भोपाल। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए अब चुनाव प्रचार अब चरम पर पहुंच गया है। प्रदेश में पहले चरण में 19 अप्रैल को 6 सीटों पर वोटिंग होगी, जहां पर अब चुनाव प्रचार भी खत्म की ओर है। भाजपा इस बार प्रदेश की 29 सीटों के जितने के लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में उतरी है। वहीं कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है। प्रदेश की पांच लोकसभा सीटें ऐसी है जहां भाजपा और कांग्रेस में कांटें की टक्कर देखने को मिल रही है ।
1-छिंदवाड़ा में कांटे का मुकाबला-छिंदवाड़ा लोकसभा सीट दरअसल भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई वाली सीट बन गई है। मिशन-29 के लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में उतरी भाजपा ने छिंदवाड़ा सीट जितने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार नकुलनाथ और भाजपा उम्मीदवार बंटी साहू के बीच कांटे का मुकाबला है। विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने ताल ठोकने वाले विवेक कुमार बंटी साहू को एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा टिकट देकर नकुलनाथ के सामने मैदान में उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है।
भाजपा ने छिंदवाड़ा जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने छिदवाड़ा के कमान अपने हाथों में लेते हुए रोड शो के साथ पार्टी के नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक की। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपना गढ़ बचाने के साथ अपने बेटे और कांग्रेस प्रत्याशी नकुलनाथ का सियासी भविष्य भी सुरक्षित रखना चाहते है।
गौरतलब है कि 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी भाजपा कांग्रेस के अभेद दुर्ग कहलाने वाली छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर जीत नहीं दर्ज कर सकी है। 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भाजपा छिंदवाड़ा जिले में अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। ऐसे में अब भाजपा जो लोकसभा चुनाव में इस बार सभी 29 लोकसभा सीट जीतने के लक्ष्य के साथ उतरी है उसके सामने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर भगवा लहराना एक बड़ी चुनौती है।
2-मंडला में उलटफेर की आंशका-प्रदेश में चरण में मध्यप्रदेश जिन 6 सीटों पर वोटिंग होगी उसमें मंडला लोकसभा सीट भी शामिल है। मंडला में भी चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प नजर आ रहा है। मोदी मंत्रिमंडल में शामिल फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार है, जिनका सीधा मुकाबला पूर्व मंत्री ओमकार सिंह मरकाम से है। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में निवास सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी ओमकार सिंह मरकाम की आदिवासी वोटर्स में गहरी पैठ और सहज स्वाभाव होने के चलते वह भाजपा को कड़ी चुनौती रहे है।
3-रतलाम में मुकाबला दिलचस्प-आदिवासी वोटर्स के बाहुल्य वाली झाबुआ लोकसभा सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प नजर आ रहा है। कांग्रेस ने रतलाम से पूर्व मंत्री कांतिलाल भूरिया को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं भाजपा ने कैबिनेट मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता नागर चौहान को चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया की पहचान बड़े आदिवासी नेता के तौर पर होती है और उनकी आदिवासी वोटर्स में तगड़ी पकड़ मानी जाती है। कांतिलाल भूरिया रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से 5 बार सांसद रहे चुके है । वहीं 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव कांतिलाल भूरिया को भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया से और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार गुमान सिंह डामोर से हार का सामना करना पड़ा था।
भाजपा उम्मीदवार अनीता सिंह चौहान जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी है। पार्टी ने महिला चेहरे के तौर पर उन्हें मैदान में उतारा है। संसदीय क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से पिछले चुनाव में चार पर भाजपा, तीन पर कांग्रेस और एक पर बीएपी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट में अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, ठंडला, पेटलावाद, रतलाम रूरल, रतलाम सिटी और सैलाना विधानसभा शामिल हैं।
4-राजगढ़ हाईप्रोफाइल लोकसभा सीट-कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चुनावी मैदान में उतरने के चलते राजगढ़ हाईप्रोफाइल लोकसभा सीट हो गई है। राजगढ़ में दिग्विजय सिंह का मुकाबला दो बार से लगातार चुनाव जीत रहे भाजपा उम्मीदवार रोडमल नागर से है। भाजपा उम्मीदवार के नामांकन में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के आने से सीट की अहमियत का पता चलता है।
दरअसल राजगढ़ लोकसभा सीट के पहचान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गढ़ के रूप में होती रही है। 1984 में दिग्विजय सिंह पहली बार राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे। वहीं 1991 में दिग्विजय सिंह आखिरी बार राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। करीब तीस साल (1984 से 2014) 2014 तक राजगढ़ लोकसभा सीट कांग्रेस के गढ़ के रूप में पहचानी जाती थी तो इसका कारण दिग्विजय सिंह ही थे। दिग्विजय सिंह खुद दो बार राजगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए तो उनके भाई लक्ष्मण सिंह पांच बार सांसद चुने गए। 2014 में मोदी लहर में राजगढ़ के किले पर भाजपा ने अपना कब्जा जमाया। 2014 और 2019 में लगातार दो बार भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर ने राजगढ़ लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। ऐसे में इस बार खुद दिग्विजय सिंह के चुनावी मैदान में उतरने से चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो चला है।
मुरैना में कांग्रेस-भाजपा में मुकाबला- चंबल अंचल की मुरैना लोकसभा सीट में चुनावी मुकाबला इस बार बेहद कड़ा नजर आ रहा है। भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर और कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू के बीच यहां सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। सत्यपाल सिंह सिकरवार के भारी भरकम पॉलिटिक्स बैकग्राउंड और कांग्रेस की एकजुटता से यहां मुकाबला बेहद कांटे का हो चला है।
मुरैना में भाजपा की ताकत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और राम लहर है, जबकि व्यक्तिगत छवि के मामले में कांग्रेस के सत्यपाल भाजपा के शिवमंगल पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा के कद्दावर नेता विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर इसी क्षेत्र से हैं। उनकी सिफारिश पर ही शिवमंगल को टिकट मिला है। इसलिए इस चुनाव से उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है। ऐसे में मुरैना में जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो 4 जून को पता चलेगा।