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हवस की मंडी का खौफनाक सच...

हमें फॉलो करें हवस की मंडी का खौफनाक सच...

मुस्तफा हुसैन

, मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018 (12:25 IST)
मध्यप्रदेश में एक ओर बेटी बचाओ का नारा पुरजोर तरीके से उठाया जाता है, वहीं दूसरी ओर मालवा में देहव्यापार के लिए कुख्यात बांछड़ा समाज के डेरों में तस्करी कर लाई जा रहीं लड़कियों को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल दिया जाता है। ...और फिर शुरू होती है इन लड़कियों की कभी खत्म नहीं होने वाली नारकीय यातनाएं। पढ़िए रौंगटे खड़े कर देने वाली खास रिपोर्ट...
 
मालवा के नीमच, मंदसौर और रतलाम इलाके में बांछड़ा समुदाय के डेरों की खास जगह है और इस समुदाय में देह व्यापार को सामाजिक मान्यता है। ये समाज अपनी दो वक्त की रोटी कमाने के लिए लड़कियों से जिस्मफरोशी करवाता है और इसीलिए इस समाज में लड़की बड़ी कीमती चीज मानी जाती है। 
 
लड़की की पैदाइश पर बांछड़ा समुदाय मे जमकर जश्न होता है। इन सब बातों के मद्देनजर समुदाय ने लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए नया तरीका निकाला है। वह यह कि दूसरे समुदाय की और गरीब परिवारों की लड़कियां पैदा होते ही खरीद लो फिर फिर उनको पालो-पोसो बडी करो और फिर झोंक दो वेश्यावृत्ति के धंधे में।
 
एनजीओ नई आभा सामाजिक चेतना समिति के संयोजक आकाश चौहान ने बताया कि मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में 75 गांवों में बांछड़ा समुदाय की 23 हजार की आबादी रहती है। इनमें 2 हजार से अधिक महिलाएं व युवतियां देह व्यापार में लिप्त हैं। चौहान का दावा है कि मंदसौर जिले की जनगणना के अनुसार यहां 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां है। पर बांछड़ा समाज में स्थिति उलट है। 2015 में महिला सशक्तीकरण विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में 38 गांवों में 1047 परिवार और कुल जनसंख्या 3435 दर्ज हुई थी। इसमें 2243 महिलाएं थीं और महज 1192 पुरुष थे। यानी पुरुषों के मुकाबले दोगुनी महिलाएं। 
वहीं सन 2012 में नीमच के महिला सशक्तीकरण विभाग ने एक सर्वे जिले के 24 बांछड़ा बाहुल्य गांवों में करवाया था, जिसमें 1319 बांछड़ा परिवार मिले जिसमें 3595 महिलाएं और 2770 पुरुष मिले जहां देश में आमतौर पर प्रति पुरुष महिलाओं की संख्या कम है, वहीं बांछड़ा समुदाय में महिलाएं अधिक और पुरुष कम हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण तस्करी कर लाई गई छोटी बच्चियां भी हो सकती हैं।
 
इस मामले में एंटी करप्शन मूवमेंट दिल्ली के सदस्य और आरटीआई कार्यकर्ता एडवोकेट अमित शर्मा कहते हैं ये एक गंभीर मामला है। निश्चित ही बांछड़ा समुदाय में दूसरी तरफ से गरीब परिवारों की बच्चियां कम उम्र में खरीद कर लाई जा रही हैं, यही कारण है कि इस समाज में महिलाएं अधिक और पुरुष कम हैं। 
 
मालवा में जिस्मफरोशी के लिए मासूम बच्चियों की खरीद-फरोख्त का पहला मामला उस समय सामने आया जब 15 जुलाई 2014 को नीमच पुलिस ने कुकड़ेश्वर पुलिस थाना क्षैत्र के मौया गांव में स्थित बांछड़ा डेरे पर दबिश दी थी, जहां श्याम लाल बांछडा के यहा पुलिस को एक 6 वर्षीय नाबालिग बालिका मिली। जिसके बारे में श्याम लाल की पत्नी प्रेमा बाई बांछड़ा ने पुलिस को बताया कि इस लड़की को सन 2009 में वो नागदा से खरीद कर लाए थे, जिसका सौदा नागदा के ही एक दलाल रामचन्द्र ने करवाया था जो मानव तस्करी के मामले में सन 2011 से जेल मे बंद है।
 
इस पूरे मामले के खुलासे के बाद पुलिस भौंचक्की रह गई क्योंकि इस मामले में बाकायदा पांच सौ रुपए के स्टाम्प पर सौदा किया गया। पुलिस ने उक्त बच्ची को बरामद कर प्रेम बाई के विरुद्ध भादवि की धारा 370/4, 372, 373, मानव तस्करी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन इस घटना ने समूचे प्रशासन को हिला दिया कि किस तरह गरीब परिवारों की बच्चियों की खरीद-फरोख्त कर देह व्यापार में झोंका जाता है।
 
