मध्यप्रदेश में बच्चे कर रहे सबसे अधिक आत्महत्या, NCRB की रिपोर्ट से खुलासा ,एक्सपर्ट बोले- आत्महत्या रोकथाम नीति बनाए सरकार
मेंटल हेल्थ स्कूली सिलेबस में हो शामिल : डॉ सत्यकांत त्रिवेदी
भोपाल। आज युवा पीढ़ी और बच्चे किस तरह डिप्रेशन में जाकर सुसाइड जैसे आत्मघाती कदम उठा रहे है इस का खुलासा करती है संसद में पिछले दिनों पेश की गई नेशनल क्राइम ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट। रिपोर्ट में बताए गए आंकड़ों को देखें तो मध्यप्रदेश को लेकर दिए गए सुसाइड के आंकड़े काफी हैरान कर देने वाले है। आंकड़ों को देख कर हम इस बात का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी किस कदर डिप्रेशन के दौर से गुजर रही है और यह डिप्रेशन उन पर कितना भारी पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश में हालात डरावने!- संसद में पेश की गई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक में साल 2017-19 के बीच 14-18 एज ग्रुप के बच्चों की आत्महत्या के मामले में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है जहां 2017-19 के बीच 3,115 बच्चों ने आत्महत्या की। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 2,802, महाराष्ट्र में 2,527 और तमिलनाडु में 2035 बच्चों ने आत्महत्या की।
जिंदगी पर भारी एग्जाम!- NCRB की रिपोर्ट बताती है कि साल 2017-19 के बीच 14-18 की आयु वाले 24 हजार से ज्यादा बच्चों ने आत्महत्या की। जिसमें एग्जाम में फेल होने से आत्महत्या करने के चार हजार से अधिक मामले है। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरन 4,046 बच्चों ने परीक्षा में फेल होने की वजह से आत्महत्या की है। वहीं 14-18 एज ग्रुप में प्रेम संबंधों के चलते 3,315 बच्चों ने आत्महत्या की है। वहीं 2567 बच्चों ने बीमारी के कारण, 81 बच्चों ने शारीरिक शोषण से तंग आ कर आत्महत्या कर ली।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट- 'वेबदुनिया' से बातचीत में मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि बच्चों में आत्महत्या के मामलों को लेकर NCRB के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले है। वहीं एग्जाम में फेल होने के चलते बच्चों की सबसे अधिक आत्महत्या करने की रिपोर्ट ने हमारे पूरे एजुकेशन सिस्टम पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। वहीं मध्यप्रदेश में देश में सबसे 14-18 आयु-वर्ग के छात्रों के सुसाइड करने के NCRB के आंकड़े को वह भविष्य के लिए काफी खतरनाक संकेत बताते है।
बातचीत में डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षार्थी आत्महत्या की हाईरिस्क ग्रुप की कैटेगरी में आते है, इसलिए स्कूल-कॉलेज में भी समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए,ताकि मानसिक रोगों जैसे डिप्रेशन की पकड़ पहले से ही की जा सके और सही इलाज़ से आत्महत्या के खतरे को समय रहते समाप्त किया जा सके।
इसके साथ अब वह वक्त आ गया है कि सरकार को तत्काल स्कूलों के सिलेबस में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धी अध्याय जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा, जीवन प्रबंधन, साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड को शामिल किया जाए। जिसमें हमारी नयी पीढ़ी बचपन से ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बन सकें और जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना बखूबी कर सकें और मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता के साथ कलंक का भाव भी न रहे.शिक्षकों को भी मानसिक रोगों के प्रति जानकारी होना आवश्यक है।
डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोरोना काल में जिस तरह से आत्महत्या के मामले बढ़े है उससे आज जरुरत इस बात की है कि सरकार को तत्काल आत्महत्या रोकथाम नीति लाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए नहीं तो आने वाले वक्त में हालात बहुत ही चिंताजनक हो सकते है।