Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शिष्य निर्माण और राष्ट्रभक्ति की अद्वितीय मिसाल हैं आचार्य सांदीपनि -डॉ. मोहन यादव

हमें फॉलो करें शिष्य निर्माण और राष्ट्रभक्ति की अद्वितीय मिसाल हैं आचार्य सांदीपनि -डॉ. मोहन यादव
, रविवार, 21 जुलाई 2024 (09:44 IST)
गुरु पूर्णिमा के पुण्य दिवस पर सभी परम गुरुओं को हार्दिक नमन…अपने ज्ञान के प्रकाश से समृद्ध करने के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिये हमें प्रेरित करने वाले गुरुजन का ह्दय से आभार। गुरु हमें ज्ञान, गौरव और गंतव्य का भान कराने के साथ हमारी जीवन यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा में गुरु ज्ञान से स्वयं का साक्षात्कार संभव है। इस ज्ञान की अनुभूति की साक्षी है गुरु पूर्णिमा। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास का प्रकटीकरण दिवस है। महर्षि व्यास ने वैदिक ऋचाओं को संकलित कर वेदों का वर्गीकरण, महाभारत तथा अन्य रचनाओं से भारतीय वांग्ड्मय को समृद्ध किया। भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा अति पुरातन है। इस परंपरा से ही व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण तक की प्रेरणा में गुरुजन का मार्गदर्शन है।
 
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मुझे व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र के लिये समर्पित गुरु सांदीपनि जी का स्मरण आता है। लगभग 5 हजार साल पूर्व शिष्यों और समाज के लिये संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले गुरु सांदीपनि जी का जीवन चरित्र हम सभी के लिये आदर्श है। उनके जीवन में कष्ट और दु:ख की कोई सीमा नहीं थी। उनका राष्ट्र के प्रति समर्पण और अपने शिष्यों के प्रति प्रेम अद्भुत, अनूठा और अलौकिक रहा है जिसकी मिसाल दुनिया में दूसरी नहीं है। सांदीपनि जी का आश्रम मूलत: पहले गंगा किनारे बनारस में स्थापित था जहां उन्होंने अपने शिष्यों को 64 कलाएं, 14 विधाएं, 18 पुराण और 4 वेदों की शिक्षा-दीक्षा देकर प्रशिक्षित करने के लिये गुरुकुल का संचालन किया।
 
उस समय मथुरा में महाराज उग्रसेन को हटाकर जैसे ही कंस ने सत्ता के सूत्र हाथ में लिये, आचार्य सांदीपनि सहित विश्व के आचार्यों को अपने गुरुकुल बंद करने पड़े। उन्होंने अपना आश्रम छोड़कर तीर्थाटन की राह पकड़ी। अराजकता और अशांति के वातावरण में कोई गुरुकुल कैसे चला सकता है। आचार्य सांदीपनि, अपने 6 माह के पुत्र पुनर्दत्तऔर धर्मपत्नी तीर्थाटन करते हुए पश्चिमी भारत (वर्तमान द्वारिका), प्रभास पाटन के क्षेत्र से तीर्थाटन कर गुजर रहे थे। यह वह समय था जब देश पर आसुरी शक्तियों ने अलग-अलग प्रकार से भारत पर कब्जा जमा लिया था।
 
आचार्य सांदीपनि की प्रसिद्धी दुनिया भर में फैली थी। हर कोई चाहता था कि उनके बच्चे आचार्य सांदीपनि से दीक्षित-शिक्षित हों। उस समय यहां के नेता यम नाम से जाने जाते थे। उन्होंने आचार्य सांदीपनि से अपने बच्चों को शिक्षित-दीक्षित करने का दबाव डाला। चूंकि आचार्य सांदीपनि की शिक्षा-दीक्षा राष्ट्र और समाज निर्माण के लिये थी इसलिए वे किसी प्रकार के दबाव में नहीं आये और राष्ट्र विरोधी तत्वों को शिक्षा देने के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। यम द्वारा डराने, धमकाने और यातनाएं देने पर भी आचार्य झुके नहीं और अपने निर्णय पर अटल रहे। आचार्य को प्रताड़ित करते हुए शासकों ने उनके बच्चे को छुड़ा लिया तथा आचार्य और माता को अपमानित कर भगा दिया।
 
