दिल लगाओ तो निभाओ भी

कंचन व मिताली

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कुछ दिनों पहले हम एक जनरल स्टोर में कुछ सामान लेने गए। स्टोर के पास ही एक एसटीडी बूथ भी था। जहाँ पर दो किशोर लड़कियाँ जो मुश्किल से 13-15 साल की होंगी मौजूद थीं। पर आगे की घटना हमें और भी अचंभित कर गई। उनमें से एक लड़की फोन पर बात करते हुए कह रही थी, "प्लीज आप मेरा प्यार तो मत ठुकराओ।" उसकी बात खत्म होने के बाद दूसरी लड़की ने भी फोन पर कुछ इसी तरह की बात की। उनकी इस उम्र में की गई इस तरह की बातचीत निश्चित ही कई सवाल खड़े करती है।

वह उम्र जो कभी मासूमियतभरी होती थी आज समय से पहले ही परिपक्व हो रही है। दरअसल फिल्मों, पत्रिकाओं, इंटरनेट, टीवी आदि पर वयस्क सामग्री देखकर किशोर उम्र के लड़के-लड़कियाँ उस ओर आकर्षित हो रहे हैं। छोटी उम्र में ही "प्यार" जैसे परिपक्व और गहरे भाव को वे मजाक की तरह ले रहे हैं। फैशनेबल कहलाने के लिए 'ब्वॉयफ्रेंड' व 'गर्लफ्रेंड' जैसे रिश्ते बना रहे हैं।

आज से चंद साल पहले तक भी यह बातें इतनी "कॉमन" नहीं थी, पर आज की पीढ़ी की जिंदगी में यह जरूरत के तौर पर शामिल हो गई है। टीनएजर्स में इस ट्रेंड के आने का रास्ता युवाओं से जुड़ा है। वे अपने बड़ों को जिस तरह का व्यवहार करते देखते हैं, वैसा ही खुद भी करना चाहते हैं। फिर रिश्तों से जुड़े कमिटमेंट के मामले में तो आजकल युवा क्या उनके बड़े तक बचकाना व्यवहार कर रहे हैं। उम्रभर के रिश्तों को झटके से कम समय में तोड़ देना या झूठी शान बघारने के लिए रिश्ते बनाना आज आम होता जा रहा है। जिसके कारण अपराध भी बढ़ रहे हैं और तमाम तरह की मानसिक परेशानियाँ भी।

प्यार करना या किसी रिश्ते में बँधना बुरी बात नहीं है। बशर्ते आप उसे सही उम्र में सही ढंग से करें और सही मंजिल पर ले जाएँ। 13-14 साल की उम्र प्यार की महत्ता और गहराई को समझने के लिए बहुत कच्ची है। जाहिर है कि इस उम्र में यह रिश्ता भी बचकाना-सा ही होता है। स्कूली लड़कियों के लिए ब्वॉयफ्रेंड अच्छी चॉकलेट और महँगे गिफ्ट पाने का जरिया है तो वहीं लड़कों के लिए गर्लफ्रेंड का होना शान की बात है। उधर युवाओं में मूवी देखने और उच्चस्तरीय जीवन जीने की चाह में गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड वाले रिश्ते रखना अब आम बात है।

जाहिर है कि आज प्यार करना अधिकतर खेल के तौर लिया जा रहा है और चुभने वाली बात यह है कि स्कूल और कॉलेज जाने वाले किशोर और युवा "यूज एंड थ्रो" (इस्तेमाल करो और फेंको) की पॉलिसी अपना रहे हैं। प्यार करना उन्हें बड़ा आसान लगता है, पर इसे निभाना या किसी रिश्ते में बदलना बंधन लगता है। यह सिर्फ बच्चों या युवाओं तक सीमित नहीं रहा लगभग 80 प्रतिशत लोग इसी चलन को अपना रहे हैं, उन्हें अपना साथी बदलने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती। आज एक घर में रहते हुए भी बच्चे अपने पैरेंट्स से दूर हो गए हैं।

व्यस्त माता-पिता भी बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते कि वे घंटों फोन पर किससे बात कर रहे हैं या इंटरनेट पर किससे चैटिंग कर रहे हैं? उधर माता-पिता के बीच बढ़ता तनाव तथा विवाहेत्तर संबंध आदि के चलते बच्चे भी या तो कुंठा में जीने लगते हैं या फिर वे भी उसी रास्ते पर चल पड़ते हैं।

आश्चर्यजनक बात है कि अब तो "फेसबुक" पर "रिलेशनशिप स्टेटस" अपडेट करने तक के लिए किशोरों को किसी की जरूरत नहीं है। आज किशोरों के आसपास की दुनिया तेजी से बदली है। उनके पास असीमित संसाधन हैं और जानकारी के ढेर स्रोत। जाहिर है कि इस चीज ने उन्हें मानसिक रूप से वक्त से पहले की परिपक्वता भी दी है। इसलिए रिश्ते बनाने के मामले में भी वे जल्दबाजी करते हैं, लेकिन जरूरत सिर्फ इस बात की है कि उन्हें उस रिश्ते की कद्र हो तथा वे प्रेम की गहराई को भी समझें।

हालाँकि इस बहाव में ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो मजबूती से अपने आपको संभाले हुए हैं। अगर वे कोई नया रिश्ता बना रहे हैं तो उसे ताउम्र निभाने की ताकत भी उनमें हैं। साथ ही अपने रिलेशन्स को लेकर व्यावहारिक सोच-समझ भी वे रखते हैं। कई ऐसे किशोर तथा युवा भी हैं, जो अपने रिश्ते को लेकर बेहद गंभीर हैं और इस मामले में वे अपने माता-पिता से भी पारदर्शिता रखते हैं। अपने "प्रेम" के प्रति गंभीरता और दायित्व उन्हें जीवन में कुछ करने के लिए प्रेरित करता है।

ऐसे किशोर तथा युवा अपने साथी की प्रेरणा से अपना करियर, अपना जीवन बेहतर तरीके से संवार सकते हैं। अपने साथी के प्रति ईमानदारी व समर्पण का भाव उन्हें आत्मिक संतोष देता है। उनकी आपसी समझ समय के साथ-साथ इतनी गहरी होती जाती है कि एक-दूसरे की कमियाँ व खामियाँ वे नजरअंदाज करना सीख जाते हैं, जिससे उनका रिश्ता बना रहता है। एक-दूसरे की भावनाओं, विचारों और आदतों का वे सम्मान करते हैं। यह "बॉडिंग" उन्हें अंदर से बेहद खुश और मजबूत बनाती है और वे जिंदगी में आने वाली मुश्किलों को आसानी से सुलझा लेते हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि प्रबल और सच्चा प्रेम जीवन को स्थिरता प्रदान करता है, यह बात सभी समझ पाएँ। अगर इतना समझ गए तो किशोर क्या बड़े भी रिश्तों की कद्र करना सीख जाएँगे।

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