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इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल 2018 : साहित्य के विराट उत्सव का रंगारंग शुभारंभ

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इंदौर, यह शहर है संस्कृति का, कला का, रंगों का, साहित्य का... यहां की आत्मीयता, यहां का खानपान, यहां की बोली सब निराली है.. इसी  शहर में 21 दिसंबर 2018 की सुबह इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल 2018 का रंगारंग पारंपरिक अंदाज में शुभारंभ हुआ। 
 
प्रति वर्ष यह महोत्सव जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की तर्ज पर आयोजित होता है और इंदौर की धरती पर ज्ञान, विचार और जिज्ञासु मनीषा की गंगा प्रवाहित होने  लगती है।
 
इस 3 दिवसीय आयोजन में साहित्य, कला, समाज और संस्कृति से जुड़ी कई नामचीन हस्तियां आती हैं और खूबसूरत अनुभव लेकर जाती है साथ ही इंदौर की जनता को भी अपनी विद्वता से धन्य कर जाती है। साहित्य अनुरागियों के लिए यह अवसर होता है अपने प्रिय लेखकों से मिलने का, उनसे बातचीत का... 
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इस वर्ष का प्रमुख आकर्षण हैं मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड, उनके साथ कई बड़े नाम यहां आज समारोह में  शामिल हुए।
 
देवदत्त पटनायक, अश्विन सांघी, नरेन्द्र कोहली, ममता कालिया, उषा किरण खान, मालिनी अवस्थी, टोमोको किकुची, इंदिरा दांगी, मनीषा  कुलश्रेष्ठ, नीलोत्पल मृणाल जैसे कई दिग्गज आज इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल 2018 के शुभारंभ के साक्षी हुए।
 
कार्यक्रम की शुरुआत अमेरिकन बच्चों जैल, सारा और एंड्रयू ने कबीर और रहीम के खूबसूरत दोहों के वाचन से की, साथ ही हरिवंश राय बच्चन की कविता प्रस्तुत कर सभी उपस्थित श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया। रागिनी मक्खर ने केसरिया बालम पधारों नी म्हारे देस पर सुंदर कलात्मक प्रस्तुति दी।
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पहले सत्र में मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड ने बताया कि कैसे कहानियां समाज को आकार देती हैं, और लेखक कभी रिटायर्ड नहीं होते। उन्होंने स्कूल के बाद ही लिखना आरंभ कर दिया था। रस्किन बॉन्ड ने इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल को शुभकामनाएं देते हुए निरंतर प्रगति के लिए शुभकामनाएं दी। 
 
आयोजक प्रवीण शर्मा ने कहा कि 4 साल पहले जब इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल की विनम्र शुरुआत की थी तब सोचा नहीं था कि आज रस्किन बॉन्ड जैसी शख्सियत को अपने बीच पाऊंगा। इस अवसर पर सभी दर्शकों ने खड़े होकर रस्किन जी का भावुक अभिनंदन किया।
 
उन्होंने बताया इस आयोजन का उद्देश्य यही है कि युवा साहित्य से सकारात्मक रूप से कनेक्ट हों। भारतीय मनीषा इतनी प्रखर और प्रतिभाशाली है कि हम इंग्लिश क्या हर भाषा आसानी से सीख सकते हैं।साहित्य के सभी महानायकों का मैं स्वागत करता हूँ।
 
कौटिल्य अकेडमी के मनोहर जोशी के अनुसार-   जब मैं रस्किन को पढ़ता हूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं किसी और को पढ़ रहा हूं, मुझे लगता है मैं खुद को ही पढ़ रहा हूं। उनकी कोई पुस्तक ऐसी नहीं जो मैंने नहीं पढ़ी हो।
 
इस अवसर पर विनय छजलानी ने वेबदुनिया परिवार की और से सभी साहित्यकारों का अभिनंदन किया और कहा कि हमें बड़े महानुभावों को सुनना है इसलिए मैं चाहता हूं कि कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाए।

उसके बाद वाले सत्र में युवाओं की खासी भीड़ देखी गई। इस सत्र में पौराणिक आख्यानों को दिलचस्प अंदाज में प्रस्तुत करने वाले देवदत्त पटनायक दर्शकों से रूबरू हुए। इस सत्र को वेब‍दुनिया के संस्थापक विनय छजलानी ने मॉडरेट किया। कई रोचक सवालों का जवाब देवदत्त ने अपने चिरपरिचित अंदाज में दिया और सत्र को अपनी धाराप्रवाह वाणी से बांधे रखा।
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सत्र कहानी वाचन में ज्योति जैन, अमिता नीरव और भारती दीक्षित ने अपनी रचना सुनाई, ज्योति जैन ने औरत कहीं की शीर्षक से कहानी पढ़ी, अमिता नीरव ने सांवली लड़की की डायरी पढ़ी।
 
भारती दीक्षित ने वरुण ग्रोवर की कहानी सुनाई। भारती दीक्षित स्टोरी टैलिंग पर अपना यू ट्यूब चैनल चलाती हैं। ज्योति जैन शहर की जानीमानी लेखिका है उनकी अब तक 9 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। अमिता दीक्षित नईदुनिया के संपादकीय विभाग से जुड़ी हैं।

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साहित्य का महासमर सत्र में नरेंद्र कोहली से आशुतोष दुबे की चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा कि लेखक बनते नहीं है लेखक पैदा होते हैं। आज छाती ठोक कर कहने का मन होता है कि लेखक होकर ठीक ही किया।
 
सहिष्णुता के विषय पर बोलते हुए नरेंद्र कोहली ने कहा कि भारत जैसा सहिष्णु देश पूरी सृष्टि में नहीं मिलेगा। 
यह देश सब कुछ देखते झेलते भी चल रहा है हमने किसी को यहां से निकाल नहीं दिया।
 
उन्होंने शिव महिम्न स्तोत्र का जिक्र करते हुए कहा कि हमने उसके अर्थ की तरह ही सबको अपने में समाहित किया है स्तोत्र में है कि हे प्रभो पानी जहां कहीं भी हो अंततः समुद्र में मिलता है उसी तरह सबको हमारा देश भी सबको अपने में शामिल कर लेता है। वहीं फिल्मों में साहित्य के योगदान को लेकर उन्होंने कहा कि साहित्य ने फ़िल्म में योगदान दिया या नहीं पर फिल्मों ने साहित्य को नुकसान पहुंचाया है।

अश्विन सांघी ने अपनी रचनाधर्मिता पर कहा कि जैसे बच्चों की कलर बुक होती है जिसमे आउट लाइन बनी होती है बस कलर भरना होता है ऐसा ही मेरा लेखन है कि आउट लाइन फिक्स है मैं बस कलर करता हूं। दिन भर में मैं सिर्फ सुबह 5 बजे उठकर 9 बजे तक लिखता हूं और सरस्वती का आशीर्वाद है कि वही लेखन सार्थक हो जाता है।
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सत्र रचना पाठ मैं ममता कालिया जी ने अपनी रचना विकास का वाचन किया। साथ में मनीषा कुलश्रेष्ठ रहीं, जिन्होंने 'मन के मौसम सूने हैं' का पाठ किया।

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