ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ में 6 करोड़ से अधिक खर्च कर सरकार जुटाएगी भीड़

8 जिलों से लोगों को लाने के लिए परिवहन विभाग करेगा ढाई हजार बसों का इंतजाम

विशेष प्रतिनिधि
शनिवार, 8 अप्रैल 2023 (18:53 IST)
भोपाल। सरकारें अपने सियासी हित साधने के लिए किस तरह जनता के पैसों की बर्बादी करती है इसकी बानगी एक बार फिर मध्यप्रदेश में देखने को मिली है। संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर ग्वालियर में 16 अप्रैल को होने वाले सरकारी कार्यक्रम में सिर्फ लोगों को लाने और लेने जाने के लिए सरकार 6 करोड़ से अधिक की राशि खर्च करने जा रही है।

राज्यपाल के मुख्य अतित्थ्य में होने वाले अंबेडकर महाकुंभ में ग्वालियर-चंबल अंचल के 8 जिलों से लोगों को कार्यक्रम स्थल तक लाने के लिए ढाई हजार बसों की व्यवस्था करने के लिए परिवहन विभाग को बकायदा पत्र लिखा गया। इतनी बड़ी संख्या में बस की व्यवस्था के लिए परिवहन विभाग ने अनुसूचित जाति विभाग को पत्र लिखकर कुल अनुमानित 6 करोड़ 18 लाख का खर्च बताते हुए नियमों का हवाला देते हुए 4 करोड़ 94 लाख रूपए अग्रिम मांग लिए है।

दअऱसल चुनाव साल में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सरकारी आयोजन के बहाने अपने दलित एजेंड़ा साधना चाह रही है। इसके लिए ग्वालियर में 16 अप्रैल को अंबेडर महाकुंभ में एक लाख दलित लोगों को जुटाने का लक्ष्य है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जुटाने का जिम्मा अब सरकार के  विभागों में डाल दिया गया। वहीं विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकारी खर्च पर लोगों को लाने के लिए इतनी बड़ी राशि खर्च करने पर सवाल उठा दिए है। कांग्रेस ने इसे जनता की पैसे की बर्बादी बताया है। 

ग्वालियर-चंबल पर फोकस क्यों?-ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ करने के पीछे सरकार की मंशा दलित वोटों को साधने की है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से भाजपा मात्र 7 सीटों पर सिमट गई थी और उसको सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की सभी छह सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी वहीं भिंड जिले की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस ने जीती थी। वहीं भाजपा  के गढ़ कहे जाने वाले  ग्वालियर के छह सीटों में से पांच सीट कांग्रेस ने हथिया ली थी। जबकि भाजपा एक मात्र सीट ग्वालियर ग्रामीण बचाने में सफल रही थी। वहीं शिवपुरी की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस को मिली थी।

ग्वालियर-चंबल में भाजपा की हार का बड़ा कारण एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण के चलते अंचल के कई जिलों का हिंसा की आग में झुलसना था। हिंसा के बाद दलित वोट बैंक भाजपा से दूर हो गया था। ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और 2018 के विधानसभा चुनाव में से भाजपा इन 7 सीटों में से सिर्फ एक सीट जीत सकी थी। वहीं अंचल की सामान्य सीटों पर भी दलित वोटरों ने भाजपा की मुखालफत कर उसकी प्रदेश में चौथी बार सत्ता में वापसी की राह में कांटे बिछा दिए। गौर करने वाली बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में  भिंड विधानसभा सीट पर बसपा के संजीव सिंह ने जीत कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को पटखनी दे दी थी। 

हलांकि 2020 में सिंधिया के अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में आने के बाद एक बार मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में लौट आई थी और उपचुनाव के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा आंकड़ों के नजरिए से कांग्रेस पर भारी हो गई थी लेकिन उपचुनाव में भाजपा 6 सीटों मे से सिर्फ 2 ही जीत सकी। भाजपा के टिकट पर लड़े सिंधिया समर्थक इमरती देवी, गिर्राज दड़ोतियां जैसे चेहरे मंत्री रहते हुए भी हार गए।

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