- विनोद अग्निहोत्र ी ' ऐसे नसीब होते जो हम तेरे करीब होते, गर गरीब भी होते फिर भी खुशनसीब होते।' शायरों के शहर रामपुर में गली-गली में शेरो-शायरी करते हुए लोग ऐसे शेर गुनगुनाते मिल जाते हैं जो यहाँ के चुनाव पर पूरी तरह फिट बैठते हैं।
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यह शेर भी शहर के एक चौराहे पर खड़े शौकत मियाँ ने तब सुनाया जब उनसे पूछा गया कि आखिर आजम खान जयाप्रदा से इतने खफा क्यों हैं जबकि खुद उनके मशविरे पर ही मुलायमसिंह यादव ने पिछले चुनाव में दक्षिण भारत की इस स्वप्न सुंदरी को नवाबों के शहर में भेजा था।
शौकत मियाँ कहते हैं- हाथोंहाथ लिया था आजम खान और रामपुर ने जयाप्रदा को और मुख्तार की खुदमुख्तारी और नूरमहल की नूरबानो दोनों को धता बता दिया था। लेकिन जयाप्रदा का अमरसिंह के बेहद करीब होना, हर बात में उन्हें आगे करना, रामपुर के लाड़ले को दूर से ही सलाम करना और तवज्जो न देना अखर गया आजम को और इसी वजह से सपा की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं आजम खान।
रामपुर में ऐसी राय रखने वाले शौकत मियाँ अकेले नहीं हैं। आम राय यही है कि अगर जयाप्रदा ने आजम को तवज्जो दी होती, उनके हिसाब से खुद को ढाला होता, हर काम में उनका मशविरा माना होता, अमरसिंह से दूरी बना ली होती तो शायद आज आजम फिर उनका झंडा बुलंद करते। तब न कल्याणसिंह कोई मुद्दा होते और न ही दूर से दिखने वाले चमकते चाँद को आजम इस तरह कोसते।
आजम भले ही कल्याणसिंह को लेकर मुलायम और अमर पर आग उगल रहे हैं, लेकिन असली दर्द यही है कि जयाप्रदा ने इशारा नहीं समझा सिर्फ बड़ा भाई कहकर किनारा कर लिया। बताया जाता है कि कई बार दिल्ली में उनके घर जाकर भी आजम ने उन्हें अपने पाले में खींचना चाहा।
सपा की सियासत में अमर से दूरी बनाने की सलाह भी इशारों में दी लेकिन जया अमर का पाला छोड़कर इधर आने को राजी नहीं हुईं। हादी खाँ एक फोटो दिखाते हैं जिसमें कल्याणसिंह, मुलायमसिंह यादव, आजम खान और कई नेता खड़े हैं लेकिन सबसे ज्यादा आजम ही खुश नजर आ रहे हैं।
वे कहते हैं- 'जब कल्याणसिंह का बेटा राजवीर और सहयोगी कुसुम राय मुलायम सरकार में मंत्री बनीं तबका है यह फोटो। इसे गौर से देखिए इसमें सबसे ज्यादा खुश आजम हैं क्योंकि तब लालबत्ती उसूलों पर भारी पड़ गई थी। तब कभी आजम को कल्याण और बाबरी मस्जिद की शहादत याद नहीं आई।'