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ये लड़ना नहीं चाहते और पार्टी हर हाल में लड़वाना चाहती है

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अरविन्द तिवारी

मालवा-निमाड़ क्षेत्र से ग्राउंड रिपोर्ट

मालवा-निमाड़ के चार संसदीय क्षेत्रों को लेकर उम्मीदवारी का परिदृश्य साफ हो गया है। इन चारों सीटों पर पार्टी उम्मीदवार लगभग तय हैं, बस घोषणा की औपचारिकता भर बाकी है। मजेदार बात यह है कि इनमें से दो नेता ऐसे हैं जो अभी भी उम्मीदवारी से वंचित होना चाहते हैं, पर पार्टी नेतृत्व इन्हें हर हाल में चुनाव लड़वाना चाहता है। दरअसल ये दोनों नेता वर्तमान स्थिति में चुनावी लड़ाई को अपने लिए बहुत कठिन मान रहे हैं और इनकी जीत की संभावनाएं भी नगण्य हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कोर ग्रुप की सदस्य मीनाक्षी नटराजन को पार्टी ने मंदसौर-जावरा सीट से सबसे मजबूत दावेदार माना है। इस संसदीय क्षेत्र के ज्यादातर नेता भी मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यहां से मीनाक्षी से बेहतर कोई उम्मीदवार हो ही नहीं सकता। इन लोगों का कहना है कि यहां से कांग्रेस के टिकट पर पहला हक मीनाक्षी का ही बनता है, यदि वे तैयार न हों तो ही दूसरे विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए।

तीन महीने पहले संपन्न विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र के आठ में से सात क्षेत्रों में कांग्रेस को करारी शिकस्त खाना पड़ी थी और एक सीट पर उसका उम्मीदवार करीब 350 मतों से जीत पाया था। पूर्व मंत्री सुभाष सोजतिया और नरेंद्र नाहटा जैसे दिग्गज भी यहां खेत रहे थे।

इधर, मीनाक्षी के सामने मुसीबत दूसरी है। मैदानी स्थिति से वे अच्छे से वाकिफ हैं और यह मान रही हैं कि इस बार का चुनावी रण उनके लिए बहुत कांटोंभरा है। जीत की संभावना बहुत कम है। इस बात का भी उन्हें खतरा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान यहां टिकटों के वितरण के कारण जो समीकरण बिगड़े उसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ेगा। संसदीय क्षेत्र के कांग्रेसी क्षत्रप उन्हें निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। इस सबके बावजूद मीनाक्षी पार्टी नेतृत्व के सामने चुनाव लड़ने से इंकार नहीं कर पा रही है। पार्टी में उनकी जो हाईट है, उसके चलते चुनाव से मुंह मोड़ने वाला कदम वे उठा नहीं सकती।
 
केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री दोनों का यह मानना है कि मीनाक्षी को हर हाल में चुनाव लड़ना चाहिए। पार्टी नेतृत्व के रुख को देखते हुए ही मीनाक्षी अब क्षेत्र में सक्रिय हो गई हैं और उनके समर्थक नाराज नेताओं की मान-मनोब्बल में जुट गए हैं। भाजपा यहां से अपने वर्तमान सांसद सुधीर गुप्ता के स्थान पर रतलाम शहर के विधायक चैतन्य काश्यप या फिर पार्टी के प्रदेश महामंत्री किसान नेता बंशीलाल गुर्जर को मैदान में ला सकती है।

पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और केंद्र में राज्यमंत्री रह चुके अरुण यादव के सामने भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। पार्टी नेतृत्व अरुण को खंडवा से फिर मैदान में उतारना चाहता है। पार्टी का मानना है कि ऐसे समय में जब एक-एक सीट कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, अरुण जैसे बड़े नेता को हर हाल में मैदान संभालना चाहिए। न चाहते हुए भी अरुण को बेमन से इसके लिए रजामंदी देना पड़ी है। इस संसदीय क्षेत्र में खंडवा और बुरहानपुर के अलावा खरगोन जिले के भी दो विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यहां के कांग्रेस नेताओं ने मुख्यमंत्री के सामने अरुण के नाम पर जो रजामंदी दी है, उसके पीछे भी कहानी कुछ और है।

दरअसल, ये सब नेता अरुण से पुराना हिसाब बराबर करना चाहते हैं और इसके लिए इनके पास लोकसभा चुनाव से अच्छा मौका कोई दूसरा और नहीं होगा। अरुण पर आरोप है कि उन्होंने प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के स्थापित नेताओं को जमींदोज करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। यहां से उम्मीदवारी की स्थिति में अरुण को सबसे पहले अपनी ही पार्टी के नाराज नेताओं को साधना पड़ेगा। बुरहानपुर के विधायक सुरेंद्रसिंह शेरा से अरुण की पुरानी अदावत है और अब विधायक बनने के बाद शेरा उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में आ गए। शेरा को साधना भी अरुण के लिए टेढ़ी खीर होगा।

झाबुआ से कांतिलाल भूरिया और धार से गजेन्द्रसिंह राजूखेड़ी की उम्मीदवारी में किसी तरह का संशय नहीं है। भूरिया का टिकट भी तय है, पर यदि जेवियर मेड़ा यहां से फिर बागी उम्मीदवार के रूप में मैदान में आ गए तो भूरिया की परेशानी बढ़ सकती है। धार से राजूखेड़ी को पिछले चुनाव में ऐनवक्त पर उम्मीदवारी से वंचित होना पड़ा था। तब धार जिले के उन दिग्गज नेताओं ने ही उनकी खिलाफत की थी, जिनके साथ वे लंबे समय से जुड़े हुए हैं। इसी के चलते यहां से उमंग सिंघार को टिकट मिला था। हालांकि उमंग की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद इन नेताओं ने राजूखेड़ी के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने फैसला नहीं बदला था।

इस बार राजूखेड़ी की उम्मीदवारी को लेकर जिले के ज्यादातर नेता एकमत हैं। विधानसभा चुनाव में जयस से हुए समझौते के कारण कांग्रेस को मनावर सीट जयस के लिए छोड़ना पड़ी थी। तब भी उम्मीदवारी से वंचित रहे राजूखेड़ी को पार्टी के नेताओं ने आश्वस्त किया था कि उन्हें हर हालत में लोकसभा का चुनाव लड़वाया जाएगा।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)
 

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