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Lunar Eclipse 2025:क्या चंद्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है, या इसके पीछे छिपा है भय और विध्वंस का खौफनाक सच?

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 4 सितम्बर 2025 (16:23 IST)
Lunar eclipse 2025 India Sutak period: कुछ वर्ष पहले चंद्र और सूर्य ग्रहण को मात्र एक खगोलीय घटना माना जाता था और ज्योतिष तथा भारतीय धर्म की अवधारणा को अंधविश्वास माना जाता था। सूतक काल के नियमों को लोग मानते नहीं थे परंतु जैसे जैसे विज्ञान की समझ बढ़ने लगी है तो अब यह जाना जाने लगा है कि चंद्र ग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं रही है यह सच में ही भय और विध्वंस का खौफनाक सच है। कैसे? आओ जानते हैं।
 
कैसे होता है चंद्र ग्रहण?
सूर्य और चंद्रमा के बीच जब धरती आ जाती है तो चंद्रग्रहण होता है और जब सूर्य एवं धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है। ग्रहण के दौरान ग्रहों की छाया एक दूसरे पर पड़ती है। यह छाया धरती पर पड़े या चंद्रमा पर दोनों ही स्थिति में दोनों ही ग्रहों पर इसका असर होता है। दूसरा जब किसी विशेष कारण से सूर्य की किरणें धरती पर नहीं पड़ती है तो भी इसका असर धरती और चंद्रमा दोनों पर ही पड़ता है।
 
चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा की रात को हो सकता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक सीधी रेखा में आते हैं। इस दौरान धरती की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। यदि छाया पूरी तरह से चंद्रमा को ढक लेती है तो इसे पूर्ण चंद्रग्रहण कहते हैं। इस दौरान चंद्रमा गहरा लाल रंग का दिखाई देता है क्योंकि सूर्य की कुछ रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल से छनकर उस तक पहुंचती है। जब चंद्रमा का केवल एक हिस्सा पृथ्वी की छाया में आता है तो इसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहते हैं। जब चंद्रमा केवल पृथ्वी की हल्की पेनुम्ब्रा छाया से गुजरता है तो उस उपछाया चंद्रग्रहण कहते हैं। 
 
चंद्र ग्रहण का धरती पर प्रभाव, क्या कहता है विज्ञान?
1. चंद्र ग्रहण के दौरान, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, जिससे इन तीनों का संयुक्त गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी पर कार्य करता है। इसका सबसे प्रमुख प्रभाव महासागरों में ज्वार-भाटा (tides) की तीव्रता में वृद्धि के रूप में देखा जाता है।
 
2. चंद्र ग्रहण के समय, चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी रुक जाती है। इससे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा से आने वाले प्रकाश में थोड़ी कमी आती है। इसके अतिरिक्त, चंद्रमा से पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाले ऊष्मा विकिरण में भी हल्की कमी होती है। इससे धरती के तापमान में हल्का सा प्रभाव पड़ता है।
 
3. चंद्र ग्रहण से मनुष्य के शरीर या मानसिक स्वास्थ्य पर कोई सीधा प्रभाव नहीं होता है परंतु कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि इस दौरान मानसिक बैचेनी बढ़ जाती है। भावुक लोगों पर इसका प्रभाव ज्यादा देखा गया है। इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि बहुत ज्यादा तनाव में रहने वाले लोगों आत्महत्या के विचार ज्यादा आते हैं। हालांकि वैज्ञानिक रूप से इनका कोई ठोस प्रमाण या आंकड़ा नहीं है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि संक्षेप में, चंद्र ग्रहण का मन पर जो भी प्रभाव पड़ता है, वह मुख्य रूप से हमारी मान्यताओं, सामाजिक व्यवहार और मनोवैज्ञानिक धारणाओं का परिणाम होता है, न कि स्वयं खगोलीय घटना का।
 
