व्यथा एक 'बेचारे' शिक्षक की

डायरी विशेष

Webdunia
बुधवार, 5 सितम्बर 2012 (12:14 IST)
पंकज शुक्ला
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5 जुलाई
स्कूल शुरू हो गए हैं। अभी मुझे चार क्लास पढ़ाना है। एक साथी शिक्षक जन शिक्षा केन्द्र में रिपोर्ट बनाने में व्यस्त हैं। उन्हें हर दूसरे दिन डाक लेकर जाना पड़ता है। कहने को तो जन शिक्षा केन्द्र में प्रभारी की व्यवस्था है, लेकिन यहां प्रभारी का काम भी किसी प्रभारी के भरोसे चल रहा है। एक शिक्षक पूरे महीने तमाम काम करने में जुटा रहता है।

15 जुलाई
मैं अध्यापक हूं और कई सालों की लड़ाई के बाद सरकार ने हमारी समस्याओं को सुना और पूरा किया। लेकिन ढीले प्रशासनिक कामकाज के कारण वे आदेश अभी तक नहीं मिले हैं। मेरा प्रमोशन होना है, लेकिन सरकार के आदेश के बाद भी यह काम नहीं हो रहा है। जनपद सीईओ के पास जाता हूँ तो वे जिला शिक्षा अधिकारी के पास भेज देते हैं। डीईओ के पास जाता हूँ तो वे कहते हैं ऊपर से मार्गदर्शन मांगा गया है।

23 जुलाई
बिटिया स्कूल जाने लगी है। सोच रहा था कि उसे कान्वेंट में पढ़ाऊंगा। लेकिन मेरी इतनी तनख्वाह कहां कि मोटी फीस भर सकूं? मैंने उसे पास के ही एक प्रायवेट स्कूल में भर्ती किया है। फीस भी कम है। घर के पास है तो लाने-ले जाने का खर्चा भी बच जाता है। कल पुराना दोस्त मनीष मिल गया था। पढ़ने में मुझसे कमजोर था।

लेकिन पिता की दुकान क्या संभाली, आज ठाठ में मुझसे आगे है। क्या कहूं, अभी मेरा वेतन 8 हजार रुपए है। इतने कम पैसों में कैसे घर चले? पिछले महीने मां बीमार हो गई तो भैया से पैसे लेकर दवाई लानी थी। शाम को घर पहुंचा तो बिटिया ड्रेस की मांग करने लगी।

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5 अगस्त
आज प्रधानाध्यापक ने नया आदेश दिया है। समग्र स्वच्छता अभियान में काम करने जाना है। अभी-अभी जनगणना की ड्यूटी खत्म हुई है। जो चाहे वहां काम पर लगा देता है। पिछली बार मेरी जनगणना में ड्यूटी थी कि भोपाल के एक साहब दौरे पर आ गए। गांव वालों ने शिकायत कर दी कि मास्साब नहीं आते हैं। फिर क्या, मुझे सस्पेंड कर दिया। मैंने कलेक्टर साहब का आदेश दिखाया। तब कहीं जाकर मुझे न्याय मिला। लेकिन तब तक मुझे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में दर्जनों चक्कर लगाना पड़े।

11 अगस्त
मैं काम पर लौट आया। लेकिन इस बीच स्वतंत्रता दिवस आ गया। बिटिया की ड्रेस नहीं आई अब तक। बार-बार जिद कर रही थी तो मैंने एक तमाचा मार दिया। कितना रोई थी वह। मुझे भी बहुत बुरा लगा। पहली बार मारा था। क्या करूं हालात बिगड़ जाते हैं तो कभी-कभी गुस्सा आ जाता है।

19 अगस्त
मध्याह्न भोजन कितना बड़ा सिरदर्द है। कोई गलती हो जाए, खाना खराब हो या कीड़ा निकल जाए तो सस्पेंड होगा मास्टर। पिछले साल पास वाले गांव के एक सर का इंक्रीमेंट रुक चुका है। मैं तो बच्चों को काम देकर मध्याह्न भोजन की व्यवस्था संभालता हूं। पढ़ाई तो बाद में हो जाएगी। कोई लफड़ा हो गया तो क्या जवाब दूंगा। मन में अक्सर खुद ही सवाल पूछता हूं पढ़ाई का क्या होगा? गुणवत्ता? लेकिन फिर लगता है कि व्यवस्था ही मुझे बेहतर पढ़ाने नहीं देती तो मैं क्या करूं?

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28 अगस्त
जनशिक्षा केन्द्र गया था, डाक देने। वहां प्रमोशन आदेश का पूछा लेकिन कोई आदेश नहीं आया। इधर हाथ तंग है और समस्या हल नहीं हो रही है। बहुत खीज होती है। लौट कर स्कूल आया तो राकेश और केशव मस्ती कर रहे थे। उत्तर याद करने को दिए थे। दो दिन से पूछ रहा हूं लेकिन दो उत्तर याद नहीं हुए। दोनों को जमाकर दिए दो। चुपचाप बैठकर पढ़ाई नहीं कर सकते। समझ नहीं सकते सर परेशान हैं। बाद में समझाया कि कल याद करके आना।

29 अगस्त
कल शाम को घर गया तो मन खराब था। पत्नी ने पूछ लिया। क्या कहता? उस दिन भी बुरा लगा था, जब बिटिया को पीटा था, आज भी बुरा लगा जब दो बच्चों को पीट दिया। ऐसा थोड़े ही है कि मैं रोज पीटता हूं लेकिन क्या करूं मेरी बात कोई समझता ही नहीं है।


ज्ञानप्रकाश विव श

शिक्षक
प्राथमिक शाला

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