परिवार अखाड़े की सेवा में

Webdunia
रविवार, 3 मई 2009 (18:55 IST)
दिल्ली से धनंज य
अभी देश के आधे दर्जन से अधिक परिवार ऐसे हैं जो 16 मई के बाद 7, रेस कोर्स रोड स्थित प्रधानमंत्री के बंगले का अगला निवासी बनने की हसरतें लिए हुए अपने-अपने घरों के मुखिया की लोकसभा चुनाव में जीत के लिए कड़ी धूप में एड़ी-चोटी का पसीना एक कर रहे हैं।

उनके परिवार के लोग लोकसभा चुनाव क्षेत्र में उनके लिए वोट माँगने के साथ-साथ ये दुआएँ भी माँग रहे हैं कि उनके पीएम बनने की आस पूरी हो। जाहिर है जो नेता इस कुर्सी को पाने में पीछे रह जाएँगे, उनके साथ-साथ उनके परिवारवालों के भी दिल टूटेंगे।

इनमें कोई बेटी अपने 'डैडा' को उस गद्दी पर आसानी देखने को आतुर है तो कोई बहन अपने भाई का राजतिलक देखने को बेताब है, लेकिन में से किसी एक परिवार के मुखिया को ही देश का मुखिया बनना है इसलिए जाहिर है एक परिवार की हसरत जहाँ पूरी होगी, इस पद पर नजरें टिकाए बाकी परिवारों की दर्जनों ख्वाहिशें टूटेंगी।

पीएम पद के लिए वेंटिंग (इंतजार) में लगे इनमें से कुछ परिवारों के लिए इतना ही कहा जा सकता है - भगवान अगर इन परिवारों की मुरादें पूरी न हों तो उन्हें उस दुःख को सहने की शक्ति देना। महान नाटककार शेक्सपीयर ने अपने चर्चित नाटक मैकबेथ में महत्वाकांक्षा को एक विनाश करने वाला अवगुण (फैटल फ्लॉ) करार दिया था।

तमाम गुणों से युक्त सेनापति मैकबेथ की राजा बनने की महत्वाकांक्षा ही उनकी शिकस्त का कारण बना। इस महत्वाकांक्षा को हवा दी थी उनकी पत्नी ने। पता नहीं पीएम बनने की इस महत्वाकांक्षा को नेताओं के परिवार वालों ने हवा दी है या नहीं लेकिन किसी-किसी मामले में यह महत्वाकांक्षा पार्टी, सिद्धांत व देश से बड़ा दिख रहा है।

देश के आधे दर्जन से अधिक परिवारों की हसरतें इसलिए भी परवान चढ़ रही हैं क्योंकि गठबंधन के इस दौड़ में किसी को पता नहीं कि 16 मई के बाद ऊँट किस करवट बैठेगा, इसलिए इन परिवारों में बहुतों को तो बिल्ली के भाग से छींका टूटने की घटना का ही आसरा है।

पीएम बनने की महत्वाकांक्षा के कीड़े का काटा अभी पानी नहीं माँग रहा। स्थिति यह है कि सत्ता को अपनी ठोकरों पर रखने-दिखने वाले नेता माकपा के महासचिव प्रकाश करात भी इस रेस शामिल हो गए हैं। तो अगर उनकी बीबी वृंदा करात के ख्वाब के पर लग गए हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

हाँ, अगर कहीं उनके भाग्य से ही छींका टूटा तो इस तोहमत का सामना तो करना ही पड़ेगा कि माकपा के बुजुर्ग नेता ज्योति बसु के सामने आए पीएम पद के निवाले को उन्होंने कैसे नीचे गिरा दिया, उनके परिवार के 7, रेसकोर्स बंगले में रहने के सपने चूर-चूर कर डाला और देखो जब अपना वक्त आया तो किस तरह लपक लिया।

इन परिवार वालों से भले तो प्रधानमंत्री पद के वे कुँवारे व कुँवारियाँ दावेदार हैं जो निपट अकेले हैं। उत्तरप्रदेश की मु्‌ख्यमंत्री मायावती, तमिलनाडु के पोज गार्डन की रानी कुमारी जयललिता, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगर प्रधानमंत्री बनने की हसरत पूरी नहीं भी हुई तो वे खुद दुःखी होंगे पर उनके परिवार पर तो कोई पहाड़ नहीं टूटेगा ।

