दम तोड़ रहा है हरबोलों का गायन

Webdunia
सोमवार, 19 जनवरी 2009 (13:57 IST)
रणवीरों और वीरांगनाओं की शौर्य गाथाओं को अपने अनूठे अंदाज में ओज और लय के स्वरों में गाने वाले तथा प्राचीन लोक संस्कृति के नायक माने जाने वाले हरबोलों का गायन और गायन से जुड़ी इतिहास की गाथाएँ दम तोड़ रही हैं।

' बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी' सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता संभवतः बहुत लोगों ने सुनी और पढ़ी होगी। इस कविता में कवयित्री ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के विषय में इतिहास की पुस्तकों से नहीं बल्कि बुंदेलखण्ड के हरबोला गायकों के माध्यम से जानकारी प्राप्त की थी।

प्राचीन लोक संस्कृतियों पर पिछले लंबे समय से शोध कार्य कर रहे डॉ. धर्मेंन्द्र पारे ने बताया कि हरबोला गायक जननायकों और नायिकाओं के गीत और समाज को उनकी देन समाज के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं न कि पुस्तकों की रचनाओं को। हरबोले भेक्षचर्या पर निर्वाह करती एवं पारंपरिक लोग गायक जाति है।

हरबोला शब्द के विषय में प्रायः थिसारस और शब्दकोश मौन हैं। मानक हिन्दी शब्दकोश में कहा गया है कि यह शब्द मध्ययुग के हिन्दू योद्धा या सैनिक की संज्ञा था। हर का अर्थ शिव या महादेव है इस प्रकार शिव के बोल बोलने वाला हरबोला हुआ, किन्तु मजेदार बात यह है कि शैव परंपरा या शिव स्तुति से हरबोलों का कोई रिश्ता नहीं है। वे तो अपना संबंध वसुदेव अर्थात कृष्ण के पिता से जोड़ते हैं। कृष्ण अहीर थे हरबोला भी स्वयं को अहीर ही मानते हैं।

डॉ. पारे ने बताया कि ये गीत उनके 'आशु' गीत होते हैं। हरबोलों को आशु कवि भी कहा जाता है जो तुरंत गीत रचना कर लेते हैं। इन गीतों की विषयवस्तु प्रायः व्यंग्यात्मक, उलाहना देने वाली और अप संस्कृति तथा मूल्यहीनता को रेखांकित करने वाली होती है।

गायन के विषय की विविधता के समान ही इनके गायन के तौर-तरीकों में भी विविधता होती है।

डॉ. पारे ने बताया कि हरबोलों को भजन-कीर्तन और गाथाओं को बयान करती भिक्षुक जाति कहें तो ज्यादा सही होगा। इस तरह की और भी जातियाँ हैं मसलन नाथ, सँपेरे, योगी, बैरागी, भोपा, जोशी आदि।

लोकजीवन में इन्हें भिखारी तो बिलकुल ही नहीं माना जाता। निश्चित रूप से इनका भिक्षाटन भीख माँगना कतई नहीं है। इनके भिक्षाटन के पीछे जीवन दर्शन और सिद्धांतवादिता की डोर क्षीण रूप में ही सही होती अवश्य है।

लोक रंजन, लोकोत्साह और लोककल्याण के साथ-साथ संस्कृति के उदात्त चरित्र को निरक्षर जनता में जीवित रखने का कार्य यही लोग करते हैं। वह जनता जो मंदिर नहीं जाती और कथा-पुराणों में नहीं बैठती उन तक भी चरित्र नायकों को ले जाने का कार्य यही हरबोला और उनके जैसी जातियाँ करती हैं।

उन्होंने बताया कि ये लोग द्वार-द्वार और गाँव-गाँव बिना किसी भेदभाव के यह सब जगह जाते हैं। हरबोला वसदेवा जाति का एक प्रकार है। मथुरा, वृंदावन और उसके आसपास इन्हें वसदेवा कहा जाता है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड, मालवा, निमाड़, भुवाना आदि में इन्हें हरबोला कहा जाता है।

मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ में भी यह जाति निवास करती है। निमाड़ क्षेत्र के बडगाँव, माल, जलवा, बजुर्ग, गौनी, डोंगरी, कांशीपुरा तथा भोभाडा इनके मुख्य गाँव हैं।

उत्तरप्रदेश में लखनऊ जिले के पुकनाहर गाँव में भी इस जाति के लगभग सौ घर हैं। यहाँ हरबोले कालू बाबा की पूजा करते हैं। कालू बाबा का चबूतरा आज भी इस गाँव में है। कुछ हरबोले भानुमति बाबा की पूजा करते हैं। इनका चबूतरा इलाहाबाद में बड़ा घाट (चित्रघाट) पर आज भी बताया जाता है।

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