साहित्य से इतर प्रेमचंद

डॉ. मनोहर भंडारी
WD
जब बात होती है प्रेमचंद के लेखन की तो बहुत से लोग ये कहते मिल जाते हैं कि हमने भी पढ़ा है प्रेमचंद को और हम भी उनके लेखन के बारे में जानते हैं। क्या है गोदान में, क्या कहता है सेवासदन या कितनी गहराई है मानसरोवर की कहानियों में। हिन्दी गद्य को पूर्ण करने वाले प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यासकार की लेखनी में जितनी गहराई थी, उतनी ही गहराई उनके व्यक्तित्व में भी थी। जिसे अगर कोई जानता था, तो वो थी उनकी पत्नी शिवरानी देवी।

शिवरानी देवी ने 'प्रेमचंद घर में' नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे, अनजान थे। ऐसा नहीं है कि प्रेमचंद की जीवनी किसी और ने लिखी ही नहीं, उनके ही बेटे अमृराय ने 'कलम का सिपाही' नाम से पिता की जीवनी लिखी थी। कई अन्य साहित्यकारों ने भी इस दिशा में प्रयास किए, लेकिन वो सारा लेखन सुनी-सुनाई घटनाओं पर आधारित था। जिसमें लेखकों की खुद की भी थोड़ी-बहुत कल्पनाएँ शामिल होती थीं। लेकिन शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई इस जीवनी में हर घटना खरे सोने की तरह है, क्योंकि उन्होंने खुद उन पलों को जिया है और महसूस किया है।

यह पुस्तक 1944 में पहली बार प्रकाशित हुई थी, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे दुबारा 2005 में संशोधित करके प्रकाशित की गई, इस काम को उनके ही नाती प्रबोध कुमार ने अंजाम दिया। इन्होंने स्वयं भी यह बात स्वीकार की है कि शिवरानी देवी की 'प्रेमचंद घर में' साहित्य की एक अमूल्य निधि है और इसका अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँचना आवश्यक है, ताकि लोग जान सकें प्रेमचंद के उस सहज, सरल और भावना से परिपूर्ण व्यक्तित्व को।

प्रेमचंद के व्यक्तित्व की साफगोई को जिस तरह से उनकी पत्नी ने बयान किया है, वह हिन्दी साहित्य प्रेमियों के लिए पठनीय है। वो एक महान साहित्यकार थे, यह बात साहित्य प्रेमियों से छिपी नहीं है। साथ ही उनकी सह्दयता से भी लोग वाकिफ थे। लेकिन बहुत कम लोग ही ये जानते होंगे कि साहित्य से इतर वे एक संवेदनशील पति भी थे, जो स्त्री-पुरुष समानता के पक्षधर थे। उन्होंने अपनी पत्नी को हमेशा प्रेरित किया कि वे लिखें और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। अगर शिवरानी देवी किसी काम के लिए कदम बढ़ाती थीं, तो प्रेमचंद उनके साथ दो कदम बढ़ाने को तैयार रहते थे। यही वजह थी कि वे कहीं भी किसी सम्मेलन या साहित्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने जाते तो शिवरानी देवी से आग्रह करते कि वे भी उनके साथ चलें। अपनी पत्नी के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम और सम्मान था।

शिवरानी देवी ने उनके साथ बिताए जीवन के उन सुनहरे पलों को जिस सहज संवेदना के साथ लिखा है, उसे शायद ही अन्य साहित्यकार लिख पाता, क्योंकि उनके लेखन में भावनाओं का कहीं अभाव नहीं है और न ही उसके प्रवाह में ही कोई कमी नजर आती है। जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने साहित्य रचना का साथ नहीं छोड़ा और पत्नी के प्रति उनका लगाव और भी बढ़ गया। शिवरानी देवी को इस बात का हमेशा मलाल रह गया कि वे अपने पति की महानता को उनके मरणोपरांत ही समझ पाईं। उनकी मृत्यु के बाद शिवरानी देवी का वह विलाप ह्दय को छू लेता है कि जब तक जो चीज हमारे पास रहती है तबतक हमें उसकी कद्र नहीं होती, लेकिन वो हमसे ओझल हो जाए तो हमारा मन पछताता रहता है। फिर हमारे पास दुःखी होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता।

प्रेमचंद के मरणोपरांत शिवरानी देवी के जीवन में भी ऐसी ही परिस्थितियाँ उभरकर आई। ऐसे में उनकी लेखनी से साहित्य जगत के लिए यह संग्रहनीय जीवनी फूटी। इस जीवनी को पढ़कर साहित्यप्रेमी प्रेमचंद को केवल एक साहित्यकार के रूप में ही नहीं, बल्कि उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को जान पाएँगे।

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