इंदौर के कालाकुंड का नाम सुनते ही हमें कलाकंद मिठाई भी याद आती है और घने जंगल, पहाड़ी, रेल के बोगदों को पार करते हुए घुमावदार रास्ते भी। यहां खेल-खलिहान भी हैं तो जंगल और जंगली जानवर भी...। यहां एडवेंचर स्पोर्ट्स के शौकीन लोग नाइट कैंपिंग का मजा भी ले सकते हैं और स्टार गेजिंग का भी। तो देर किस बात की है। चलिए इस वीकेंड यहीं की सैर कर ली जाए। यकीन मानिए यह अनुभव अपने आपमें एकदम अलहदा और रोमांचकारी होगा।
इस कड़ी में हम आपको जानकारी दे रहे हैं कालाकुंड व कुशलगढ़ की। यहां पहुंचने की हमारी सैर पातालपानी रेलवे स्टेशन से ही शुरू हो जाती है। ट्रेन से बाहर देखने पर पता चलता है कि एक बरसाती नदी रेलवे ट्रेक के कभी दाईं ओर तो कभी बाईं ओर हमारे साथ चल रही है। कालाकुंड इंदौर से खंडवा जाने वाले रेल मार्ग पर स्थित है। इस सुंदर रोमांचकारी नजारे को देखने पर पता चलता है कि इस छोटी लाइन के इस प्राचीन रेल मार्ग को कितनी कठिनाइयों के बाद तैयार किया गया होगा।
कैसा है यहां का नजारा : कालाकुंड पहुंचते ही हमें स्टेशन एवं आसपास के परिसर को ध्यान से देखने के बाद किसी पुराने तिलस्मी अंग्रेजी सिनेमा में दिखाए गए रेलवे स्टेशन की याद ताजा हो जाती है। लगभग 75 वर्ष से अधिक पुराने इस परिसर में विशेष कुछ नहीं बदला है। कालाकुंड स्टेशन के सामने पटरी पार एक पहाड़ी दिखाई देती है। ठीक इसके ऊपर छोटी-सी प्राचीन इमारत दिखाई देती है जो स्काउट एवं गाइड संस्था का मुख्य ट्रेनिंग सेंटर है।
कुशलगढ़ कैसे जाएं : कुशलगढ़ जाने हेतु कालाकुंड स्टेशन से लगभग 6-7 किमी दूरी हमें पैदल पार करनी होती है। कालाकुंड से इंदौर या पातालपानी की तरफ जाने वाले (रेल मार्ग) पटरी पर पैदल चलना शुरू करें तो लगभग आधा किमी से भी कम दूरी पर रेलवे आउटर को पार करने के बाद हमारे उल्टे हाथ की तरफ एक छोटी बस्ती दिखाई देती है। इस बस्ती व बरसाती नदी को पार करके, इस नदी की धारा के विपरीत दिशा में हम आगे बढ़ते हैं। सोयाबीन, गेहूं आदि के लंबे-चौड़े खेतों को पार करते हुए मुख्य पगडंडी पर पहुंचते हैं।
यहां से दोनों ओर पहाडि़यों से घिरे मार्ग से मुख्य पहाड़ी के ऊपर चढ़ाई शुरू हो जाती है। इस तरह की दो पहाडि़यां पार करके हम चोटी पर आ जाते हैं। यहां से लगभग दो किमी मैदानी रूट से कुशलगढ़ किले पर पहुंच जाते हैं। कुशलगढ़ की सैर अपने आपमें रोमांचित करने वाली है। इस किले के इतिहास के अनुसार इसे होलकर शासनकाल में तैयार किया गया था। इसका मुख्य द्वार मराठा शैली में है। वर्तमान में इस किले का मात्र परकोटा ही दिखाई देता है।
ट्रेकिंग व स्टार गेजिंग भी : एडवेंचर स्पोर्ट्स को पसंद करने वाले लोग इस मार्ग में कालाकुंड-कुशलगढ़ रात्रिकालीन ट्रेकिंग करना पसंद करते हैं। यह किला कैंपिंग के लिए उपयुक्त है। इसके साथ ही यहां स्टार गेजिंग का मजा भी लिया जा सकता है। यहां के पगडंडी मार्ग से पातालपानी भी पहुंचा जा सकता है।
कैसे पहुंचे कालाकुंड : - कालाकुंड से कुशलगढ़ जाते समय मुख्य पगडंडी पर ही चलें नहीं तो जंगल में भटकने की संभावना बनी रहती है।
- बरसाती नदी पार करते समय जल के बहाव की स्थिति एवं नदी की गहराई आदि की विशेष सावधानी रखें।
- सैर या कैंपिंग के पहले जानकार व्यक्ति या स्थानीय ग्रामीणों से इस स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें।
- सैर करने के लिए समूह में जाने की सलाह दी जाती है क्योंकि जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।
कुशलगढ़ जाने हेतु कालाकुंड स्टेशन से लगभग 6-7 किमी की दूरी हमें पैदल पार करनी होती है।
वैसे तो स्वयं के वाहनों से भी कालाकुंड पहुंचा जा सकता है लेकिन रेल मार्ग सबसे सुलभ व खूबसूरत है।
कालाकुंड वैली में सैर-सपाटे या ट्रेकिंग के लिए अन्य जगह व मार्ग निम्न है :- - कालाकुंड से पातालपानी नदी एवं जंगल मार्ग द्वारा।
- कालाकुंड से बाई ग्राम जंगल मार्ग (खंडवा मार्ग)।
- कालाकुंड से बागोदा जंगल मार्ग (खंडवा मार्ग)।
- कालाकुंड से कुशलगढ़-पातालपानी (जंगल मार्ग)।