इसके बाद आचार्य उज्जैन आए और सांदीपनि आश्रम स्थापित कर भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में देश के बच्चों के भविष्य निर्माण के लिये शिक्षा-दीक्षा आरंभ की। सांदिपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण और उनके भ्राता बलराम को शिक्षा प्राप्त करने के लिए महाकाल की नगरी उज्जैन भेजा गया, जहां उनकी मित्रता सुदामा से हुई। शिक्षा के उपरांत श्रीकृष्ण ने गुरुमाता को गुरु दक्षिणा देने की बात कही। इस पर गुरुमाता ने श्रीकृष्ण को अद्वितीय मानकर गुरु दक्षिणा में अपना पुत्र वापस मांगा। आचार्य सांदीपनी को जब पूरी बात पता चली, तो उन्होंने नाराज होते हुए कहा कि मेरे दु:ख और मेरी व्यक्तिगत समस्या में मेरे शिष्य को क्यों शामिल किया।
 
श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र को वापस लाने के लिये शस्त्र चाहे। आचार्य ने भगवान परशुराम के आश्रम जानापाव में जाने के लिए कहा। भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान करते हुए उसकी विशेषता बताई। भगवान परशुराम की आज्ञा लेकर श्रीकृष्ण प्रभास पाटन जाते हैं। जहां यम नामक असुर से युद्ध कर उसके प्राणों का अंत करते हैं और आचार्य के पुत्र को वापस उज्जैन लाकर गुरु दक्षिणा भेंट करते हैं।
 
श्रीकृष्ण प्रभास पाटन का राज्य राजा रैवतक को देते हैं। राजा की पुत्री रेवती से बलराम का विवाह होता है। इसके बाद श्रीकृष्ण मथुरा की ओर प्रस्थान करते हैं। इसी युग में आसुरी शक्तियों का विनाश कर योग्य व्यक्ति को राज्य सौंपने का एक और उदाहरण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में कंस को मारकर महाराज उग्रसेन को पुन: सिंहासन पर बैठाया था।
 
काल के प्रवाह में आचार्य सांदीपनि का अपने देश के लिए अद्वितीय योगदान जानना जरूरी है। आचार्य सांदीपनि द्वारा अपने ज्ञान से शिष्य निर्माण और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण एक अद्वितीय मिसाल है। गुरु पूर्णिमा पर आचार्य सांदीपनि जी का यह प्रेरक पक्ष सभी के समक्ष आना चाहिए।
 
मेरी दृष्टि में, हमारे जीवन में पांच गुरुओं का विशेष महत्व है। सबसे पहली गुरु, माता जो जन्म और जीवन के संस्कार देती है, दूसरे पिता जो साथ, संबल, सहयोग के साथ पुरुषार्थ और पराक्रम का भाव निर्मित करते हैं। तीसरे, शिक्षक जो पाठ्यक्रम में निर्धारित शिक्षा प्रदान कर हमें शैक्षणिक ज्ञान से समृद्ध करते हैं। चौथे गुरु, जिनसे हम आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं, जो स्वत्व को जागृत कर आत्मज्ञान का बोध कराते हैं और हमें हमारे जीवन की नई ऊंचाइयों और नये लक्ष्यों के लिये प्रेरित करते हैं। पांचवां गुरु आईना है जो, हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से परिचित कराता है इससे आत्म-चेतना जागृत होती है और हम अपने व्यक्तित्व और कृतित्व में श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकते हैं।
 
गुरु हमारी प्राकृतिक प्रतिभा का आकलन करके हमारी मौलिक प्रतिभा को जागृत करते हैं, मार्गदर्शित करते हैं। आचार्य सांदीपनि जी ने ऐसे शिष्यों का निर्माण किया है जिन्होंने समाज, राष्ट्र और विश्व कल्याण का इतिहास रचा है।
 
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आचार्य सांदीपनि का पुण्य-स्मरण।
 
(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

केदारनाथ पैदल मार्ग पर बड़ा हादसा, लैंडस्लाइड से 3 की मौत