लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सियासी घमासान शुरू हो गया है। सभी पार्टियां जीत के लिए में दांव-पेंच लगाने में जुट गई हैं। उत्तरप्रदेश में फतेहपुर ऐसी लोकसभा सीट है, जहां 1984 के बाद से कांग्रेस को जीत का इंतजार है। इस सीट पर जीत के लिए कांग्रेस ने भी जोड़तोड़ की राजनीति अपनाते हुए सपा के दिग्गज नेता पर इस उम्मीद के साथ दांव लगाया है कि 35 सालों से जीत के लिए तरस रही कांग्रेस के हाथों में शायद जीत लग जाए।
उत्तरप्रदेश के लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर इलाहाबाद मंडल के जिला फतेहपुर की लोकसभा सीट ऐसी है, जिस पर 1984 के बाद से कांग्रेस की पकड़ दिन-प्रतिदिन कमजोर होती चली गई और यहां पर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी का वर्चस्व बढ़ता चला गया।
फतेहपुर लोकसभा सीट 1984 में गंवाने के बाद आज तक कांग्रेस की झोली में नहीं आ पाई जबकि अगर जानकारों की मानें तो 1984 तक कुछ ऐसा माहौल था कि कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी इस सीट से खड़ा हो जाए, चाहे उसे जनता जानती हो या न जानती हो, लेकिन उसकी जीत तय मानी जाती थी।
इसी के चलते कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ जनता की अनदेखी करने लगे, जिसका खामियाजा आज तक कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। इस वनवास को इस बार खत्म करने की उम्मीद लिए कांग्रेस भी जोड़तोड़ की राजनीति में आ गई है। मुलायमसिंह यादव के खास माने जाने वाले सपा के कद्दावर नेता राकेश सचान ने कांग्रेस का दामन थामा और कांग्रेस ने राकेश सचान को फतेहपुर से प्रत्याशी घोषित कर दिया है।
कांग्रेस के प्रत्याशी राकेश सचान का सामना भाजपा से तथा सपा-बसपा गठबंधन से होना है। मौजूदा समय में फतेहपुर से सांसद भाजपा का ही है। इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए सचान फतेहपुर लोकसभा सीट पर भाजपा और गठबंधन को मात देने के लिए कौनसी रणनीति अपनाते हैं यह तो आने वाला समय ही तय करेगा, लेकिन इस बार इस लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय स्थिति साफ तौर पर बनती हुई नजर आ रही है।
जानकारों की मानें तो कांग्रेस प्रत्याशी राकेश सचान का ठीक-ठाक वर्चस्व फतेहपुर लोकसभा सीट में है क्योंकि वे यहां से एक बार सांसद भी रह चुके हैं। इसलिए यहां की जनता सचान को अच्छे से जानती है, जिसका फायदा सचान को हो सकता है।
कौन है कांग्रेस प्रत्याशी : पूर्व सांसद एवं फतेहपुर लोकसभा के कांग्रेस प्रत्याशी राकेश सचान ने अपना राजनीतिक जीवन छात्र राजनीति प्रारंभ किया। 54 वर्षीय राकेश सचान डीएवी कॉलेज कानपुर में छात्र राजनीति की। वर्ष 1991 में उन्होंने घाटमपुर विधानसभा से जनता दल के प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी हार हुई। इसके बाद 1993 में उन्होंने घाटमपुर विधानसभा से ही जनता दल से प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की और विधायक बने।
इसके बाद राकेश सचान की नजदीकियां पूर्व मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव से बढ़ती चली गईं, जिसके चलते वर्ष 1995 में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और 2002 में घाटमपुर विधानसभा से समाजवादी प्रत्याशी के रूप में विजय हासिल की। विधानसभा चुनाव में 2007 में घाटमपुर से एक बार फिर उनकी हार हुई। 2009 में फतेहपुर लोकसभा से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विजय हासिल कर सांसद बने वर्ष 2014 में दोबारा सपा प्रत्याशी के रूप में लड़े और उनकी हार हुई।
सपा-बसपा गठबंधन के चलते उनकी नाराजगी समाजवादी पार्टी के प्रति बढ़ गई और उन्होंने समाजवादी पार्टी को अलविदा कहते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस ने उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें फतेहपुर लोकसभा से कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित कर दिया।