चुनाव में झड़ गए अहंकार के जाले

आलोक मेहता
भारत के मतदाताओं ने राजनीतिक अहंकार के जाले एक बार फिर साफ कर दिए। लोकसभा चुनाव में भाजपा के उग्र भगवा तेवर और कम्युनिस्टों की रक्तरंजित लाल तलवारों ने 71 करोड़ मतदाताओं को बेचैन कर दिया। कमजोर समझी जाने वाली कांग्रेस पार्टी और उसी तरह के प्रधानमंत्री को सत्ता से हटाने के लिए बनाया गया चक्रव्यूह सोनिया-राहुल की जोड़ी ने भेद दिया।

  राजनीतिक दलों, उग्रवादियों, अफसरों, धनपतियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों को बता दिया कि गरीब, पिछड़ा, अर्द्धशिक्षित मतदाता अधिक जागरूक और समझदार है। अब वह सांप्रदायिक, जातीय, क्षेत्रीय छलावे में फँसकर सरकार बनाने को तैयार नहीं है      
इस चुनाव ने राजनीतिक दलों, उग्रवादियों, अफसरों, धनपतियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों को बता दिया कि गरीब, पिछड़ा, अर्द्धशिक्षित मतदाता अधिक जागरूक और समझदार है। अब वह सांप्रदायिक, जातीय, क्षेत्रीय छलावे में फँसकर सरकार बनाने को तैयार नहीं है। वह राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी छवि और सच्चे अर्थों में आर्थिक विकास कर सकने वाले प्रतिनिधियों को सत्ता में लाना चाहता है।

दलित कार्ड के नाम पर भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को प्रश्रय देने वाली बहुजन समाज पार्टी और दलित-अल्पसंख्यक मोहरों के बल पर सत्ता में आने को बेताब कम्युनिस्ट पार्टियों को उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल की जनता ने भारी झटका दिया है। इस चुनाव के दौरान अनिश्चितता के बादल मँडराते रहे हैं।

आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में लगभग चमत्कारिक परिणाम आए हैं। परिवारवाद की सारी आलोचनाओं के बावजूद यह स्वीकारना होगा कि कांग्रेस की डोरियाँ संभालने वालीं सोनिया गाँधी, राहुल और प्रियंका ने ही कांग्रेस में नई जान डाल दी।

  कांग्रेस गठबंधन को लगभग स्पष्ट बहुमत मिलने से नई सरकार को आए दिन होने वाली ब्लैकमेलिंग से मुक्ति मिल जाएगी। करात, लालू, माया या मुलायम की दया पर निर्भर नहीं रहने से नई सरकार कड़वे फैसले ले सकेगी      
विभिन्न राज्यों का संगठनात्मक ढाँचा चरमराया हुआ था, लेकिन उसके पिछले रिकॉर्ड और नए खून के नए संकल्पों ने नया विश्वास पैदा किया। कांग्रेस गठबंधन को लगभग स्पष्ट बहुमत मिलने से नई सरकार को आए दिन होने वाली ब्लैकमेलिंग से मुक्ति मिल जाएगी। करात, लालू, माया या मुलायम की दया पर निर्भर नहीं रहने से नई सरकार कड़वे फैसले ले सकेगी।

चुनाव में कांग्रेस को अधिक पसीना नहीं बहाना पड़ा, लेकिन अब उसे सामाजिक-आर्थिक विकास की गति तेज करने के लिए खून-पसीना एक करना होगा। वहीं इस चुनाव से सबक लेकर राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी को आत्म-मंथन कर घिसे-पिटे फार्मूलों और बैसाखियों को छो़ड़कर राजनीति को स्वस्थ बनाने की सोचना होगा। नई लोकसभा और नई सरकार को परिवर्तन की नई लहर चलानी होगी।

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