1963 के युद्ध में युद्ध बंदी की तरह भारत आए पूर्व चीनी सैनिक वांग शी कब भारत को अपना घर मानने लगा पता ही नहीं चला। 56 सालों तक यहां बिना वीजा और बिना किसी सरकारी पहचान के रहा। इस दौरान उसे अपने घर और देश की याद सताने लगी और लंबे संघर्ष के बाद 2017 में आखिरकार वह अपने वतन पहुंच ही गया।
वांग शी भले ही चीन पहुंच गया लेकिन उसका परिवार और दोस्त यहीं रह गए। अब 56 सालो तक जहां वह रहा, जिया, जहां शादी की, जहां परिवार है उस जगह वह वापस आना चाहता है। लेकिन सरकारी उलझने अब उस की भारत वापसी के रास्ते में आड़े आ रही है।
वांग शी को भारत में राज बहादुर और चीन में वांग शी के नाम से जाना जाता है। वीडियो कॉल पर परिवार से बात करता है। पिछले कुछ माह से भारत आने के लिए वह चीन और भारत की एंबेसी के चक्कर लगा रहा है।
1963 में चीनी युद्ध बंदी के रूप में पकड़े जाने के बाद पहले कुछ सालों तक जेल में और फिर बालाघाट के तिरोड़ी में रहा यहां शादी की परिवार बसाया, इस बीच मरने के पहले एक बार अपने देश चीन जाने की उस की चाहत उसे चीन ले गई। लेकिन अब अपने परिवार के पास भारत आने तरस रहा है।
वहीं वांग शी के पुत्र का कहना है कि पिता 5 महीने से चाइना के बीजिंग में चीन और भारत की एंबेसी के चक्कर लगा रहे हैं। उन्हें आने का वीजा नहीं मिल रहा है। वे 80 साल के हो चले है हम चाहते है कि सरकार उन्हें 5 साल का वींजा दे घर आने दे।
वांग ची उर्फ राजबहादुर दो नाम, दो पहचान, दो देश लेकिन आदमी एक जिसका परिवार उस के आने की चाहत और इंतजार में है कभी फोटो देख तो कभी वीडियो कॉल पर परिवार बात कर मन तो बहला लेता है लेकिन वांग छी के घर वापसी का इंतजार उन्हें हर पल है।
सरहदी कानून इंसान को आने जाने से रोक सकते है पर उन से जुड़े रिश्ते और भावनाओं को नहीं कभी 56 सालो तक भारत में रहते एक बार अपने परिवार के पास जाने के लिए तरस रहा वांग ची फिर एक बार लड़ रहा है इस बार लड़ाई अपने वतन नहीं घर वापसी की है। वांग शी का परिवार जहा उनके इंतजार में है वहीं यहां का प्रशासन भी इस के लिए प्रयास करने की बात कर रहा है।