Trinamool Congress history: वामपंथी दलों को उन्हीं के गढ़ पश्चिम बंगाल में सत्ता से बेदखल कर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने बता दिया कि उन्हें किसी भी सूरत में कमजोर नहीं आंका जा सकता है। कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी या एआईटीसी) का गठन किया था। 16वीं लोकसभा में टीएमसी चौथी सबसे बड़ी पार्टी (34 सीटें) थी।
दीदी का दबदबा : टीएमसी की मुखिया दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी हैं, वहीं पार्टी का चुनाव चिह्न 'जोरा घास फूल' है। 2 सितंबर 2016 को चुनाव आयोग ने टीएमसी को राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी। त्रिपुरा और मणिपुर में भी इसका जनाधार है। मणिपुर के 2012 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने 8 सीटें जीती थीं। त्रिपुरा और मणिपुर में भी इसका जनाधार है।
2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने स्पष्ट बहुमत मिला था। हालांकि 224 में उसे भाजपा से कड़ी चुनौती मिली थी। 2011 में पहली बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी राज्य की 8वीं मुख्यमंत्री हैं।
2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन जिसमें आईएनसी और एसयूसीआई (सी) शामिल थे, ने विधानसभा की 294 सीटों में से 227 सीटें जीती थीं। अकेले तृणमूल कांग्रेस ने 184 सीटें जीतीं। बाद में यह आंकड़ा 187 सीटों पर पहुंच गया। ममता से पहले राज्य के मुख्यमंत्री वामपंथी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य थे।
अटल कैबिनेट में रेलमंत्री रहीं ममता भाजपा विरोधी : अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रेलमंत्री रहीं ममता दीदी आज भाजपा की धुर विरोधी हैं। ममता को संगीत, कविताएं लिखने के साथ ही पेंटिंग का भी शौक है। उनकी पेंटिंग्स की नीलामी से पार्टी के लिए अच्छा-खासा फंड इकट्ठा होता है।