भोपाल। भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को कहा कि वह दोपहर में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ अपनी निर्धारित बैठक में प्रदेश की विकास योजनाओं की प्रगति की समीक्षा करेंगे। मध्यप्रदेश में उपचुनाव के बाद प्रतीक्षित मंत्रिमंडल के विस्तार के विषय पर सिंधिया ने मुख्यमंत्री से चर्चा करने से इंकार करते हुए कहा कि यह मुख्यमंत्री और शीर्ष नेतृत्व का अधिकार है।
सिंधिया ने कहा, हम अपनी बैठक के दौरान प्रदेश की विकास योजनाओं की समीक्षा करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें जल्द से जल्द पूरा किया जाए। मंत्रिपरिषद के विस्तार के सवाल पर सिंधिया ने कहा, इस विषय पर कोई चर्चा नहीं होगी। यह मुख्यमंत्री और शीर्ष नेतृत्व का अधिकार है।
मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद सिंधिया और चौहान दोनों प्रदेश के ऐतिहासिक शहर ओरछा में एक विवाह समारोह में शामिल होने जाएंगे। उपचुनाव के परिणाम के बाद यह कयास लगाया जा रहा था कि सिंधिया के दो कट्टर समर्थकों तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को जल्द ही मंत्रिपरिषद में फिर से शामिल किया जाएगा।
गैर विधायक के तौर पर मंत्रिपरिषद में रहने की अधिकतम छह माह की अवधि पूरी होने की वजह से दोनों को उपचुनाव से पहले ही त्याग पत्र देना पड़ा था। उपचुनाव में दोनों ही नेता अपनी-अपनी विधानसभा सीटों से फिर से चुनाव जीत कर विधायक बन चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 के कारण प्रदेश में उपचुनाव विधानसभा सीट खाली होने के छह माह पूरे होने के बाद कराए गए। उपचुनाव में सिंधिया समर्थक सिलावट और राजपूत चुनाव जीत गए। वहीं सिंधिया समर्थक ऐदल सिंह कंषाना, इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया उपचुनाव हार गए। इसके बाद तीनों मंत्रियों ने मंत्रिपरिषद से त्याग पत्र दे दिया।
सिंधिया, मुख्यमंत्री चौहान से उनके निवास पर 45 मिनट मुलाकात करेंगे। इसमें यह अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी बैठक के बाद सिंधिया समर्थकों को मंत्रिपरिषद अथवा निगम- मंडलों में शामिल किया जाएगा।
उपचुनाव के बाद प्रदेश के भिंड जिले से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री गोविंद सिंह के खिलाफ कांग्रेस में पैदा दरार के सवाल पर सिंधिया ने कहा, ये तो असलियत है और जो अंदर का खेल है, वो अब बाहर आ रहा है। ये जो कांग्रेस की सदैव ये पृष्ठभूमि रही है और आज ये उजागर होकर बाहर आ रही है। ये सवाल आप कांग्रेस से ही पूछिए।
मालूम हो कि वर्तमान में प्रदेश मंत्रिपरिषद में छह स्थान खाली हैं। इनमें दो ने गैर विधायक के तौर पर छह माह की अवधि पूरी होने पर त्याग पत्र दिए तथा तीन गैर विधायक उपचुनाव में हार गए जबकि दो जुलाई को हुए दूसरे विस्तार के बाद मंत्रिपरिषद में एक स्थान खाली रखा गया था। नियमानुसार मध्यप्रदेश मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित 35 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए।(भाषा)