नहीं उतरा चुनावी बुखार

गली-चौराहों में चर्चाओं का बाजार गर्म

Webdunia
सोमवार, 1 दिसंबर 2008 (20:16 IST)
चाहे घर पर आया मेहमान हो या चाय की दुकान पर 'कट' पीता ग्राहक। कोई न कोई चुनावी चकल्लस में सिर खपाते मिल ही जाएगा। मतदान के पहले भी चर्चाओं का दौर जारी था, लेकिन वोटिंग होने के बाद चुनावी चकल्लस का 'सेमीफाइनल' शुरू हो चुका है। जो मतगणना कादिन नजदीक आते-आते चरम पर होगा।

मतदान के दिन पी...पी... करती इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अब खामोश होकर स्ट्रांग रूम में बैठी है, लेकिन दिमाग में मची चुनावी खलबली जुबाँ के रास्ते कहीं भी, कभी भी निकल पड़ती है। क्यों भैया कौन जीतेगा..., आपका गणित क्या बोल रहा है? सरकार किसकी बनेगी जैसे चुनावी सवाल लोग एक-दूसरे से आमतौर पर पूछ ही लेते हैं। सरकारी-निजी दफ्तर, पान की दुकान, रेस्टोरेंट, चौक, क्लब चुनावी चर्चाओं के केन्द्र बन चुके हैं। राजवाड़ा चौक, टोरी कॉर्नर, मल्हारगंज, मालवा मिल, छावनी जैसे बातूनी ठीयों पर तो कयासों के साथ चुनावी बहस भी होती रहती है।

रोज पचास ग्राहक पूछते है ं : चिमनबाग पर पान की दुकान चलाने वाले अखिलेश मिश्रा बताते हैं कि दिनभर में दुकान पर सैकड़ों ग्राहक आते हैं। उनमें से 50 से अधिक चुनावी परिणामों पर सवाल-जवाब करते रहते हैं। नियमित आने वाले कई ग्राहक तो चुनावी बहस के लिए एक पैर पर तैयार खड़े रहते हैं। मिश्रा कहते हैं कि ग्राहकों की बातों से ऐसा लगता है कि जिले में भाजपा को ज्यादा सीट मिल सकती है।

महू पर ज्यादा बह स : नंदानगर के व्यापारी किशोर श्रीनाथ बताते हैं कि उनके यहाँ भी चुनावी चर्चाएँ खूब होती हैं, लेकिन महू के संभावित परिणामों पर ज्यादा बहस होती है। राजनीति की जानकारी रखने वाले ग्राहक वोटिंग के अधिक प्रतिशत, जातिगत समीकरण, बाहरी प्रत्याशी जैसे तरह-तरह के कारण गिनाकर जबरन संभावित परिणाम बताते रहते हैं।

शर्तें भी लगाई ं : विधानसभा चुनाव के परिणामों पर सटोरियों ने भी करोड़ों के दाँव लगा रखे हैं। वे अब मतगणना का इंतजार कर रहे हैं। जिन लोगों को सट्टा पल्ले नहीं पड़ता वे संभावित परिणामों पर शर्तें लगा रहे हैं। प्रत्याशियों की हार-जीत के साथ सटोरियों की किस्मत भी जुड़ गई है।

प्रत्याशी भी परेशान : चुनावी थकान उतारने के बावजूद प्रत्याशी परिणामों को लेकर बेचैन हैं। 'आप तो जीते-जिताए हो' के दिलासे कार्यकर्ता, परिचित, मित्रगण उन्हें दे रहे हैं। कई लोग तो अग्रिम बधाई तक दे जाते हैं। इसके बावजूद कुछ प्रत्याशी मुगालते में नहीं हैं। अब वे अपने विधानसभा क्षेत्र में हुई बूथवार वोटिंग, थोकबंद वोटों की संभावना वाले इलाके चिह्नित कर परिणामों का जोड़-घटाव करने में जुटे हैं। 8 दिसंबर तक प्रत्याशियों की बेचैनी और बढ़ जाएगी। (नईदुनिया)

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