बहरहाल, 2009 के जारी लोकसभा चुनावों के बाद इस पद के मौजूदा दावेदारों में जो भरे-पूरे परिवार वाले नेता हैं वे हैं -लालकृष्ण आडवाणी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, मराठा क्षत्रप शरद पवार, केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान, रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, सीपीएम महासचिव प्रकाश करात, एच.डी. देवेगौड़ा।

इनमें से कुछ ऐसे नेताओं के परिवार वाले यह हसरत पूरी नहीं होने के दुःख को आसानी से झेल जाएँगे लेकिन कुछ परिवारों पर यह दुःख भारी पड़ेगा। भाजपा के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी के परिवार की यह हसरत दशकों पुरानी है। यह परिवार इस चुनाव में संभवतः अंतिम बार यह सपना देख रहा है।

हालाँकि उनकी पत्नी कमला आडवाणी अभी गुजरात के गाँधीनगर में यह कह रही हैं कि चुनाव का क्या रिजल्ट होगा, मुझे उसकी जरा भी परवाह नहीं लेकिन पूरा देश और संघ परिवार जानता है कि इस परिवार के लिए यह चुनाव जीवन और मरण जैसा है।

आडवाणी पीएम नहीं बन पाए तो उनके परिवार में जिसे सबसे अधिक झटका पहुँचेगा, वह हैं उनकी लाडली बेटी प्रतिभा आडवाणी। प्रधानमंत्री की बेटी कहलाने से ज्यादा अपने डैडा सपने के पूरा होने का जज्बा है उसमें।

अब मिलिए इस पद के दूसरे उम्मीदवार युवराज राहुल गाँधी से। प्रियंका टिफिन के साथ उसके चुनाव क्षेत्र अमेठी में दिनभर खाक छानती रहीं। इस दौरान उन्होंने बड़ी अदा के साथ खिलखिलाते हुए कह भी दिया कि वे अपने राहुल भैया को दूल्हे व पीएम के रूप में देखना चाहती हैं। रोज 50 किलोमीटर की यात्रा, दिनभर में करीब दर्जन सभाएँ।

बीच में ही टिफिन खोलकर मुँह में कुछ निवाला डाल लिया। फिर अपनी सारी ऊर्जा झोंक दी। माँ पूरे देश में घूमकर कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का परिवार एक बार 7, रेसकोर्स बंगले में रह चुका है सो इस परिवार की हसरत दाँव पर नहीं है। यह बंगला छोड़ना भी पड़ा तो उतना गम नहीं होगा, लेकिन उनका परिवार भी अपने अंदाज में मनमोहन सिंह को फिर से इस पद पर देखने की कवायद में जुटा है।

मराठा क्षत्रप व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भी लंबे समय से पीएम का पावर हासिल करने के सपने देख रहे हैं। उनकी बेटी सुप्रिया सुले इस बार अपने पिता को गद्दी तक ले जाने के लिए तैयार हो गई हैं।

मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने का ताना-बाना जहाँ उनके सखा और पार्टी महासचिव अमरसिंह बुन रहे हैं वहीं उनके भाई रामगोपाल सिंह यादव और बेटे अखिलेश यादव ही नहीं सपा सुप्रीमो के भतीजे धर्मेन्द्र यादव की लोकसभा क्षेत्र में यह मुनादी गूँजती हुई सुनी जा सकती है कि यदि अधिक सीटें हाथ लगीं तो 'नेताजी' प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं। यही नहीं, राजनाथसिंह के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे उनके ज्योतिषी सुधांशु त्रिवेदी तो कब की उनकी आँखों में प्रधानमंत्री पद का सपना बो चुके हैं।

इस बार प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में तीन बिहारी क्षत्रपों के नाम भी शुमार हैं। इनमें राजद सुप्रीमो लालूप्रसाद यादव और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी ख्वाहिश समय-समय पर जाहिर भी की है। मुख्यमंत्री नी‍तीश कुमार नपे-तुले बयान देने और इशारों में बातें करने में माहिर हैं। वे अपनी महत्वाकांक्षा कभी सार्वजनिक नहीं करते, लेकिन उनका नाम भी संभावित प्रधानमंत्री पद के संभावित दावेदारों में रहा है।

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