विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने वाले किसान अब क्या सोचते हैं?

वृजेन्द्रसिंह झाला
विधानसभा चुनाव में किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। लोकसभा चुनाव में किसान भाजपा का साथ देंगे या एक बार फिर कांग्रेस को ही समर्थन देंगे? इन्हीं सवालों को लेकर जब हमने मध्यप्रदेश के किसानों से बात की तो मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई। कुछ किसानों ने माना कि कांग्रेस वादे के अनुरूप काम किए हैं, वहीं कुछ का मानना है कि वे ठगे गए हैं। 
 
देपालपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव बेगंदा निवासी मोहनदास वैष्णव ने कहा कि किसानों की आर्थिक हालत बहुत ही ख़राब है। पहले से ही कर्ज है। दूसरे इस साल पानी की कभी रही, जैसे तैसे खेती बोई। कुछ उम्मीद बंधी पर शीतलहर से पड़े पाले ने सब चोपट कर दिया। 25 फीसदी मुश्किल से फसल बची, जो इसकी लागत में ही चली गई। कुछ को तो वह भी नहीं मिली। पिछली सरकार तो पाले के नुकसान का कुछ मुआवजा दे देती थी पर इस सरकार ने कुछ नहीं दिया। अब समस्या ये है कि घर कैसे चलेगा, अगली खेती कैसे करेंगे? यह सोचकर ही दिमाग काम नहीं कर रहा है।
 
हरनासा देपालपुर के हीरासिंह डौड़ कहते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद किसानों की स्थिति में सुधार तो आया है। इस बार लहसुन के दाम भी अच्छे मिले हैं। कर्ज माफी के साथ ही हमारा बिजली बिल भी आधा हो गया है। घर का बिजली बिल भी 100 रुपए हो गया है। सरकार को चाहिए कि किसानों को उनकी उपज का सही समय पर भुगतान होना चाहिए। किसान लोगों से उधार पैसा लेकर आता है, लेकिन उसके भुगतान में 8-10 दिन लग जाते हैं। इस स्थिति में सुधार होना चाहिए।
 
पुष्पेन्द्र सिंह गढ़ीबिलोदा का मानना है कि चुनाव के पहले सरकार ने किसानों का दो लाख तक का कर्ज माफी का लालीपॅप दिया, जब देने की बारी आई तो बहाने बना रही। बैंक वाले कहते हैं प्रमाण पत्र तो दे रहे हैं, मगर पैसा सरकार से मिलेगा तब कर्ज खाते में जमा होगा। जितनी माफी हुई है उसके आधे का ही प्रमाण पत्र है। फिर दो लाख रुपए के वादे का कोई मतलब नहीं रह गया। कांग्रेस ने केवल प्रलोभन देकर किसानों का वोट लिया। धन्नालाल लोधा ने कहा कि जब किसानों के दो लाख से अधिक कर्ज है तो दो लाख उसके कर्ज खाते में जमा होने चाहिए, मगर कहीं लाख कहीं पचास हजार के कागज पकड़ाए जा रहे हैं। ये सरासर वादाखिलाफी है।
 
इंदौर की सांवेर विधानसभा क्षेत्र के धतूरिया ग्राम निवासी सौदानसिंह ने कहा कांग्रेस की सरकार आने के बाद काफी बदलाव आया है। किसानों का कर्ज माफ हो गया। बिजली का बिल जो पहले 3500 रुपए आता था, वह अब आधा होकर 1750 रुपए आ रहा है। मंडियों में सुधार हुआ है। हालांकि भावांतर का फायदा किसानों को नहीं मिला है। बछौड़ा (देपालपुर) के सोहन मौर्य का कहना है कि कांग्रेस की सरकार ने पहले से दिए जा रहे भावांतर को बंद कर दिया है। पिछली सरकार जब किसानों के माल की बाजार में कम कीमत होती थी तो भावांतर से आर्थिक नुकसान की भरपाई की कोशिश करती थी। इस सरकार ने किसानों को खुले बाजार में लुटने के लिए छोड़ दिया है।
सांवेर क्षेत्र के बेगमखेड़ी गांव के विष्णु पंवार का कहना है कि कर्ज माफी का फायदा सभी किसानों को नहीं मिला। कर्जमाफी की लिस्ट में तो नाम है, लेकिन आचार संहिता का हवाला देकर फिलहाल इस पर रोक लगा दी गई है। किसानों को लगने लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है। वैसे भी कर्ज माफी कोई सॉल्यूशन नहीं है। कर्जमाफी के बाद फिर लोग कर्ज लेंगे और फिर इस इंतजार में पैसा नहीं भरेंगे कि माफ तो हो ही जाएगा। बाद यह पैसा लोगों की जेब से ही तो निकाला जाएगा। दरअसल, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि किसान को उसकी फसल का सही दाम मिले।
 
संजय पाटीदार (गौतमपुरा) के मुताबिक शिवराज की सरकार ने किसानों को सोयाबीन पर 500 रुपए भावांतर देने का निर्णय लिया था। अब फिर सोयाबीन बोने का समय आने वाला है। सरकार ने अभी तक ये पैसा नहीं दिया है। फिर कैसे कहा जा सकता है कि ये सरकार किसान हितैषी है। 
 
नौलाना के उच्च‍ शिक्षित किसान ईश्वरसिंह चौहान कहा कि कांग्रेस की सरकार से किसानों को बहुत उम्मीद थी, मगर जिस तरह से उसके साथ व्यवहार किया जा रहा है, उससे कांग्रेस से मोह भंग हो गया। कर्ज माफी झुनझुना ही साबित हुआ। रही-सही कसर समर्थन मूल्य खरीद में हो रही लेटलतीफी ने पूरी कर दी। चने की खरीद में मैपिंग का नया पैंच फंसाकर अब किसान को व्यापारियों के हाथों लुटने के लिए मजबूर किया जा रहा है। फसल निकले दो माह हो चुके हैं। कब तक धैर्य रखें किसान? (फोटो : वेबदुनिया)

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