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मालवा की सियासत में भजन, भोजन और भंडारे का छौंक, मध्‍य प्रदेश की राजनीति को कहां ले जाएगा?

जब कैलाश विजयवर्गीय ने कहा— इंदौर के नेताओं ने भंडारों में पीएचडी कर रखी है

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नवीन रांगियाल

देश की सबसे स्‍वच्‍छ और अब स्‍मार्ट सिटी इंदौर को अपनी विशाल भंडारा परपंरा के लिए भी जाना जाता है, यहां सालभर किसी न किसी बैनर तले भंडारे आयोजित होते हैं, जिनमें हजारों लोग प्रसादी ग्रहण करते हैं। भंडारा आयोजन इंदौर की एक पुरानी परंपरा है, जो विशुद्ध रूप से धर्म और आस्‍था की छाप के साथ ही नजर आती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से इंदौर और यूं कहें कि पूरे मालवा की राजनीति में भी धार्मिक ‘भंडारों की एंट्री’ हो गई है। यह ‘धर्म के राजनीतिकरण’ की तरह था।
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भंडारों में आने वाली लाखों जनता और श्रद्धालुओं को समय के साथ राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपने लिए वोट बैंक की तरह देखना शुरू कर दिया। नेताओं के लिए यह इसलिए भी फायदेमंद था कि कथा और भंडारों की आड़ में वे बेहद आसानी से लोगों को अपनी तरफ खींच सकते थे। देखते ही देखते मध्‍यप्रदेश खासतौर से इंदौर की राजनीति में नेताओं ने भंडारों, धार्मिक आयोजन और कथावाचकों को ‘टेक-ओवर’ कर लिया। इसी सिलसिले में राजनीति में धर्म गुरुओं और कथा वाचकों की भी मांग देखने को मिली। अब तो कई दिग्‍गज नेता बाबाओं के दरबारों में माथा टेकते नजर आते हैं। आलम यह है कि ‘भजन, भोजन और भंडारे’ की सियासत इंदौर और मालवा की कई विधानसभा क्षेत्रों में चरम पर नजर आती है।

अपने ही नेता ने लगाया था आरोप : भाजपा नेता विक्रम वर्मा इंदौर और प्रदेश में भजन, भोजन और भंडारे की सियासत को लेकर अपनी ही पार्टी पर आरोप लगा चुके हैं। साल 2012 में उन्‍होंने कहा था— प्रदेश के भाजपा नेता जनता का विश्वास जीतने के लिए विकास की बात तो नहीं करते पर भोजन-भंडारे की राजनीति करते हैं।  

दो नंबर से राजनीतिक भंडारों का श्रीगणेश : इंदौर का विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 खासतौर से धार्मिक आयोजनों और भंडारों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र से भाजपा के दिग्‍गज नेता और राष्‍ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और उनके खास सिपहसालार माने जाने वाले विधायक रमेश मेंदोला आते हैं। दो नंबर विधानसभा को भाजपा का गढ़ माना जाता है, जिसमें विजयनगर, मालवा मिल, पाटनीपुरा, नंदानगर, नेहरूनगर, बजरंग नगर जैसे क्षेत्रों के साथ मिल क्षेत्र की जनता का ये नेता प्रतिनिधित्‍व करते हैं। यहां चुनावी काल के अलावा भी आए दिन धार्मिक कथाएं, भंडारे और श्रीमदभागवत जैसे आयोजन बेहद आम हैं। गणेशोत्सव के दौरान यहां लगातार 10 दिन भंडारा चलता है। अगर ये कहा जाए कि इंदौर के इसी विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्‍यादा धार्मिक राजनीति का छौंक नजर आता है तो शायद गलत नहीं होगा।

1992 में शुरू हुआ अन्न क्षेत्र : कैलाश विजयवर्गीय और भाजपा विधायक रमेश मेंदोला साल 1992 से इंदौर के नंदानगर स्थित साईं मंदिर में रोजाना अन्न क्षेत्र लगाते आ रहे हैं। इस भंडारे में महज 5 रुपए में जनता को भरपेट भोजन मिलता है। यहां रोजाना हजारों की तादात में गरीब लोग और श्रद्धालु भोजन करते हैं। इसके बाद के दौर पर नजर डालें तो मालवा-निमाड़ के कई क्षेत्रों में इस तरह के आयोजनों का एक सिलसिला निकल पड़ा।
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जब कैलाश ने कहा- भंडारे में तो हमारी पीएचडी है
इंदौर के विधानसभा क्रमांक एक से भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय को टिकट दिया गया है। हाल ही में कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर की ‘भजन, भोजन और भंडारे की सियासत’ वाली इस परिपाटी की अपने एक बयान से एक तरह से तस्‍दीक भी की है।

