'दादा ऐसे नहीं जैसी उनकी छवि बनाई गई'

Webdunia
- मनोज वर्मा
एक ओर जहाँ देश में ऐसे युवा नेताओं की लंबी सूची है जिन्हें राजनीति विरासत में मिली और अपनी विरासत के बल पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर प्रतिभा आडवाणी हैं जो यह नहीं चाहती कि उन्हें लोग सिर्फ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की बेटी होने के कारण जानें।

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लिहाजा प्रतिभा ने कई साल तक अपने नाम के आगे आडवाणी नहीं लगाया। स्वयं इन्फोटेनमेंट नाम से टीवी प्रोडक्शन कंपनी चलाने वाली प्रतिभा आडवाणी ने कहा कि, राजनीति पेशा नहीं है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिले। यदि देश और जनता के प्रति समर्पण की भावना नहीं है तो राजनीति करने का हक भी नहीं। भले कोई कितने बड़े राजनीतिक परिवार का क्यों न हो।

दादा ने (प्रतिभा अपने पिता आडवाणी को दादा कहती हैं) कभी भी मुझे या परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में आने के लिए प्रेरित नहीं किया। इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि दादा राजनीति में हमेशा से वंशवाद का विरोध करते रहे हैं और वह जो कहते हैं सो करते हैं। कई अहम मुद्दों और भावी योजनाओं पर प्रतिभा आडवाणी ने 'नईदुनिय ा' से विशेष बातचीत में अपने विचार रखे । पेश है उनसे बातचीत के अंशः-

प्रश्न : हाल ही में आपने गाँधीनगर में अपने पिता लालकृष्ण आडवाणी के लिए प्रचार किया और वोट माँगे। कैसा अनुभव रहा?
उत्तर : दादा पाँचवीं बार गाँधीनगर से लोकसभा चुनाव लड़े हैं। हर बार हमारा परिवार लोकतंत्र के इस पर्व में पूरे उत्साह से शामिल होता आया है। इस बार भी मैंने अपनी आहुति डाली। दादा के लिए सात-आठ दिन प्रचार किया। हम घर-घर जाते और लोगों से वोट माँगते। छोटी सभाएँ करते।

हालाँकि प्रचार के दौरान गाँधीनगर की जनता से हमें इतना प्यार मिला कि लोग कहते कि आपको आने की कोई जरूरत नहीं थी। दादा इस बार रिकॉर्ड मतों से जीतेंगे और प्रधानमंत्री बनेंगे। मैं मानती हूँ कि यह उनका दादा के लिए प्यार है।

भाजपा ने आडवाणी जी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया इसलिए लोगों में पहले से अधिक उत्साह दिखा। प्रचार के दौरान मुझे सबसे ज्यादा हैरान स्विस बैंक में जमा काले धन के बारे में गाँववासियों की जानकारी ने किया। उनसे जब मैं इस बारे में पूछती तो वे बताते थे कि उन्हें पता है कि स्विस बैंक में देश का पैसा जमा है। शहरी क्षेत्रों में मुझे महँगाई का मुद्दा अधिक प्रभावी लगा। खासतौर से महिलाएँ इस बारे में काफी बातें करती थीं। गाँधी नगर में कानून व्यवस्था इतनी अच्छी है कि रात को भी कार्यक्रमों में महिलाओं की अधिक भागीदारी देखने को मिलती थी।

प्रश्न: आप दादा के लिए पहले भी प्रचार करती रही हैं, कैसा अंतर देख रही हैं?
उत्तर: मुझे याद है, 1989-91 में जब बोफोर्स का मुद्दा काफी गर्माया हुआ था मैं तब भी दादा के प्रचार में गई थी। मुझे सबसे ब़ड़ा अंतर तो यही लग रहा है कि लोगों में जागरूकता आई है। लोग मुद्दों पर खास कर विकास की बात करते हैं। युवा पीढ़ी चाहती है कि हमारा देश दुनिया में सबसे शक्तिशाली बने। इसलिए दादा भी 21वीं शताब्दी का भारत बने, इस पर जोर देते हैं।