बांछड़ा समुदाय द्वारा की जा रही मासूम बच्चियों की खरीद-फरोख्त बेहद संगठित तरीके से की जाती है।  अमित शर्मा कहते है इसके लिए बाकायदा दलाल होते हैं, जो गरीब परिवारों की छोटी बच्चियों को ढूंढ़ते हैं और इन दुधमुंही बच्चियों को 2 से 10 हजारे में खरीद लिया जाता है। यह इन बांछड़ों का इन्वेसमेंट होता है। बाद में इन्हें ही देह व्यापार में झोंक दिया जाता है। यह खतरनाक काम मालवा में अब बडे कारोबार का रूप ले चुका है।
 
महू नसीराबाद हाईवे पर स्थित बांछडा डेरों की मुख्य सरगना से इस रिपोर्टर ने बात की जो 14 वर्षीय नाबालिग बच्ची से देहव्यापार कराने के आरोप मे गिरफतार भी चुकी है। उसने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वो इसे देह व्यापार के बदले खाना और कपड़े देती है। यह बयान चौंकाने वाला है। मालवा में गरीब घर की लडकियां महज रुपए कमाने का माध्यम बन गई हैं। उन्हें मात्र भोजन और कपड़ों के लिए अपना तन बेचना पड़ रहा है। 
 
कुल मिलाकर खरीद-फरोख्त कर लाई गई लड़कियां जिस्मफरोशी के अड्‍डों पर गुलामों से बदतर जीवन जी रही हैं। ये बच्चियां एक बार जब इनके चंगुल मे फंसती हैं तो फिर उनका निकलना असंभव होता है। यहां तक कि ऐसी डरावनी और खौफनाक दुनिया है जहां से निकलने की कोई लड़की सोच भी नहीं सकती। 
 
 
ऐसे मामले अनेक हैं : बीते वर्ष मंदसौर जिले के नारायणगढ़ थाना क्षेत्र के गर्रावद गांव में रहने वाली एक नाबालिग लड़की के साथ सुगना बाई नामक महिला द्वारा नशीली दवाएं खिलाकर उसके साथ दुष्कर्म करवाने का सनसनीखेज मामला सामने आया था। 
 
घटनाक्रम के बारे में बताते हुए नाबालिग ने बताया था कि वो सुगना बाई के घर जाती थी, जहां चाय में उसे नशीली दवा पिलाई जाती थी। उसके बाद उसके साथ लोग दुष्कर्म करते थे। ये शुरुआत थी जिस्मफरोशी के लिए आदी बनाने की। इस मामले में मंदसौर पुलिस ने आरोपी सुगना बाई के खिलाफ धारा 376 और लैंगिक शोषण अपराध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया।
 
ऐसा ही एक मामला नीमच के जीरन थाना क्षेत्र का है जिसमे 18 जुलाई 2014 को पुलिस ने महू-नसीराबाद हाईवे पर कमला बाई के डेरे पर दबिश देकर एक 14 साल की नाबालिग लडकी को बरामद किया। जिसमें गिरफ्तार कमलाबाई बांछड़ा ने स्वीकार किया था कि लड़की को वह 10 साल पहले मंदसौर से लेकर आई थी और इससे वह जिस्मफरोशी का धंधा करवा रही थी। कमलाबाई के इस बयान पुलिस ने उसको अनैतिक देहव्यापार और मानव तस्करी अधिनियम की विभिन्न धाराओं में गिरफतार किया था।
 
अब तक 70 से अधिक मामले : इस पूरे मामले में मालवा में मानव तस्करी के खिलाफ सालों से काम कर रहे पुलिस इस्पेक्टर अनिरुद्ध वाधिया कहते हैं कि दूसरे समाज की लड़कियों को खरीदकर उनको वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलना चौंकाने वाला है। नीमच और मंदसौर जिले में इस तरह के अब तक करीब 70 से अधिक मामले उजागर हो चुके हैं। 
 
वहीं सामाजिक संस्था कृति के संयोजक ओमप्रकाश चौधरी कहते हैं कि पूरे मालवा के तमाम डेरों में मौजूद बच्चियों का यदि डीएनए टेस्ट कराया जाए तो चौंकाने वाले मामले सामने आएंगे। मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के जिला संयोजक भानु दवे कहते हैं कि बांछड़ा समुदाय के नाम पर एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं दुकानदारी तो चलाती हैं, लेकिन इनकी दशा और दिशा सुधारने का कोई वास्तविक कार्य नहीं किया जाता। 

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