एक सभा को संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा था कि इंदौर के नंबर एक में भंडारे बहुत हुए हैं, लेकिन विकास नहीं हुआ है। फिर उन्‍होंने कहा कि भंडारे में तो हमारी पीएचडी है। हमारा मुकाबला कौन करेगा?  बता दें कि कैलाश के सामने कांग्रेस नेता संजय शुक्‍ला चुनावी मैदान में हैं।

कैलाश विजयवर्गीय का ‘भंडारा कनेक्‍शन’
पार्षद, विधायक और फिर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री रहते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर और महू में कनकेश्वरी देवी की कई बार भागवत कथाएं करवाईं। मनोरंजन के लिए आयोजन में कैलाश खेर और अनूप जलोटा जैसे कलाकारों को बुलाया जाता रहा है। इनमें भजन के साथ ही भंडारे भी होते रहे हैं। कनकेश्‍वरी देवी को बुलाकर गरबे के आयोजन भी कैलाश करवाते रहे हैं।

संजय शुक्‍ला ने बुलाया जया किशोरी को और फिर...
धार्मिक कथाओं के आयोजन का फायदा हिन्‍दुत्‍व का दम भरने वाली अकेली भाजपा ने ही नहीं उठाया, बल्‍कि कांग्रेस भी इंदौर और यहां तक कि पूरे मध्‍यप्रदेश की सियायत में धार्मिक आयोजन का सहारा लेती है। कांग्रेस नेता और विधायक संजय शुक्‍ला ने गुजरे पूरे पांच साल तक कई भंडारों का आयोजन किया और कई धार्मिक आयोजन करवाए हैं। हाल ही में उनके मार्गदर्शन में मशहूर कथा वाचक जया किशोरी की कथा का आयोजन इंदौर में किया जाना था। योजना थी कि इस आयोजन में सप्‍ताह भर तक भंडारे में प्रसादी वितरण किया जाएगा। जिसमें हजारों लोग रोजाना भोजन प्रसादी ग्रहण करते, लेकिन इसी बीच संजय शुक्‍ला को ये आयोजन रद्द करना पड़ा। दरअसल, कांग्रेस विधायक संजय शुक्‍ला का आरोप है कि जया किशोरी कि कथा की अनुमति उनके बेटे के नाम से मांगी गई थी, लेकिन जानबुझकर ये अनुमति उनके नाम पर दे दी गई। जिससे चुनावी खर्च में कथा भी जोड़ ली जाए।

क्‍या भाजपा ने रद्द करवाई कथा : कथाओं के आयोजन और उनके रद्द होने पर राजनीतिक विवाद और आरोप-प्रत्‍यारोप भी आम बात है। जब जया किशोरी का आयोजन रद्द हो गया था कांग्रेस ने भाजपा पर कथा के आयोजन में अड़ंगे डालने का आरोप भी लगाया था। जिसे इंदौर के राजनीतिक गलियारों में विवाद की तरह भी देखा गया। संजय शुक्ला पूर्व में पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा भी करवा चुके हैं।

सत्‍यनारायण पटेल क्‍यों करवाते हैं इतनी कथाएं
इन सारे नेताओं में बाबाओं की कथा सुनाने और धार्मिक आयोजन करने के लिए कांग्रेस नेता और विधानसभा 5 के उम्‍मीदवार सत्‍यनारायण पटेल को सबसे आगे माना जाता है। वे कई बार प्रदीप मिश्र को बुला चुके हैं। जया किशोरी की कथा भी पटेल करवा चुके हैं। वे रुद्राभिषेक और घर-घर रुद्राक्ष वितरण का आयोजन कर चुके हैं।

बाबाओं की शरण में भाजपा-कांग्रेस
डिमांड में प्रदीप मिश्रा :
सीहोर के कथा वाचक प्रदीप मिश्रा ने कुबरेश्‍वर धाम से अपना आश्रम चलाते हैं। पिछले दिनों के रुद्राक्ष वितरण में मची भगदड़ और भीड़ से लगने वाले जाम की वजह से विवादों में आ चुके हैं। लेकिन नेता अक्‍सर उन्‍हें बुलाते हैं और कथाओं में भजन और भोजन भी कराते हैं। इंदौर की विधानसभा एक और पांच में उनकी कथाएं हो चुकी हैं। राऊ में कांग्रेस नेता जीतू पटवारी उनकी कथा करा चुके हैं। विधानसभा नंबर 2 में भाजपा नेता रमेश मेंदौला उनकी कथा करवा चुके हैं।

