कद बढ़ा शिव और रमन का

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भारतीय जनता पार्टी का नजरिया है कि वह राजनीतिक संगठन को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी संगठन को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया। यह बात अलग है कि राजस्थान में संगठन को महत्व देने के बावजूद प्रदेश की कमान वसुंधरा राजे के हाथ में रखी गई थी। इस कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

  भारतीय जनता पार्टी का नजरिया है कि वह राजनीतिक संगठन को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी संगठन को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया      
परन्तु मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने संगठन के साथ-साथ दोनों ही प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों शिवराजसिंह चौहान व डॉ. रमनसिंह पर दाँव लगाया और उन्हें उम्मीदवारों के चयन से लगाकर प्रचार तक में पूरा महत्व दिया गया। इसी का नतीजा है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता में वापसी हो गई

माना जा रहा है कि भाजपा संगठन में दोनों ही का रुतबा बढ़ेगा। जिस प्रकार से गुजरात में लगातार जीत दर्ज करने के बाद से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद भाजपा में इतना बढ़ गया है कि उनकी पहचान अब भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में होने लगी है।

  माना जा रहा है कि भाजपा में शिवराज और रमन का रुतबा बढ़ेगा। जिस प्रकार से गुजरात में लगातार जीत दर्ज करने के बाद से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद भाजपा में इतना बढ़ गया है कि उनकी पहचान अब भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में होने लगी है      
यही कारण है कि अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार करने के लिए भी उन्हें ही बुलाया जाने लगा है। शिवराजसिंह चौहान और डॉ. रमनसिंह भाजपा के लिए अचानक मिले खजाने जैसे हैं। दोनों ने अपने दम पर पार्टी को जीत दिलाई है।

मोदी फार्मूले ने खोला जीत का रास्ता : भाजपा ने प्रदेश में जीत हासिल करने के लिए कई मोर्चो पर तैयारी की थी। इस पर एक वर्ष पूर्व से अमल करना आरंभ कर दिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने अपनी सोच और वह जनता के लिए क्या करना चाहती है, यह स्पष्ट रूप से जनता के मन तक पहुँचा दिया। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।

भाजपा ने दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को पहले ही प्रोजेक्ट कर दिया था। यह ठीक नरेन्द्र मोदी के गुजरात फार्मूले की तर्ज पर था। भले ही दिल्ली व राजस्थान में भाजपा को हार मिली हो, पर शिवराजसिंह चौहान व डॉ. रमनसिंह को उनके राज्यों में मुख्यमंत्री के बतौर प्रोजेक्ट करने से आम जनता के मन में जो मुख्यमंत्री की छवि थी, उसका फायदा दोनों को प्रचार के दौरान देखने को मिला।

दूसरी ओर भले ही छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था, मध्यप्रदेश में कांग्रेस किसी को भी मुख्यमंत्री के रूप में आगे नहीं ला पाई थी जिससे जनता में यह संदेश गया कि कांग्रेस ऊपरी तौर पर भले ही एका दिखा रही हो, पर भीतरी रूप से अब भी वह प्रदेश में चार से पाँच गुटों में बँटी है।

विधायकों को टिकट नहीं दिए : यह गुजरात में आजमाया हुआ फार्मूला था। दरअसल, गुजरात में टिकट वितरण के दौरान भाजपा ने ऐसे सभी विधायकों को पुनः टिकट नहीं दिया जिन्होंने काम नहीं किया। यही फार्मूला मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी अपनाया गया। प्रदेश में लगभग चालीस से पचास विधायकों के टिकट कटे जिनकी छवि व काम ठीक नहीं था।

अब प्रदेश में गुजरात फार्मूले के माध्यम से जीत दर्ज करने के बाद पार्टी हल्कों में यह भी चर्चा है कि जल्द ही गुजरात की तर्ज पर विकास मॉडल को भी लागू कर दिया जाए

क्षेत्रीय नेताओं पर दारोमदार : भाजपा की ही बात करें तो कुछ वर्षों पूर्व तक किसी भी राज्य में चुनाव हो पार्टी अपने राष्ट्रीय कद के नेताओं जैसे अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी पर काफी निर्भर रहा करती थी, जिसके परिणाम भी मिलते थे।

परन्तु इस बार राजस्थान की बात छोड़ दी जाए तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से चुनाव की कमान शिवराजसिंह चौहान व डॉ. रमनसिंह के हाथ में थी। टिकटों में भी दोनों की बातों को तवज्जो दी गई। चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों ही दिग्गजों ने अपने-अपने राज्यों में बड़ी संख्या में आमसभाएँ ली। शिवराजसिंह का हाल यह था कि उन्होंने एक ही दिन पाँच से छह आमसभाएँ कीं। इसके अलावा उनकी विकास यात्रा ने भी उन्हें प्रदेश की आम जनता के साथ जोड़ा। (नईदुनिया)

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