इंदौर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने राज्य सरकार की 3 महीने पहले जारी उस अधिसूचना के अमल पर सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी, जिसके तहत नगर निकायों के महापौरों और अध्यक्षों के पदों को आरक्षित किया गया था।
जानकारों के मुताबिक, अदालत के इस आदेश के प्रभाव से नगर निकाय चुनावों पर कानूनी संकट गहरा गया है क्योंकि पदीय आरक्षण की अधिसूचना के अमल पर रोक से निर्वाचन प्रक्रिया को तुरंत आगे बढ़ाया जाना संभव नहीं है। गौरतलब है कि ये चुनाव सालभर से ज्यादा समय से टलते आ रहे हैं और अभी इनके कार्यक्रम की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत की ग्वालियर पीठ के 12 मार्च के अंतरिम आदेश का हवाला दिया और निर्देशित किया कि समानता के न्यायिक सिद्धांत के आधार पर यह आदेश इंदौर में दायर याचिका पर पूरे प्रभाव के साथ जस का तस लागू होगा।
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ ने 12 मार्च को पहली नजर में पाया था कि अगले चुनावों के लिए पदीय आरक्षण की प्रक्रिया के दौरान कई नगर निकायों में चक्रानुक्रम (रोटेशन) नीति का पालन नहीं किया गया था और महापौर या अध्यक्ष का पद उसी वर्ग (अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति) के लिए आरक्षित कर दिया गया था, जिस वर्ग के लिए यह पद वर्ष 2014 के पिछले चुनावों में आरक्षित था।
इस अवलोकन के बाद ग्वालियर पीठ ने प्रदेश सरकार द्वारा 10 दिसंबर 2020 को जारी उस अधिसूचना के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसके तहत संबंधित नगर निकायों के महापौरों और अध्यक्षों के पदों को आरक्षित किया गया था।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में इंदौर जिले की हातोद नगर परिषद के पार्षद नरोत्तम चौधरी और इसके पूर्व पार्षद सुरेंद्र वर्मा ने जनहित याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस नगर निकाय के अध्यक्ष का पद पिछले तीन चुनावों से अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार के लिए आरक्षित किया जा रहा है और ऐसा किया जाना संवैधानिक प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने इस याचिका पर प्रदेश सरकार और राज्य चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर दो हफ्तों में जवाब भी तलब किया है।(भाषा)