4. वैज्ञानिक अभी यह जांचने में लगे हैं कि ग्रहण के कारण धरती पर भूकंप या ज्वालामुखी जैसी कोई घटना घटती है या नहीं। क्या ग्रहण का प्राकृतिक आपदाओं से कोई संबंध है या नहीं। वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्र ग्रहण का प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, या तूफ़ान से कोई सीधा संबंध नहीं है लेकिन कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्र ग्रहण के दौरान, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। इससे इन तीनों के गुरुत्वाकर्षण बल का संयुक्त प्रभाव पड़ता है जो ज्वार भाटा का कारण बनता है तो निश्‍चित ही वह धरती या समुद्र के भीतर स्थित टेक्टोनिक प्लेटों पर भी प्रभाव डालता ही होगा। हालांकि -वैज्ञानिकों और खगोलविदों ने इस विषय पर कई शोध किए हैं और उन्हें अभी तक कोई भी ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जो चंद्र ग्रहण और प्राकृतिक आपदाओं के बीच किसी भी संबंध को साबित करता हो।
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भय और विध्वंस का खौफ क्यों है बरकरार:- 
1. भारत के कई ज्योतिषियों का मानना है कि चंद्र ग्रहण समुद्र पर गहरा असर छोड़ता है। चंद्र ग्रहण का प्रभाव समुद्र पर ज्यादा देखने को मिलता है। इससे समुद्र की लहरें बढ़ जाती है और समुद्री क्षेत्र में आंधी और तूफान बढ़ जाते हैं।
 
2. चंद्र ग्रहण का प्रभाव मानव मस्तिष्क भी गहरा असर डालता है क्योंकि हमारे शरीर में भी 70 प्रतिशत से अधिक जल है। इसलिए चंद्र ग्रहण मनुष्य के मन पर गहरा असर डालता है। चंद्र ग्रहण से मानव मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी के चलते राजनीतिक हलचल बढ़ जाती है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कई देशों में गृहयुद्ध के भी आसार हैं।
 
3. ज्योतिष के अनुसार चंद्र ग्रहण से भूकंप आते हैं इसे जल आपदा आती है। जब भी कोई ग्रहण पड़ता है या आने वाला रहता है तो उस ग्रहण के 40 दिन पूर्व तथा 40 दिन बाद अर्थात उक्त ग्रहण के 80 दिन के अंतराल में भूकंप कभी भी आ सकता है। कभी कभी यह दिन कम होते हैं अर्थात ग्रहण के 15 दिन पूर्व या 15 दिन पश्चात भूकंप आ जाता है। अधिकतर मौके पर भूकंप दिन के 12 बजे से लेकर सूर्यास्त तक और मध्य रात्रि से सूर्योदय के बीच ही आते हैं।
 
ग्रहण के कारण वायुवेग बदल जाता है, धरती पर तूफान, आंधी का प्रभाव बढ़ जाता है। समुद्र में जल की गति भी बदल जाती है। ऐसे में धरती की भीतरी प्लेटों पर भी दबाव बढ़ता है और और आपस में टकराती है। वराहमिहिर के अनुसार भूकंप आने के कई कारण है जिसमें से एक वायु वेग तथा पृथ्वी के धरातल का आपस में टकराना है।
 
4. चंद्र ग्रहण के 9 घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है, जिसे अशुभ माना जाता है। इस दौरान पूजा-पाठ, शुभ कार्य और भोजन करने की मनाही होती है। ज्योतिष मान्यता के अनुसार इस दौरान धरती के संपूर्ण जल का गुण धर्म बदल जाता है। इसलिए जल का उपयोग करते वक्त पहले उसमें तुलसी डाली जाती है। इसके बाद ही जल ग्रहण करते हैं। 
 
5. ज्योतिष में गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि माना जाता है कि इसका शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसी के साथ ही बच्चों को भी ग्रहण के दौरान सावधान रहने की सलाह दी जाती है। 
 
6. ऐसा माना जाता है कि ग्रहण की नकारात्मक ऊर्जा से भोजन दूषित हो जाता है। इसलिए ग्रहण शुरू होने से पहले ही भोजन कर लेना चाहिए। ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। 
 
7. ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट बंद रखे जाते हैं। देव प्रतिमाओं को भी ढक कर रखा जाता है। ग्रहण के दौरान पूजन या स्पर्श का निषेध है। केवल मंत्र जाप का विधान है। 
 
8. ग्रहण के दौरान यज्ञ कर्म सहित सभी तरह के अग्निकर्म करने की मनाही होती है। ऐसा माना जाता है कि इससे अग्नि देव रुष्ट हो जाते हैं। 
 
9. सूतक काल और ग्रहण के समाप्त होने के बाद घर शुद्धि, स्नान करने और दान देने का विधान है, ताकि व्यक्ति और उसके आसपास की नकारात्मकता दूर हो सके।

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