मानसून की खबर लाती है बारहबाँसी

Webdunia
सोमवार, 25 मई 2009 (13:20 IST)
- दीपक पाण्ड े
मौसम की जानकारी लेने के लिए जहाँ आज अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं बस्तर के किसान आज भी पारंपरिक तरीके से मानसून के आने का अनुमान लगाते हैं।

यहाँ के किसानों का मानना है कि बारहबाँसी के नाम से प्रचलित चिड़िया के बच्चे जैसे ही उड़ने लगते हैं मानसून दस्तक देता है। बस्तर सहित राज्य के कई हिस्सों में यह पक्षी पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम इंडियन स्काई लार्क (आलूदा गुलगुला) है, जिसे स्थानीय लोग बारहबाँसी के नाम से जानते हैं।

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अनोखा होता है घोंसला : आलूदा गुलगुला का घोंसला अन्य चिड़ियों के घोंसले से अलग होता है जहाँ विभिन्न पक्षी पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं वहीं आलूदा गुलगुला खेत के मेड़ के आसपास अपने बच्चों को रखती हैं। घोंसले के लिए जिस स्थान को चुना जाता है वह गीले खेत में पशुओं के पदचाप के बाद बने ग़ढ्ढे होते हैं जो गर्मी के चलते सूखकर चिड़िया के लिए उपयुक्त घोंसलानुमा होता है। यहीं यह अंडों को सेती है। लगभग एक पखवाड़े में जब गर्मी के बाद बच्चे उड़ने को तैयार हो जाते हैं तब तक मानसून भी दस्तक दे देता है।

यहाँ के किसानों में मान्यता है कि बारहबाँसी यदि किसी खेत में घोंसला बनाकर बच्चे देती है और जैसे ही बच्चे के पर लगते हैं मानसून आने का संकेत मिल जाता है। खास बात यह है कि यह पक्षी अपने घोंसले व बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए घोंसले के मुंह की जो दिशा निर्धारित करती है उसके विपरीत दिशा से ही बयार बहती है।

मान्यताओं के अनुरूप बकावंड ब्लाक के अमड़ीगुड़ा के किसान मुकुंद सियान के खेत में इस पक्षी ने बच्चों को जन्म दिया है। किसानों को अब उनके उड़ने का इंतजार है। उनका यह मानना है कि बस्तर में समय से पहले हो रही बारिश का एक कारण यह भी है।

जमीन के विपरीत दिशा में उड़ती है : काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राणी विभाग के प्रमुख सुशील दत्ता के अनुसार आलूदा गुलगुला प्रजाति की यह चिड़िया आनंदमय भाव विभोर प्रवृत्ति की होती है। इसकी खासियत इसकी उड़ान है। यह जमीन के विपरीत दिशा में उड़ान भरती है।

उड़ान इतनी लंबी होती है कि इस चिड़िया को एक ही दिशा में आँख से ओझल होते तक देखा जा सकता है। काफी ऊँचाई पर जाने के बाद यह आराम करती है और राग निकालती है। बारह अलग प्रकार की आवाजों के चलते ही इसे बारहबांसी बोला जाता है।

यह चिड़िया स्थानीय प्रवासीय होती है। एशिया के अंदर भारत, बरमुड़ा व श्रीलंका में ज्यादा इनका आना-जाना है। उनका कहना है कि चूजों के उड़ान व मानसून का वैसे कोई वैज्ञानिक रिश्ता नहीं है, लेकिन बुजुर्गों के अनुभवों का सम्मान करना चाहिए।

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