श्रीकृष्‍ण्‍ा-रुक्मिनी की प्रेम-कथा

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विदर्भ के राजा की पुत्री थी रुक्मिनी, जिन्‍होंने कृष्‍ण्‍ा के शौर्य और तेज के बारे में काफी सुन रखा था, उनके पिता भी चा‍हते थे‍ कि कृष्‍ण का विवाह उनकी बेटी से हो जाए। लेकिन जरासंध के होते हुए यह संभव नहीं था। इधर रुक्मिनी मन-ही-मन कृष्‍ण को अपना पति मान चुकी थी और उनसे ही विवाह के सपने सँजोने लगी थी, इधर कृष्‍ण ने भी रुक्मिनी के रूप-गुणों की चर्चाएँ सुनी थी और वो भी उनसे मिलने को आतुर थे। अब दोनों का मन एक-दूसरे से मिलने के लिए विचलित होने लगा था। रुक्मिनी अपने हृदय से मात खा चुकी थीं और उनसे श्रीकृष्‍ण से दूर रह पाना संभव नहीं हो पा रहा था और उन्‍होंने अपने मन की बात संदेश के जरिए श्रीकृष्‍ण के पास भिजवा दी।

श्रीकृष्‍ण अपने भ्राता बलराम के साथ रुक्मिनी का हरण करने पहुँचे। रुक्मिनी ने स्‍वयं ही अपने अपहरण की योजना श्रीकृष्‍ण को बताई थी। श्रीकृष्‍ण ने उनका हरण कर उनसे विधिवत् विवाह किया और उन्‍हें अपनी सबसे प्रिय रानी बना कर रखा। इतने युग बीतने के बाद भी इनकी प्रेमकथा लोगों के स्‍मरण में ताजा है।

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