व्यंग्य : टमाटर पर शोध निबंध

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- देवेन्द्रसिंह सिसौदिया

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देश के महापुरुष, गाय, दीपावली, प्रिय शिक्षक, माय हॉबी आदि विषयों पर अक्सर निबंध लिखने के लिए प्रश्नपत्रों में कहा जाता है। इस बार गुरुजी ने प्रश्नपत्र में करंट अफेयर्स का पुट डालकर विद्यार्थियों के ज्ञान को टटोलने का प्रयास किया।

प्रश्नपत्र में निबंध का विषय एकदम लीक से हटकर किंतु सामयिक दिया। विषय था- 'शतकवीर टमाटर'। विद्यार्थी भी कुछ कम नहीं थे। उन्होंने भी बगैर पढ़ाए इस विषय पर इतना बढ़िया लिखा जिसकी कल्पना नहीं थी।

टमाटर एक तरकारी है, जो विश्व में सबसे अधिक विकसित देशों में धनाढ्य लोगों द्वारा खाई जाती है।

ये कई प्रजातियों में पाया जाता है किंतु इसका उपयोग केवल रईस प्रजाति के लोग ही करते हैं।

जहां इसकी खेती होती है उसको सेना की नजर में रखा जाता है ताकि कोई नुकसान न पहुंचाए।

इनके खेतों का बीमा करवाया जाता है।

इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व विटामिन सी पाए जाते हैं। हर दृष्टि से गुणकारी टमाटर कई बीमारियों का नियंत्रण करता है और साथ ही देश की राजनीति को भी।

ये बड़े-बड़े मॉलों में ही विक्रय के लिए उपलब्‍ध होता है। इसे विक्रय करने के लिए स्थान और समय की सूचना स्थानीय प्रशासन को देना होती है ताकि कानून व्यव्स्था को बनाए रखने के लिए उचित प्रबंध किए जा सकें।

इसे पूर्वानुसार थैली में सबसे ऊपर न रखते हुए नीचे रखा जाता है ताकि किसी को दिखाई नहीं दे।

इसे विक्रय पश्चात विशेष प्रकार की बनी सुरक्षा गाड़ियों में घर लाया जाता है।

इसे घर लाने के पश्चात फ्रिज में रखा जाता है और फ्रिज को लॉक कर उसकी चाबी बैंक के लॉकर में रखी जाती है।

इसे खरीदने, घर लाने, रखने और बनाने की संपूर्ण प्रक्रिया को गुप्त रखा जाता है।

10 किलो से अधिक खरीदी पर सरकार से अनुमति लेना होती है।

इसकी सब्जी वार-त्योहार पर बनाई जाती है।

किसी की नजर न लगे, इस हेतु अब इससे बनी सब्जी टिफिन में नहीं रखी जाती है।
किसी को कानोकान पता नहीं चले, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि आयकर विभाग की नजरों से इसे छुपाया जा सके।

इसके मूल्य का प्रभाव कर्मचारियों के महंगाई भत्तों को निर्धारित करने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर नहीं पड़ता।

ये केवल खाने के ही काम नहीं आते अपितु देश की राजनीति और कूटनीति के दिशा निर्धारण के भी काम आते हैं।

अब टमाटर लोगों के घरों में नहीं, अपितु न्यूज, धरना प्रदर्शनों में ही दिखाई देता है।

टमाटर का संग्रह और व्यापार करने वालों के चेहरे पर चमक और लाली पाई जाती है।
इसकी कीमत बढ़ने से कविगण बहुत खुश हैं कि अब उन पर मंच पर टमाटर नहीं फेंके जाएंगे।

इसका बाजार मूल्य 100 रुपए होता है किंतु इससे बनी सब्जी की थाली मय रोटी, दही, चावल सलाद मात्र 12 रुपए 50 पैसे में संसद के कैंटीन में करोड़पति सांसदों के लिए उपलब्ध है।

उपसंहार में कह सकते हैं कि अब टमाटर एक उच्च वर्ग की तरकारी बन चुकी है। ये केवल सरकारी भोजनालयों में उपलब्ध होती है। इसे सरकारी संरक्षण प्राप्त है। ये रईसों की पहचान बन चुका है। इसकी पहचान शतकवीर सचिन के समान विश्वस्तरीय हो चुकी है।

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