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मध्यप्रदेश भाजपा में बढ़ रहा क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद?, अमित शाह के सिंधिया महल जाने के समझें सियासी मायने!

हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश भाजपा में बढ़ रहा क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद?, अमित शाह के सिंधिया महल जाने के समझें सियासी मायने!
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विकास सिंह

, शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022 (18:35 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल का वक्त शेष बचा हो लेकिन भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने मध्यप्रदेश को अपने राडार पर ले लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह एक के बाद एक ताबड़तोड़ प्रदेश के दौरे पर आ रहे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उज्जैन के दौरे के ठीक पांच दिन बाद गृहमंत्री अमित शाह 16 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के दौरे पर आ रहे है। एक दिन के अपने दौरे के दौरान अमित शाह राजधानी भोपाल और ग्वालियर में दो बड़े कार्यक्रमों में शामिल होंगे।

गृहमंत्री अमित शाह के भोपाल एवं ग्वालियर दौरे को मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के दौरान सबकी निगाहें उनके ज्योतिरादित्य सिंधिया के जयविलास पैलेस जाने के कार्यक्रम पर टिकी हुई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद यह पहला बड़ा मौका होगा जब भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से जुड़ा कोई व्यक्ति महल आ रहा हो। गृहमंत्री अमित शाह के जयविलास पैलेस में आगवानी की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसकी कमान अपने हाथों में संभाल रखी है। 

ग्वालियर-चंबल की राजनीति में महल का प्रभाव-ग्वालियर-चंबल की सियासत में सिंधिया का महल सत्ता के एक स्थापित केंद्र के रूप में देखा जाता है और इसका अपना एक प्रभाव है। जनसंघ की संस्थापक राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बाद माधवराव सिंधिया और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया महल का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा में आने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में लगे हुए है। सिंधिया लगातार अपने दौरे के जरिए अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे है।

दरअसल मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल अंचल किंगमेकर की भूमिका में रहता है। भाजपा और कांग्रेस जो भी ग्वालियर चंबल अंचल में जीतती है उसकी ही प्रदेश सरकार बनती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से भाजपा 9 सीटों पर सिमट गई थी और उसको सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2020 में सिंधिया के अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आने के बाद एक बार मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में लौट पाई। ऐसे में प्रदेश की सियासत में सिंधिया महल की अपनी एक भूमिका है।
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भाजपा में बढ़ रहा सिंधिया का  सियासी कद?- भाजपा में सिंधिया के बढ़ते कद को लेकर प्रदेश की राजनीति में कई तरह की सियासी चर्चाएं शुरु हो गई है। पिछले दिनों उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब महाकाल मंदिर में दर्शन करने पहुंचे तो राज्यपाल मंगुभाई पटेल,मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया ही उनके साथ थे। वहीं अब ग्वालियर में अमित शाह का सिंधिया के महल पहुंचने से उनके बढ़ते सियासी कद के तौर पर देखा जा रहा है।

भाजपा में शामिल होने के बाद पहले राज्यसभा में जाना फिर मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री बनना और इसके बाद इस्पात मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिलना उनके सियासी कद में भी इजाफा कर रही है। मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया को एक पवार सेंटर के तौर पर देखा जाता है। सिंधिया चाहे कांग्रेस में रहे हो या अब भाजपा में हो, उनके समर्थकों की एक अलग संख्या है।  

सिंधिया को घेरने में जुटी कांग्रेस-ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ग्वालियर-चंबल के साथ मध्यप्रदेश में एक बड़ी चुनौती के रूप में देख रही है। अमित शाह के सिंधिया महल पहुंचने से पहले दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने उन पर हमला तेज कर दिया है। दिग्विजय सिंह ने आज सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर करते हुए सिंधिया पर निशाना साधा तो एक दिन पहले जयवर्धन सिंह सिंधिया को पनौती बता चुके है। वहीं नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह का यह कहना है कि सिंधिया के साथ भाजपा में गए कई नेता वापस कांग्रेस में आने को तैयार है,सिंधिया की एक घेराबंदी के तौर पर देखा जा रहा है।

2024 में ग्वालियर से लोकसभा लड़ेंगे सिंधिया?-ज्योतिरादित्य सिंधिया जो भी मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद है वह क्या 2024 में लोकसभा चुनाव ग्वालियर से लड़ेंगे। यह सवाल भी ग्वालियर-चंबल के सियासी गलियारों में चर्चा के केंद्र में है। 2019 का लोकसभा चुनाव गुना से हराने वाले सिंधिया अपने लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश मे है। ऐसे में जब ग्वालियर जो कि भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जाता है और वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर 75 वर्ष की आयु पूरी कर चुके है तब पार्टी उनको दोबार मौका देगी इसकी संभावना बहुत कम है। ऐसे में सिंधिया को इसको एक मौके के रूप में देख रहे है।

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