प्यार और अधिकार का संबंध

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' तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल, बड़ी मुश्किलों से फिर संभलता है दिल'


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जी हाँ, बहुत सारे लोगों की प्यार में यही हालत हो जाती है। मेरा प्यार केवल मेरा है, किसी से उसने हँस के बात भी कर ली तो बस फिर तो कयामत ही है। जब आपको किसी से प्यार हो जाता है तो यह स्वाभाविक है कि एक-दूसरे के ऊपर अधिकार जमाना अच्छा लगे। परंतु यह अधिकार एक सीमा में रहे तभी अच्छा लगता है। यदि यह प्यार और यह अधिकार किसी की स्वतंत्रता पर रोक लगाता है तो समझिए 'गड्डी विच हिंड्रेस' (व्यवधान) आने वाला है।

' ब्रीदिंग स्पेस' की जरूरत सभी को होती है। यदि वह स्पेस न मिले तो संबंधों में घुटन होने लगेगी। वैसे भी यह कहाँ का इंसाफ है कि कोई आपसे प्यार करे और दुनियाभर से कट जाए। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि रिश्तों को बनाए रखने हेतु स्वतंत्रता और अधिकार भावना का एक अच्छा संतुलन जरूरी होता है। जैसे ही यह संतुलन बिगड़ता है, रिश्ते भी टूट जाते हैं।

वैसे पजेसिवनेस हमेशा रिश्ते तोड़ती नहीं, जोड़ती भी है। पजेसिवनेस की भावना एक तरह से किसी के प्रति हमारे ध्यान (अटेंशन) को व्यक्त करती है एवं प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान की जरूरत होती है। बस हमें यह पहचानना आना चाहिए कि दूसरे व्यक्ति को किस समय ध्यान की जरूरत है।
  तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल, बड़ी मुश्किलों से फिर संभलता है दिल' जी हाँ, बहुत सारे लोगों की प्यार में यही हालत हो जाती है। मेरा प्यार केवल मेरा है, किसी से उसने हँस के बात भी कर ली तो बस फिर तो कयामत ही है।      


पजेसिवनेस अर्थात अधिकार जमाने की प्रवृत्ति किसी-किसी के व्यवहार में ही होती है। ऐसे लोग हमेशा दूसरों के ऊपर अधिकार जताते रहते हैं, फिर चाहे वह कोई भी रिश्ता हो, इनके लिए संतुलन की बात समझना बहुत जरूरी होता है। हो सकता है कि उनकी पजेसिवनेस में बहुत ज्यादा प्यार भी छिपा हो, परंतु यह भावना रिश्ते हेतु नकारात्मक भी साबित हो सकती है।

यदि हम प्यार के रिश्ते की बात करें, तो इस रिश्ते में पजेसिवनेस होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह वह रिश्ता होता है जिसमें व्यक्ति उम्मीद करता है कि सामने वाला केवल उसका होकर रहे। इसके बावजूद यह भी ध्यान रखने की जरूरत होती है कि कहीं व्यक्ति का अटेंशन ओवरलिमिट तो नहीं हो रहा है?

रिश्ता प्यार का हो या कोई दूसरा, मुट्ठी में बंद रेत की तरह होता है। रेत को यदि खुले हाथों से हल्के-से पकड़ो तो वह हाथ में रहती है। जोर से मुट्ठी बंद करके पकड़ने की कोशिश की जाए तो फिसलकर निकल जाती है। यही हाल रिश्तों का भी होता है।

यदि सम्मान एवं स्वतंत्रता के हल्के हाथों से रिश्तों को थामा जाए तो वे बने रहते हैं। यदि उन्हें जबर्दस्ती हक जताकर बनाए रखने का प्रयास किया जाए तो मुट्ठी में बंद रेत की तरह हाथों से निकल जाते हैं। इसलिए अपने प्रेम के प्रति पजेसिवनेस रखें, लेकिन एक सीमा तक।
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