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भोपाल में बागी भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती, पढ़ें राजधानी की सातों सीटों का सियासी समीकरण

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विकास सिंह

, मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023 (13:44 IST)
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में राजधानी भोपाल की सातों विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प नजर आ रहा है। भाजपा के गढ़ के तौर पर पहचाने जाने वाले जिले में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सेंध लगाते हुए भोपाल उत्तर विधानसभा  सीट के साथ-साथ भोपाल मध्य और भोपाल दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी। 2018 में भाजपा ने 4 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं कांग्रेस ने 3 विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाया  था। वहीं इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी-अपनी सीटें बचाने के साथ-साथ अन्य सीटों पर सेंध लगा कर 4-3 के आंकड़ें को बदलने की फिराक में है।

1-नरेला विधानसभा सीट-नरेला विधानसभा सीट से प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री विश्वास सांरग के चुनावी मैदान में होने के चलते भोपाल की सबसे चर्चित विधानसभा सीटों में से एक है। नरेला विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस में आमने-सामने का मुकाबला है। नरेला विधानसभा सीट पर विश्वास सांरग पिछले तीन चुनाव जीत चुके है और इस बार वह जीत का चौका मारने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे है। हिंदुत्व और विकास के मुद्दें पर चुनावी  मैदान में उतरे विश्वास सांरग घर-घर पहुंचकर जनसंपर्क कर अपनी जीत के आंकड़ें को और बेहतर करने में जुटे है।
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वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने के लिए ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाते हुए मनोज शुक्ला को चुनावी मैदान में उतारा है। नरेला विधानसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण को देखें तो विधानसभा में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 80 हजार के लगभग है। ऐसे में कांग्रेस जातिगत कार्ड चल भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने  की तैयारी में है। वहीं नरेला विधानसभा सीट पर कायस्थ वोटर्स की बड़ी संख्या होने के साथ 25 फीसदी मुस्लिम आबादी और अनुसूचित जाति वोटर्स की संख्या करीब 12 फीसदी है जो उम्मीदवार की जीत हार में बड़ा फैक्टर साबित हो सकते है।  

2-गोविंदपुरा विधानसभा सीट-पूरे मध्यप्रदेश में भाजपा के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाली  भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा सीट पर भाजपा का 43 सालों से कब्जा है। भाजपा के दिग्गज नेता बाबूलाल गौर की परंपरागत सीट के रूप में पहचान रखने वाली गोविंदपुरा विधानसभा  सीट पर इस बार उनकी बहू कृष्णा गौर दूसरी बार चुनावी मैदान में है। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर लगातार 8 विधानसभा चुनाव जीते थे और वह 1980 से 2018 तक विधायक थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बाबूलाल गौर की जगह उनकी बहू कृष्णा गौर को चुनावी मैदान में उतारा  था और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार गिरीश शर्मा को 46,359 वोटों से हराया था।
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वहीं कांग्रेस ने इस बार नए चेहरे रवींद साहू को चुनावी मैदान में उतारा है। रवींद साहू लंबे समय से गोविंदपुरा विधानसभा सीट पर सक्रिय थे और चुनाव की तारीखों के एलान से पहले उन्होंने क्षेत्र के लोगों बड़ी संख्या में धार्मिक यात्रा पर भेजा था। रविंद साहू भाजपा की उम्मीदवार कृष्णा गौर के खिलाफ बने एंटी इंकंमबेंसी का फायदा उठाकर जीत की राहत तलाश रहे है। भाजपा विधायक कृष्णा गौर के पांच साल पहले चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में कम सक्रिया और विकास के कार्यों में तवज्जो नहीं देना अब चुनावी मौसम में  उनकी सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

3-हुजूर विधानसभा सीट-भोपाल की हुजुर विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला 2018 की तरह ही नजर आ रहा है। भाजपा ने वर्तमान विधायक रामेश्वर शर्मा को फिर से मैदान में  उतारा है तो कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाले नरेश ज्ञानचंदानी को टिकट दिया है। कांग्रेस को इस सीट पर बगावत का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस की ओऱ से टिकट के दावेदार और पूर्व विधायक जितेंद्र डागा ने कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनावी मैदान में आ डटे है। हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता के तौर पर पहचान रखने वाली रामेश्वर शर्मा विकास और हिंदुत्व के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में है और कांग्रेस में गुटबाजी और बगावत से उनकी राह काफी आसान होती दिख रही है।
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4-भोपाल उत्तर विधानसभा सीट-भोपाल उत्तर विधानसभा सीट कांग्रेस के गढ़ के रूप में पहचानी जाती है। भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के आरिफ अकील का पिछले 25 साल से कब्जा है। इस बार आरिफ अकील ने खराब स्वास्थ्य होने के चलते कांग्रेस ने उनके बेटे आतिफ आतिफ अकील को चुनावी मैदान में उतारा है।  आरिफ अकील के जगह उनके  बेटे आतिफ अकील को टिकट मिलते ही परिवार में बगावत हो गई है। आरिफ अकील के भाई आमिर अकील नाराज होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में आ डटे है। इसके साथ भोपाल  उत्तर विधानसभा सीट पर कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम ने निर्दलीय प्रत्याशी के  तौर पर नामांकन किया है। वहीं कांग्रेस नेता मो. सऊद इस बार आम आदमी पार्टी के चुनाव चिन्ह झाडू पर चुनावी मैदान में डटे है।

