इंदौर-देवास रोड के 30 घंटों के महाजाम ने नेताओं के नाकारापन, सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार और खोखले सिस्टम की खोली पोल

इंदौर-देवास रोड के जाम में जान गंवाने वालों के परिजनों को जिम्मेदार अपनी जेब से 1-1 करोड़ रुपए का मुआवजा दें, अब कोर्ट दिलाए पीड़ितों को न्याय

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शनिवार, 28 जून 2025 (13:54 IST)
30 hours of traffic jam on Indore Dewas road: इंदौर-देवास रोड पर 20 घंटे का भीषण जाम केवल एक ट्रैफिक समस्या नहीं, बल्कि एनएचएआई, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और जन प्रतिनिधियों की आपराधिक लापरवाही का खूनी सबूत है। पिछले 10 दिनों से लगातार घंटों लंबा जाम और अर्जुन बड़ोदा के पास बन रहे पुल की अव्यवस्था ने दो दिनों में तीन जिंदगियां- कमल पांचाल, बलराम पटेल, संदीप पटेल— छीन लीं। यह त्रासदी भ्रष्टाचार, नाकारापन और जश्नबाजी में डूबे नेताओं की बेशर्मी का काला सच है। जब लोग जाम में तड़प रहे थे, एम्बुलेंस में मरीज दम तोड़ रहे थे, तब एनएचएआई के अधिकारी कुंभकर्णी नींद सो रहे थे और हमारे जनप्रतिनिधि रील्स बनाने और रिबन काटने में मस्त थे।
 
एनएचएआई और ठेकेदार हत्या के दोषी : राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और सड़क निर्माण विभाग इस हत्यारी त्रासदी के सबसे बड़े गुनहगार हैं। इंदौर-देवास बायपास पर अर्जुन बड़ौदा के पास बन रहा पुल एक मजाक बन चुका है। सर्विस लेन कीचड़ और गड्ढों का कब्रिस्तान है, जो भारी वाहनों के लिए मौत का जाल है। बारिश ने जलभराव को और घातक बना दिया, लेकिन एनएचएआई और ठेकेदारों ने सुस्ती में समय बिताया। हाईकोर्ट ने नवंबर 2024 में सड़क सुधार के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दिया था, लेकिन सात महीने बाद भी हालात बदतर हैं।
 
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अमित चौरसिया और देवास जिला अध्यक्ष मनोज राजानी ने ठीक कहा कि यह मौत नहीं, गैर इरादतन हत्या है। एनएचएआई के अधिकारियों और ठेकेदारों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए, क्योंकि उनकी लापरवाही ने तीन परिवारों को उजाड़ दिया। टोल वसूलने की हवस तो है, लेकिन सड़क सुधारने की इच्छाशक्ति कहां है? यह भ्रष्टाचार का वह काला खेल है, जहां ठेकेदारों को फंड्स लूटने की खुली छूट है।
 
पुलिस और नगर निगम तमाशबीनों की फौज : पुलिस और नगर निगम की बेशर्मी इस त्रासदी को और घिनौना बनाती है। जाम के दौरान चार पुलिसकर्मी मौजूद थे, जो ट्रैफिक संभालने के बजाय तमाशबीन बने रहे। क्या यह उनकी ड्यूटी का अपमान नहीं? नगर निगम ने जलभराव को अनदेखा किया, जिसने सड़कों को दलदल में बदल दिया। इंदौर की स्वच्छता का ढोल पीटने वाले क्या इस गंदगी और लापरवाही को छिपा सकते हैं? यह नाकारापन नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का वह घृणित चेहरा है, जहां फंड्स की बंदरबांट होती है और जनता की जान की कोई कीमत नहीं।
 
जनप्रतिनिधियों की बेशर्म खामोशी : हमारे जन प्रतिनिधियों की संवेदनहीनता इस त्रासदी को और दर्दनाक बनाती है। जब लोग 35 किमी के रास्ते को घंटों में पार करने को मजबूर थे, तब ये नेता शायद किसी 'इवेंट' में तालियां बजा रहे थे। सोशल मीडिया पर रील्स बनाने वाले भाजपा के चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने इस अराजकता पर खामोशी की चादर ओढ़ ली। क्या जनता की चीखें उनकी कुंभकर्णी नींद को नहीं तोड़ पाईं? हर छोटी बात को जश्न में बदलने वाले ये लोग जाम में मरते लोगों की सुध क्यों नहीं लेते? इनकी बेशर्मी ने साबित कर दिया कि जनता की परेशानियां उनके लिए मायने नहीं रखतीं।
 
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सही मांग उठाई है : कांग्रेस की मांग है कि प्रत्येक पीड़ित परिवार को 1-1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए। यह न्यूनतम है, क्योंकि कोई भी राशि उन परिवारों का दर्द नहीं मिटा सकती, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया। साथ ही, दोषी एनएचएआई अधिकारियों और ठेकेदारों पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। यह समय जवाबदेही तय करने का है। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलेगी, ऐसी त्रासदियां बार-बार होंगी।
 
इंदौर-देवास रोड का जाम एक ट्रैफिक समस्या नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्था की सड़ांध का दर्पण है। ये मौतें हमें चीख-चीखकर बता रही हैं कि भ्रष्टाचार और लापरवाही की कीमत मासूम जिंदगियां चुका रही हैं। हमें एक ऐसी व्यवस्था चाहिए जो जनता की जान को सर्वोपरि माने। सड़क निर्माण से पहले सर्विस रोड की मरम्मत, ट्रैफिक प्रबंधन की ठोस योजना और आपातकालीन सेवाओं की व्यवस्था अनिवार्य है।

जन प्रतिनिधियों को जश्न छोड़कर जनता की समस्याओं पर ध्यान देना होगा। यह समय है कि हम आवाज उठाएं, दोषियों को सजा दिलाएं और ऐसी व्यवस्था की मांग करें जो खून से सने इस जश्न को खत्म करे। क्या हम इन मौतों को भूलकर फिर से रील्स और रिबन काटने में डूब जाएंगे, या इस बार बदलाव की लड़ाई लड़ेंगे? यह सवाल हर नागरिक को खुद से पूछना होगा।

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