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अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद AAP के सामने अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती?

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विकास सिंह

, शुक्रवार, 22 मार्च 2024 (15:00 IST)
लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली शराब घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद अब आम आदमी पार्टी के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। शराब घोटाले में पहले दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, फिर पार्टी के सांसद संजय और अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से आम आदमी पार्टी का एक तरह से पूरा शीर्ष नेतृत्व सालाखों के पीछे पहुंच गया है। केजरीवाल की गिरफ्तारी ऐसे समय हुई है जब लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है और अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक है।

AAP के सामने अस्तित्व की चुनौती?-शराब घोटाले में ईडी अब पूरी आम आदमी पार्टी को घेरने की तैयारी में है। ईडी पार्टी को भी पूरे मामले में आरोपी बना सकती है। ईडी का आरोप है कि पार्टी ने गोवा विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों को रिश्वत मे मिले पैसे चुनाव लड़ने को दिए। ऐसे में अब ईडी पार्टी को आरोपी बनाती है तो उसके बैंक खाते सीज होने के साथ उसकी मान्यता पर भी संकट खड़ा हो सकता है।

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली के साथ पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम और गोवा जैसे राज्यों में चुनावी मैदान में उतरकर भाजपा को सीधी चुनौती दे रही है। केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद पार्टी और उनके कार्यकर्ताओं के सामने अनिश्चितता की स्थिति आ गई है। पहले सत्येंद्र जैन,फिर मनीष सिसोदिया, उसके बाद संजय सिंह और अब अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी के सामने नया नेतृत्व खड़ा करने की चुनौती आ गई है।

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी के लोकसभा के पूरे चुनावी कैंपेन पर ग्रहण लग सकता है। अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार के गिरफ्तार होने से अब रणनीति के साथ चुनावी मैदान में पार्टी को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। केजरीवाल  की गिरफ्तारी के बाद पार्टी के नेता दावा कर रहे है कि केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाएंगे लेकिन इस पर भी बड़ा सवाल है। इसकी वजह दिल्ली की केंद्र के अधीन होना और उपराज्यपाल की भूमिका है।
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उपराज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति अरविंद केजरीवाल को पदमुक्त कर सकते है। ऐसे में दिल्ली की कमान कौन संभालेगा, यह भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में आम आदमी पार्टी में बिखराव देखा जा सकता है। शराब घोटाले में ही गिरफ्तार दिल्ली पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को एक साल से जमानत नहीं मिली है। अगर ऐसा ही केजरीवाल के साथ हुआ तो संभव है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी केजरीवाल को दूर रहना पड़ सकता है।

10 साल में अर्श से फर्श पर!- करप्शन के खिलाफ मुहिम शुरु कर 10 साल में क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर दो राज्यों में सरकार में काबिज आम आदमी पार्टी के सियासी सफर का विश्लेषण करे तो आम आदमी पार्टी ने जिस तेजी से अपना विस्तार किया और जिस तरह से उसका जनाधार बड़ा वह अब भाजपा के सामने बड़ी चुनौती बन गई थी। ऐसे में करप्शन जैसे मामले में अरविंद केजरीवाल की गिफ्तारी पार्टी के पूर्व अस्तित्व पर ही सवालिया निशान है।

2 अक्टूबर 2012 को महात्मा गांधी की जयंती से अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की थी। 2013 के दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। वहीं दो साल बाद 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा मे 67 सीटें जीतीं थी। वहीं पांच साल बाद 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी 53.57 फीसदी वोट हासिल कर 62 सीटों के साथ दिल्ली की सत्ता से फिर से अपना कब्जा जमाया।

दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपनी गहरी पैठ बनाई। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 23.7 फीसदी वोट हासिल करके 20 सीटें जीती थी वहीं 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में 42. 01 फीसदी वोट हासिल कर 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 92 सीटों पर जीत हासिल कर प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार बनाई।

दिल्ली में प्रतिष्ठा की लड़ाई वाले एससीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने धमाकेदार जीत कर भाजपा के 15 साल के एकछत्र राज को खत्म कर दिया है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में चुनावी मैदान मे कूदी आम आदमी पार्टी ने भाजपा को चुनाव में हर मोर्च पर मात दी। दिल्ली नगर निगम की 250 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की है।

वहीं गुजरात विधानसभा चुनाव में आदमी पार्टी ने 13 फीसदी के लगभग वोट शेयर हासिल कर 5 सीटों पर जीत हासिल की है। गुजरात में 13 फीसदी वोटर शेयर हासिल करने के साथ आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव को लेकर गुजरात के साथ राष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए एक मौका देख रही थी और राष्ट्रीय पार्टी  का दर्जा हासिल करने के बाद अब लोकसभा चुनाव में पार्टी जिस तरह से अक्रामक चुनाव प्रचार कर रही थी उससे उसके इरादे साफ थे।


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