प्रश्न : राजनीति में वंशवाद तेजी से ब़ढ़ रहा है। इसे आप किस रूप में देखती हैं?
उत्तर: मैं मानती हूँ कि राजनीति पेशा नहीं है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिले। मेरे लिए राजनीति का मतलब देश और जनता के लिए पूर्ण समर्पण से है। यदि देश और जनता के प्रति समर्पण की यह भावना नहीं है तो राजनीति करने का हक भी नहीं। भले कोई कितने बड़े राजनीतिक परिवार का क्यों न हो।

हालाँकि मैं यह भी मानती हूँ कि यदि कोई व्यक्ति योग्य है और देश और जनता की ईमानदारी से सेवा कर सकता है तो भले वह राजनीतिक परिवार का क्यों न हो राजनीति में आना बुरा नहीं। बुरा तब लगता है जब पार्टी एक ही परिवार के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाए। परिवारवाद वह है जब सिर्फ एक ही परिवार के लोगों को महत्व मिले और पूरी पार्टी उस परिवार के नाम से पहचानी जाए।

प्रश्न: क्या आप राजनीति में आ रही हैं? दादा राजनीति में आने के लिए आपको प्रेरित नहीं करते?
उत्तर: मुझे अपना टीवी का कॅरिअर सबसे अधिक पसंद है। इसलिए राजनीति में आने का फिलहाल कोई सवाल नहीं है। मेरी राजनीति सिर्फ दादा के प्रचार तक सीमित है। दादा ने कभी भी मुझे या परिवार के किसी भी दूसरे सदस्य को राजनीति में आने के लिए प्रेरित नहीं किया। इसका एक बड़ा कारण तो मुझे यही लगता है कि दादा अपने पूरे जीवन में वंशवाद का विरोध करते रहे हैं।

प्रश्न : आपने राजनीति को करिअर क्यों नहीं बनाया?
उत्तर: मैं अपने बल पर कुछ करना चाहती हूँ ताकि लोग मुझे सिर्फ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की बेटी होने के कारण ही नहीं जानें-पहचानें। इसलिए मैंने कई साल तक अपने नाम के आगे आडवाणी नहीं लगाया। सिर्फ प्रतिभा लिखती थी।

फिल्मों का मुझे और दादा दोनों को शौक रहा है। अपने काम से अपनी पहचान बनाऊँ इसलिए 'स्वयं इन्फोटेनमेंट' नाम से टीवी प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई। मैं मानती हूँ कि यदि हम जनता की सेवा नहीं कर सकते तो हमें राजनीति में नहीं आना चाहिए और आँख मूंदकर अभिभावकों का अनुसरण नहीं करना चाहिए।

प्रश्न: आडवाणी जी को कैसी फिल्में अच्छी लगती हैं? उनके कौन से पसंदीदा हीरो हैं?
उत्तर: दादा को हर तरह की फिल्में अच्छी लगती हैं। संजीव कुमार उनके पसंदीदा हीरो रहे हैं। आमिर खान का अभिनय भी उन्हें अच्छा लगता है। 'तारे जमीं पर' और 'वेडनेस डे' फिल्में हाल ही में देखी थी।

प्रश्न: आडवाणी जी की छवि एक कट्टर नेता की क्यों बनी। आप क्या मानती हैं?
उत्तर: मैं मानती हूँ कि मेरे दादा ऐसे नहीं जैसी उनकी छवि बना दी गई। मुझे बड़ा दुख होता है जब उनके बारे में कट्टरवादी हैं जैसे शब्द सुनती या पढ़ती हूँ। दादा इतने कोमल हैं कि किसी का दिल नहीं दुखा सकते। वह सख्त भी नहीं हैं तो कट्टर कैसे हो सकते हैं? मीडिया ने भी उनकी नकारात्मक छवी बनाई। मैं उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखती हूँ, जिसके दिल में किसी के लिए भी मैल नहीं है। वे बहुत साधारण और सहज हैं। मुझे गर्व है कि मैं आडवाणी जैसे पिता और कमला जी जैसी माँ की बेटी हूँ। मेरी माँ वास्तव में अन्नूर्णा है।

प्रश्न: तो क्या रामजन्म भूमि आंदोलन के चलते उनकी छवि प्रभावित हुई?
उत्तर : नहीं, मैं ऐसा नहीं मानती। अयोध्या आंदोलन वैचारिक आंदोलन था। उस आंदोलन से भाजपा और दादा दोनों को ही राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिली।

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