शासकीय पकड़वा विवाह : व्यंग्य

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डॉ. शिव शर्मा
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महिला बाल विकास मंत्री ब्रह्मचारिणी भगवती देवी यद्यपि स्वयं शुभ विवाह से दूर रहीं किंतु अब वे प्रदेश की सभी कुँवारी कन्याओं के हाथ पीले करने के लिए इतनी उतवाली हैं कि शासकीय सामूहिक विवाह आयोजित करवाती हैं और यदि कुँवारी कन्याएँ नहीं मिलें तो शादीशुदाओं के ही हाथ पीले करवा देती हैं। पंचायत अधिकारियों को कोटा दे दिया जाता है कि गाँव के इतने जोड़ों को सामूहिक विवाह में लाना ही है अन्यथा उनका निलंबन तक हो सकता है।

अतः जो भी मिले उसे पकड़ कर सामूहिक विवाह में बिठा दिया जाता है तथा कन्यादान स्वयं भगवती देवी द्वारा किया जाकर अपनी कुंठाओं का शमन भी कर लिया जाता है। इससे भगवाकरण का एजेंडा भी पूरा होता जाता है।

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हमारे शास्त्रों में भी आठ प्रकार के विवाह बताए जाते हैं। इनमें जहाँ गांधर्व विवाह का उल्लेख है जो स्वयं वर चुनकर किए जाते थे, वहीं आसुरी विवाह का भी उल्लेख है जिसे हम आज पकड़वा या बलात विवाह भी कह सकते हैं। आपातकाल में जैसे पकड़वा नसबंदी की जाती थी, इन दिनों पकड़वा शुभ विवाह करवाए जाते हैं।

दहेज के रेट बढ़ जाने से कई विवाह योग्य कन्याएँ कुँवारी ही रह जाती हैं अतः प्रेम-विवाह एवं अंतर्जातीय विवाह ही धड़ल्ले से हो रहे हैं। पोंगापंथियों की दृष्टि से ये विवाह हमारी परंपराओं को नुकसान पहुँचा रहे हैं अतः इन्हें रोकने के लिए पकड़वा विवाह भी प्रारंभ हो गए हैं। हरियाणा में खाप पंचायतें प्रेम-विवाह करने वाले जोड़ों को मृत्युदंड भी देने लगी हैं। विवाह करना है तो अपनी खाप में करो चाहे लंगड़े-लूले ही हों।

वहाँ कन्याओं की भ्रूण हत्याओं के कारण उनकी कमी भी हो गई है अतः एक कन्या को दो-तीन से भी विवाह करना पड़े तो भी जायज माना जाता है। गुजरात में तो बजरंगी बाबू ने विजातीय विवाह करने वालों को उठवाकर उनका पुनर्विवाह एवं हनीमून तक करवाने का ठेका ले लिया था। कर्नाटक में क्लब में यदि भाई-बहन भी एक साथ बैठे मिल जाएँ तो उन्हें प्रेमी-प्रेमिका मानकर पिटाई करना श्रीराम सेना का धर्म बन गया था ।

अंततः भगवती देवी ने मध्य मार्ग निकाल लिया और अहिंसात्मक तरीके से शासकीय स्तर पर पकड़वा विवाह प्रारंभ करवा दिए। इसमें मंत्रीजी स्वयं कन्या के हाथ पीले करवाते एवं सरकारी धन से दहेज भी दिया जाता है। इससे दहेज जैसी प्राचीन परंपरा का निर्वहन भी होता रहे और माता-पिता भी दहेज के बोझ से बच जाएँ।

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यह दीगर है कि इसमें खोजी पत्रकारों को खोट नजर आने लगी क्योंकि एक-एक जोड़े के कई-कई बार फेरे हो चुके होते हैं। ये पठ्ठे सरकारी गवाहों की तरह ले-देकर अपना शुभ विवाह करा आते हैं। वैसे भी इतनी कुँवारी कन्याएँ मिलने से रहीं। कई बार तो पति-पत्नी के अलावा भी विवाह कर डालते हैं जो एक-दूसरे को पहचानते तक नहीं हैं। सामूहिक विवाह तो जारी है।

भांडा यूँ फूटा कि इस विवाह में जो दहेज सामग्री दी गई, वह निहायत घटिया और बाजार मूल्य से बहुत कम मूल्य की निकली। एक-एक जोड़ा कोई 4 -5 सेट दहेज का सामान घर में तो रख नहीं सकता अतः वह इन्हें सस्ती दरों में बेच देता है। बाजार में पता चला कि 6 हजार रुपए के दहेज के सामान में कुल एक हजार रुपए ही वापस मिल रहा है।

कारण कि सरकारी अमले ने इसमें जमकर कमीशन खाया । कमीशन की राशि 60-70 प्रतिशत तक पहुँच गई सो घटिया सामान दहेज में दिया गया। सरकार ने जाँच कमीशन बिठाया है पर अंतिम रिपोर्ट आने तक सामूहिक पकड़वा विवाह शुभ बने रहेंगे।

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