ढ़ाई दशक से अधिक समय से कांग्रेस के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाली भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा ने सेंध लगाने की पूरी तैयार कर ली है। चुनाव की तारीखों के एलान होने से एक महीना पहले भाजपा ने इस सीट से पूर्व महापौर आलोक शर्मा को चुनावी मैदान में उतारकर अपने इरादे साफ कर दिए है। आलोक शर्मा वर्तमान में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष है औऱ वह लगातार भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर सक्रिय थे। आलोक शर्मा की गिनती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी नेताओं में होती है और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी आलोक शर्मा के समर्थन में बड़ा रोड शो कर चुके है। कांग्रेस में बगावत और अपने पुराने चेहरे के सहारे भाजपा उत्तर विधानसभा सीट पर सेंध लगाने की पूरी तैयारी में है।

5-भोपाल मध्य विधानसभा सीट- 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भोपाल मध्य विधानसभा सीट भाजपा से छीन ली थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार आरिफ मसूद ने भाजपा उम्मीदवार सुरेंद्र नाथ सिंह को हरा कर बड़ा सियासी उलटफेर किया  था। कांग्रेस ने एक बार फिर मौजूदा विधायक आरिफ मसूद को अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन इस बार आरिफ मसूद की राह आसान नहीं रहने वाली है।

भाजपा ने इस बार भोपाल मध्य विधानसभा सीट से अपने पुराने चेहरे ध्रुवनारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया है। ध्रुवनारायण सिंह 2008 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से विधायक रह चुके है। सामाजिक कार्यकर्ता शेहला मसूद हत्याकांड में ध्रुवनारायण सिंह का नाम आने के बाद पार्टी ने 2013 और 2018 में उनको उम्मीदवार नहीं बनाया था। ऐसे में इस बार भोपाल मध्य विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला काफी कांटे का नजर आ रहा है और भाजपा इस सीट को कांग्रेस से छीनने की पूरी तैयारी में है।

6-भोपाल दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट-2018 के विधानसभा चुनाव में भोपाल दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार पीसी शर्मा ने तत्कालीन कैबिनेट मंत्री उमाशंकर गुप्ता को हराकर भाजपा के गढ़ में सेंध लगा दी थी। कर्मचारी वोटर्स के बाहुल्य वाली इस सीट पर भाजपा की हार ने सियासी पंडितों को भी चौंका दिया था। वहीं इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे पीसी शर्मा पर एक बार फिर से दांव लगाया है। वहीं भाजपा ने चौंकाने वाला फैसला करते हुए प्रदेश महामंत्री भगवान दास सबनानी को चुनावी मैदान में उतारा है।
भगवान दास सबनानी का टिकट होते ही भाजपा को इस सीट पर बड़ी बगावत का सामना करना पड़ रहा है।

टिकट के दावेदार पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता के समर्थन में कई पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा दे दिया है वहीं उमाशंकर गुप्ता हार्ट अटैक के चलते चुनावी सक्रियता से दूर हो गए है। भाजपा उम्मीदवार भगवान दास सबनानी पर बाहरी उम्मीदवार का ठप्पा लगा होने से पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता नाराज है जिससे कांग्रेस उम्मीदवार पीसी शर्मा की राह आसान दिखाई दे रही है।

7-बैरसिया विधानसभा सीट-भोपाल की एक मात्र ग्रामीण इलाके वाली बैरसिया विधानसभा सीट में भी चुनावी मुकाबला 2018 की तरह ही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार विष्णु खत्री ने कांग्रेस उम्मीदवार जयश्री किरण को साढ़े 13 हजार से अधिक वोटों से हराया था। इस बार विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों ने अपने पुराने चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा है। ग्रामीण वोटर्स के बाहुल्य वाली विधानसभा सीट पर जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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