आदिवासी आशा की ऊंची उड़ान, सात समंदर पार सीखेगी अंग्रेजी (वीडियो)

कीर्ति राजेश चौरसिया
मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके हौसले बुलंद और सपनों में ऊंची उड़ान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है।  मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के जनबार ग्राम की आदिवसी लड़की आशा पर यह बात आशा पर बिलकुल सटीक बैठती है। आशा  समंदर पार लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंग्लिश पढ़ने के लिए विदेश जा रही हैं।
 
पेशे से मजदूर मां-बाप मजदूरी करके गुजारा करते हैं। इनके पास इतने पैसे भी नहीं कि वे अपनी बेटी को ठीक से पढ़ा सकें, लेकिन एक सामाजिक संस्था की मदद से वह विदेश जाएगी और इंग्लिश सीखकर अपने गांव के आदिवासी बच्चों को इंग्लिश सिखाएगी।
 
आदिवासी समुदाय के लोग जहां रहते हैं वह गांव शिक्षा सहित हर मामले में बहुत पिछड़ा है,  लेकिन कहते हैं न कि मुश्किल नहीं आशा से सब जीता जाता है और आशा ही इसका जीता-जागता उदाहरण भी हैं।  स्केटिंग के गुण सीखने के बाद अब आशा का चयन सात समंदर पार इंग्लिश सीखने के लिए हुआ है।
 
 दरअसल, गर्मी में एक समर कैम्प का आयोजन हुआ था जिसमें आदिवासी बच्चों को इंग्लिश सीखने के गुण सिखाए गए। उन सभी बच्चों में आशा सबसे ज्यादा होशियार थी। ऐसे में जनबार गांव में एक एनजीओ चलाने वाली जर्मन मूल की विदेशी महिला ओलेक ने उसकी प्रतिभा को परखा और उसे इंग्लिश पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। 
 
 
जॉक ने बाद अब उसे इंग्लिश पढाने के लिए लंदन भेजने का फैसला लिया।  शुरू में माता-पिता राजी नहीं थे, लेकिन अब जैसे-तैसे राजी हुए और अब आशा इंग्लिश पढ़ने लंदन जा रही है।  गांववाले पैसा जोड़कर उसे विदेश भेज रहे हैं।
 
सभी चाहते कि आशा सब सीखकर वापस आए और गांव के बच्चों को भी वही सब सिखाए।  आशा भी पढ़ने में बहुत ही होशियार है। वे कहती हैं कि मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं सात समंदर पार पढ़ने जाऊंगी। और अब वह गांव के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगी।
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