भोपाल। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी जिसका सबसे मजबूत गढ़ मध्यप्रदेश माना जाता है। उस मध्यप्रदेश में भाजपा पहली पिछले 20 सालों में पहली बार बैकफुट पर दिखाई दे रही है। संगठन चुनाव को लेकर तमाम दावे करने वाले मध्यप्रदेश भाजपा गुटबाजी और बगावत के डर से अब तक एक भी जिला अध्यक्ष के नाम की घोषणा नहीं कर पाई। हालात यहां तक खराब हो गए है कि भाजपा का कोई भी वरिष्ठ नेता अपने कार्यकर्ताओं को इस बात का भरोसा नहीं दिला पा रहा है कि जिला अध्यक्षों के नामों का एलान कब होगा।
जिस मध्यप्रदेश को भाजपा संगठन के कार्यकर्ताओं को गढ़ने की नर्सरी कहा जाता है और जो भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे की जन्मस्थली औऱ कर्मस्थली है उस मध्यप्रदेश में पहली बार भाजपा का चाल-चरित्र और चेहरे के साथ अनुशासन तार-तार होता दिखाई दे रहा है। जिला अध्यक्षों के एलान से पहले जिलों से लेकर प्रदेश भाजपा कार्यालय तक संभावित दावेदारों को लेकर शिकवे-शिकायत से शुरु हुआ दौर अब विरोध प्रदर्शन तक पहुंच गया है। जिलों के भाजपा कार्यकर्ता गुटों में प्रदेश भाजपा दफ्तर पहुंचकर एक दूसरे की शिकायत कर रहे है और इस बात का भी साफ संकेत दे रहे है कि अगर जिला अध्यक्षों के चुनाव में उनकी बातों का ध्यान नहीं रखा गया तो वह खुलकर विरोध करेंगे।
5 सालों में भाजपा का कांग्रेसीकरण अब बना चुनौती?- मध्यप्रदेश भाजपा संगठन जिसकी पूरे देश में पहचान अपने कार्यकर्ताओं से होती है उसमें जिस तरह से पिछले दिनों बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एंट्री मारी और संगठन के मूल कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर उनकी आवभगत की गई है वह अब संगठन चुनाव में भाजपा की गले की हड्डी बन गया है। प्रदेश के दो सबसे बड़े जिले सागर और ग्वालियर इसका उदाहरण है जहां कांग्रेस से भाजपा में आए नेता अब संगठन चुनाव में अपनी धमक दिखाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
सागर और ग्वालियर में जिला अध्यक्षों के चुनाव को लेकर भाजपा के वर्षों पुराने दिग्गज नेता और कांग्रेस से भाजपा में पैराशूट के जरिए लैंड करने वाले नेता पूरी तरह आमने-सामने है। ग्वालियर शहर और ग्वालियर ग्रामीण जिला अध्यक्ष को लेकर नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा आमने सामने आ गया है। दोनों ही जगह दिग्गज नेताओं के समर्थक अपनी तगड़ी दावेदारी कर रहे है। ग्वालियर शहर के जिला अध्यक्ष के दावेदारी आशीष अग्रवाल, विनय जैन, रामेश्वर भदौरिया, दीपक शर्मा, भरत दातरे दावेदारी कर रहे है वहीं ग्वालियर ग्रामीण से कप्तान सिंह सहसारी, कुलदीप यादव, विकास साहू और प्रेम सिंह राजपूत दावेदारी कर रहे है।
वहीं सागर में जिला अध्यक्ष के चुनाव को लेकर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह फिर आमने सामने है। पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने पूर्व सांसद राजबहादुर सिंह का नाम जिला अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ाया है जो कि गोविंद सिंह राजपूत के धुर विरोधी है। जबकि मंत्री गोविंद सिंह राजपूत वर्तमान जिला अध्यक्ष गौरव सिरौठिया को फिर एक मौका दिए जाने के लिए लांबिग कर रहे है। इसके साथ ही गोपाल भार्गव की पिछले दिनों भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ मुलाकात ने सियासी सरगर्मी और बढ़ा दी है।
गौरतलब है कि पिछले पांच सालों में बड़ी संख्या में कांग्रेस के सीनियर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाजपा में एंट्री की है। इसकी शुरुआत मार्च 2020 में उस वक्त हुई थी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुई थे और पंद्रह महीने में कांग्रेस सत्ता से बेदखल होकर भाजपा काबिज हुई थी। वहीं 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद बड़ी संख्या में कांग्रेस के दिग्गज नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की संख्या इतनी अधिक हो गई थी कि भाजपा को अपने दिग्गज नेता नरोत्तम मिश्रा की अगुवाई में संगठन में न्यू ज्वाइंनिंग टोली का गठन करना पड़ा और उसने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल कराया। कांग्रेस से भाजपा में आए यहीं नेता और कार्यकर्ता अब संगठन चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती बन गए है यानि भाजपा का कांग्रेसीकरण अब उसके लिए ही चैलेंज बन गया है।