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मां विजयासन धाम सलकनपुर में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब, रक्तबीज का किया था वध

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नवेद जाफरी

, शनिवार, 5 अक्टूबर 2019 (18:15 IST)
-देशभर में कई चमत्कारिक मंदिर हैं, जो भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र हैं। ऐसा ही एक मंदिर सीहोर जिले में देवीधाम श्रीमद् सिद्धेश्वरी विजयासन श्रीधाम है। यह सलकनपुर के विजयासन श्रीधाम के नाम से प्रसिद्ध है। यहां आम दिनों में तो श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्रि में भक्तों की संख्या लाखों तक पहुंच जाती है।
नवरात्रि में विशेष पूजा-अर्चना : हर साल नवरात्रि में सलकनपुर मंदिर पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। यहां भक्त जो भी मनोकामना करते हैं, वह पूरी होती है। मंदिर को लेकर अनेक किंवदंतियां और जानकारियां हैं, जो सभी भक्तों का विश्वास लगातार बढ़ाती हैं। सभी भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र यह मंदिर काफी पुराना है।
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कैसे पहुंचें मंदिर तक? : मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से वाहन द्वारा जाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त रोपवे से भी मंदिर तक जा सकते हैं। विशेष बात यह है कि मंदिर तक पहुंचने के लिए 1,451 सीढ़ियां हैं। पहाड़ी के निचले स्थान से मंदिर की दूरी 3,500 फुट तथा ऊंचाई 800 फुट है। यहां भक्त यूं तो प्रतिदिन पहुंचते हैं लेकिन नवरात्रि में यह संख्या बढ़ जाती है। अधिकांश भक्त मां का नाम लेकर सीढ़ियों से पैदल मंदिर तक पहुंचते हैं।
पुरातन मंदिरों में शामिल : सलकनपुर का मां विजयासन धाम प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों में शामिल है। मंदिर का निर्माण 1100 ईस्वीं के करीब गोंड राजाओं ने कराया था। प्रसिद्ध संत भद्रानंद स्वामी ने मां विजयासन की कठोर तपस्या की थी। किंवदंती है कि राक्षस रक्तबीज के वध के बाद माता जिस स्थान पर बैठी थीं, उसी स्थान को 'मां विजयासन धाम' के रूप में जाना जाता है। इसी पहाड़ी पर कई जगहों पर रक्तबीज से युद्ध के अवशेष नजर आते हैं।
 
विभिन्न प्राचीन स्थान भी : इस मंदिर के पास विभिन्न प्राचीन स्थान भी हैं जिनमें किला गिन्नोर, आंवलीघाट, देलावाड़ी, सारू मारू की गुफाएं और भीमबैठिका आदि प्रमुख हैं। मंदिर से अधिकतर भक्त चांदी का शुद्ध सिक्का व माताजी की फोटो आदि लेकर जाते हैं।
तुलादान से होती है मनोकामना की पूर्ति : मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए तुलादान किया जाता है जिसमें व्यक्ति के भार के बराबर गुड़, अनाज व फल आदि वस्तुएं श्रद्धा और मान्यता के अनुसार तौलकर दान की जाती हैं। नवरात्रि में बड़ी संख्या में भक्त तुलादान करते हैं और मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के अलावा बच्चों के मुंडन संस्कार भी इसी मंदिर के प्रांगण के पास करते हैं।

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