभावना है-'यहाँ टेम किसके पास है जो बाहर खड़ा रहे। जहाँ करना हो कर दो हमारी कम्पलेन।'
यदि आप बाहर खड़े हो जाएँ और एटीएम कक्ष में कुछ लोगों के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करें तो आपके पीछे से आने वाले लोग आपको धक्का देते हुए एटीएम कक्ष में घुस जाएँगे और आप हाथ मसलते रह जाएँगे।
जब आपका धैर्य चूक जाएगा तो या तो बैंक में इस अव्यवस्था की शिकायत करेंगे या किस से झगड़ा कर बैठेंगे। बैंक में शिकायत का कोई खास असर नहीं होगा। बैंक अधिकारी कहेगा,-'हम तो लोगों को समझा-समझाकर थक गए हैं। भगवान जाने यहाँ के लोग कैसे हैं। सर, आप तो समझदार हैं, किसी और समय आकर पैसे निकाल लीजिए।' यदि आपने लोगों को समझाने की कोशिश की और आपका झगड़ा हो गया तो सब लोग आपको ही दोषी मानेंगे,-'अच्छे भले सब लोग मशीन से पैसे निकाल रहे थे, जाने कहाँ से ये आकर लोगों को नियम समझाने लगे।'
जब एक-दो बार इस तरह की शिकायतों या झगड़ों का हश्र देख लेंगे तो आगे से आप भी क्यू में लगकर नियम (?) से एटीएम का उपयोग सीख जाएँगे।
वैसे एटीएम ने एक रास्ता निकाल लिया है। वह स्वयं हर चौथे-छठे दिन काम करना बंद कर देती है। बैंक प्रबंधन, एटीएम खराब है।' का सूचना पट्ट लगा देता है। कुछ समय आराम के बाद मशीन फिर काम करने लगती है। छुट्टी के एक दिन पहले बैंक प्रबंधन इसमें इतने पैसे रखता है कि रविवार या छुट्टी के दिन स्वयमेव लोग एटीएम में कार्ड डालकर दूसरों को सूचना दे देते हैं कि एटीएम में पैसे खत्म हो गए हैं...!