हिंदू राष्‍ट्र वाले बागेश्‍वर धाम की मांग : बाबा बागेश्‍वर धाम से आने वाले पंडित धीरेंद्र कृष्‍ण शास्‍त्री लगातार चर्चा और विवादों में हैं। वे अपने कई मंचों से हिंदू राष्‍ट्र की मांग उठा चुके हैं। अपने बयानों और पहले से ही पर्चा लिख देने वाले चमत्‍कार की वजह से चर्चा में हैं। प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर पूर्व सीएम कमलनाथ तक उनके दरबार में माथा टेक चुके हैं। कमल नाथ अपने इलाके छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा का आयोजन भी करवा चुके हैं।

सीएम शिवराज सिंह बागेश्‍वर धाम के मंच पर राम भजन गा चुके हैं। इसके साथ ही इंदौर में बाबा के कई आयोजन हो चुके हैं, जिसमें किसी न किसी दल के नेता की मौजूदगी रही ही है। कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला भी बागेश्वर वाले बाबा की कथा करवा चुके हैं।
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मालिनी गौड़ ‘भाभी’ का धार्मिक एंगल : दिवंगत मंत्री और भाजपा नेता लक्ष्मण सिंह गौड़ की पत्नी, विधायक और इंदौर की महापौर रह चुकीं मालिनी गौड़ भी पीछे नहीं हैं। विजयवर्गीय जहां प्रदेशभर में कनकेश्वरी देवी के कथा-प्रवचन करवाते हैं तो गौड़ महामंडलेश्वर अवधेशानंदगिरी जी महाराज की भागवत कथा और कोटिचंडी महायज्ञ करवाती रही हैं।

गोलू शुक्‍ला की कावड़ यात्रा : कांग्रेस नेता संजय शुक्‍ला के छोटे भाई और भाजपा नेता व इंदौर विकास प्राधिकरण के उपाध्‍यक्ष गोलू शुक्‍ला हर साल बहुत व्‍यापक स्‍तर पर कावड़ यात्रा निकालते हैं, कई सालों से जारी यह यात्रा अब एक बड़ा आयोजन बन चुकी है। जिसमें आने वाली भीड़ से एक तरह से राजनीतिक नफा और नुकसान का अंदाजा लगाया जाता रहा है।

‘सुदर्शन’ की चुनरी यात्रा : विधानसभा एक में भाजपा नेता पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्‍ता हर साल चुनरी यात्रा निकालते हैं। इस यात्रा में सीएम शिवराज सिंह भी शामिल हो चुके हैं। इसमें भजन, भोजन प्रसादी के साथ ही साड़ी समेत कई तरह की सामग्री का वितरण आदि देखे गए हैं।

आयोजनों में हजारों करोड़ खर्च का अनुमान
इन धार्मिक आयोजनों में अच्‍छा खासा धन खर्च होता है। साल 2012 में एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि पिछले पांच सालों में प्रदेश में हुए बड़े स्तर के कथा, प्रवचन और भंडारों में करीब 15 हजार करोड़ रुपए से ज्‍यादा खर्च हुआ था। यह बात तो 2012 की थी, अब 2023 में खर्च का क्‍या आलम होगा, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है।

आखिर नेताओं का क्‍या फायदा
सात्‍विक/ धार्मिक छवि और जनता पर पकड़

मध्‍यप्रदेश समेत कई राज्‍यों में इस तरह की सियासत के पीछे नेताओं को बहुत फायदा है। दरअसल ऐसे आयोजन करवाने से आम जनता के बीच नेताओं की सात्‍विक छवि जाती है। बिना बुलाए लोगों की अच्छी-खासी भीड़ जुड़ जाती है। इसके साथ ही कम खर्च में जनता पर अच्‍छी पकड़ बन जाती है। धार्मिक कथाओं, प्रवचन और भंडारे में प्रसादी के नाम पर बड़ी संख्‍या में लोग इकठ्ठा हो जाते हैं, जो किसी राजनीतिक आयोजन के नाम पर एकत्र होने में कतराते हैं। कुल मिलाकर मध्‍यप्रदेश और इंदौर की राजनीति में विकास की जगह फिलहाल तो भजन, भोजन और भंडारे की राजनीति हावी है। देखने वाली बात यह है कि आखिर यह कब तक चलेगा।

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