सुशासन के लिए नेताओं का भी कार्यकाल निश्चित हो : विवेक तनखा

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इंदौर। देश के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एवं राज्यसभा सदस्य विवेक तनखा ने कहा कि यदि देश में सुशासन को लाना है तो राजनेताओं का भी कार्यकाल होना चाहिए। हमारे देश में व्यवस्थाएं टूट रही हैं लेकिन फिर भी सभी चुप हैं। अब वक्त आ गया है जब हम जागें और समग्र रूप से सोचें। 
 
वे आज यहां जाल सभागार में अभ्यास मंडल की 7 दिनी ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला का शुभारंभ कर रहे थे। इस शुभारंभ अवसर पर समाज के लिए दी गई अपनी समग्र सेवाओं के लिए डॉक्टर एमसी नाहटा का अभ्यास मंडल द्वारा अभिनंदन किया गया। प्रारंभ में मध्य प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद अपने संबोधन में विवेक तनखा ने कहा कि मैं जहां अच्छाई का समर्थक हूं तो वहां बुराई मुझसे बर्दाश्त भी नहीं होती है, कभी भी कहीं भी दो टूक बोलने में मुझे हिचकिचाहट भी नहीं होती है। 
 
उन्होंने कहा कि जब 1920 में जवाहरलाल नेहरू देश के लिए लड़ते हुए जेल गए थे तब उन्होंने नहीं सोचा था कि आगे जाकर वे देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, इसके बाद भी उन्होंने अपने काम को जारी रखा। यही त्याग है। मैंने मदर टेरेसा द्वारा किए जा रहे कामों को जब गहराई से देखा तो समझ में आ गया कि जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं, वही त्यागी हैं ना कि वे त्यागी हैं जो जीना सिखाते हैं।                        
 
उन्होंने कहा कि हमें अपनी कार्यशैली और कार्य पद्धति दोनों में परिवर्तन लाना होगा। मेरा यह मानना है कि कोई भी व्यक्ति एक पद पर 10 साल, 15 साल या 20 साल तक बना हुआ रहकर अपना सर्वश्रेष्ठ देश व समाज को नहीं दे सकता है। यदि किसी भी व्यक्ति के माध्यम से किसी पर हमें सुशासन चाहिए तो यह आवश्यक है कि उसका कार्यकाल अधिकतम 10 वर्ष के लिए होना चाहिए। इसके बाद नई व्यक्ति को मौका दिया जाना चाहिए ताकि वह भी अपना सर्वश्रेष्ठ समाज को दे सके। 
 
उन्‍होंने कहा, दरअसल जब कोई भी व्यक्ति एक ही पद पर कई सालों तक बना रहता है तो फिर वह अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं देता है बल्कि चुनाव की तैयारी में लग जाता है और पद पर बने रहने की कोशिश में समय बिताता है। हमें देश में सुशासन चाहिए तो देश के राजनेता के कार्यकाल को भी निश्चित करना होगा। 
                   
देश के वर्तमान हालात की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पुलिसबल को जनता की सुरक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन आज हालात यह हैं कि कोई भी व्यक्ति थाने में जाने में डरता है। इस बल का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो गया है। इसके लिए हम किसी एक राजनीतिक दल को दोष नहीं दे रहे हैं बल्कि इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है। 
 
उन्होंने कहा कि आज पुलिसकर्मियों की हालत तो यह है कि 1 लाख नागरिकों की आबादी पर मात्र 112 पुलिसकर्मी हैं। जो पुलिसकर्मी हैं उनमें से भी आधे बीमार हैं यदि हम प्रशासन की बात करें तो प्रशासन की संवेदनशीलता का आलम यह है कि कोई भी आम आदमी आवेदन देता है तो उससे उसका काम नहीं हो सकता है। 
उन्होंने कहा कि हमें प्रशासन को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना होगा। देश के न्यायालयों में कितने मुकदमे लंबित हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल जिला न्यायालयों में ही 3 करोड़ मुकदमे लंबित पड़े हैं जबकि उच्च न्यायालय में 41 प्रतिशत न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं। हमारे देश में व्यवस्था पूरी तरह से टूट चुकी है। अब हमें अपनी इस आदत को बदलना पड़ेगा, तभी देश में सुशासन आ सकेगा। 
                      
इस मौके पर अतिथियों का स्वागत रामेश्वर गुप्ता, गौतम कोठारी, परवेज खान, अशोक कोठारी ने किया। कार्यक्रम का संचालन माला सिंह ठाकुर ने किया। अंत में प्रतीक चिन्ह डॉक्टर केडी भार्गव ने भेंट किया। 
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