जहाज महल, हिंडोला महल, रानी रूपमती का महल सब कुछ असीम शांति लिए हुए है। यहां रहस्यमयी सौंदर्य और स्थापत्य के दर्शन करते हुए आप कहीं खो जाते हैं और अपने आपको एक अनोखी दुनिया में पाते हैं। मांडू आकर किसी प्राचीन नगर को रूबरू देखने का अहसास होता है।
स्थापत्य के नजरिए से देखें तो यहां की जामा मस्जिद और होशंगशाह का मकबरा ताज महल बनाने वालों के लिए प्रेरणादायी बना। रूपमती के महल से बाज बहादुर के महल का नजारा दिखाई देता है तो आपको लगता है आप उसी काल में हैं। रूपमती के महल से हरी-भरी घाटियां और नर्मदा की पतली चांदी जैसी रेखा देखना गजब का रहस्य पैदा करता है। यही कारण है कि मुगलों के समय में मांडू छुट्टियां बिताने का आदर्श स्थान रहा।
मांडू के आस-पास 45 किमी. के परकोटे में 12 दरवाजे हैं। शहर के अंदर जाने के लिए दिल्ली दरवाजे से जाना पड़ता है। इसके बाद तो दरवाजों की श्रृंखला है..आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, रामपोल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा और भी बहुत से दरवाजे हैं। इन सभी की बनावट बेहतरीन कला का नमूना है।
रेवा कुंड इसे रूपमती के महल में पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था। अब यह एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है। छठवीं शताब्दी में बनवाया गया यह महल बड़े-बड़े गलियारों, कक्षों और ऊंची छतों के कारण भव्य लगता है। यहां से पूरे मांडू का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
रूपमती झरोखा - यह सैनिकों के लिए पूरे क्षेत्र पर निगाह रखने के लिए बनाया गया था। इस भव्य इमारत से बाज बहादुर के महल और निमाड़ के मैदान में बह रही नर्मदा नदी के दर्शन किए जा सकते हैं। कहा जाता है कि रानी के प्रतिदिन नर्मदा दर्शन के पश्चात अन्न-जल ग्रहण करने की आदत के कारण बाज बहादुर ने यह ऊंचा महल बनवाया था।
मांडू के महल जानिए :- शाही जहाज महल दो कृत्रिम तालाबों मुंज तालाब और कापुर तालाब के बीच यह बना है। संभवतः यह सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने बड़े हरम के रूप में बनवाया था। इसके खुले गलियारे, बाहर निकली हुई बालकनी और खूबसूरत छत शाही शौक को आसानी से बयां करते हैं। रात के समय इसे तवेली महल से निहारना बहुत सुखदायी है।
हिंडोला महल :- इसके आस-पास की दीवारें कुछ झुकी हुई सी हैं, जिसके कारण इसे हिंडोला महल कहा जाता है। बलुआ पत्थरों में नक्काशी का नायाब नमूना यहां देखने को मिलता है। यहां के खूबसूरत स्तंभ मन मोह लेते हैं। यह दर्शकों के लिए बैठक व्यवस्था के रूप में बनाया गया था।
इसी महल के पास कई छोटे-छोटे भवन हैं जो अपने अतीत की कहानी कहते हैं। इन्हीं के बीच चंपा बावड़ी है जो अंदर ही अंदर कमरों से जुड़ी है, इसके माध्यम से गर्म व ठंडे पानी का प्रबंध किया जाता था। यहीं पर दिलावर खान की मस्जिद, नाहर झरोखा, दो बड़े कुंए उजली और अंधेरी बावड़ी हैं।