महाभारत युद्ध के 5 ऐसे गुप्त रहस्य जिन्हें जानकर सोच में पड़ जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
हमने पहले आपको महाभारत युद्ध के 10 गुप्त रहस्य और महाभारत युद्ध के 18 गुप्त रहस्य बताए थे और अब जानिए महाभारत युद्ध के ऐसे 5 रहस्य जिन्हें जानकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर इस युद्ध को करने से किसका फायदा हुआ?
 
 
1.कौरव और पांडवों के बीच नहीं हुआ था महाभारत : आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाभारत में न तो कौरवों ने युद्ध लड़ा और न ही पांडवों ने। कौरव उसे कहते हैं जो कुरुवंश का हो। कुरुवंश के एकमात्र योद्धा भीष्म थे। उसी तरह जब पांडु का कोई पुत्र था ही नहीं तो कैसे पांचों कुंती पुत्र को पांडव कहेंगे?
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2. महाभारत में लड़ा था एकलव्य का पुत्र : श्रीकृष्‍ण के हाथों एक युद्ध में एकलव्य के वीरगति को प्राप्त होने या लापता होने के बाद उसका पुत्र केतुमान सिंहासन पर बैठता है और वह कौरवों की सेना की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ता है। महाभारत युद्ध में वह भीम के हाथ से मारा जाता है।
 
3. श्रीकृष्‍ण के पुत्र और महाभारत : महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्‍ण की नारायणी सेना कौरवों की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ी थी परंतु बलराम सहित श्रीकृष्‍ण के सभी पुत्रों के महाभारत के युद्ध में शामिल होने का जिक्र नहीं मिलता है। जबकि उस समय श्रीकृष्‍ण के पुत्र प्रद्युम्न और साम्ब सहित 16 महारथी पुत्र थे। 
 
4. कुल नाश हो गया था सभी का : युद्ध में सभी 100 कौरव और उनके सभी पुत्र मारे गए थे। दूसरी ओर युद्ध के अंत में पांडव पत्नी द्रौपदी के पांच पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन को अश्‍वत्थामा ने उसे वक्त मार दिया था जब वे युद्ध शिविर में सो रहे थे। पांचों पांडवों की दूसरी पत्नियों से उत्पन्न उनके और भी पुत्र में जिसमें से अर्जुन पुत्र अभिमन्यु मारा गया था। महाभारत के अनुसार पाडवों के कुल 11 पुत्र थे, लेकिन अभिमन्यु की मृत्यु के बाद ही उनका वंश नष्ट हो गया। वह इसलिए कि अभिमन्यु का विवाह महाभारत युद्ध के पहले राजा विराट की कन्या 'उत्तरा' के साथ हो चुका था। लेकिन उत्तरा ने एक मृत बालक को जन्म दिया था। जिसे श्रीकृष्ण ने पुनः जिंदा कर दिया। बस यही बालक बचा था जिसका नाम परीक्षित था। पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान्, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर आदि सभी मारे गए थे।
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5. ये योद्धा बच गए थे : लाखों लोगों के मारे जाने के बाद लगभग 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे जबकि महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था। युधिष्ठिर ने युद्ध के मैदान में ही सभी योद्धाओं का अंतिम क्रिया-कर्म करवाया था।
 
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद कृतवर्मा, कृपाचार्य, युयुत्सु, अश्वत्थामा, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, श्रीकृष्ण, सात्यकि आदि जीवित बचे थे। इसके अलावा धृतराष्ट्र, द्रौपदी, गांधारी, विदुर, संजय, बलराम, श्रीकृष्ण की पत्नियां आदि भी जीवित थे। युद्ध के बाद शाप के चलते श्रीकृष्ण के कुल में भी आपसी युद्ध शुरू हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के पुत्र आदि सभी मारे गए। बलराम ने यह देखकर समुद्र के किनारे जाकर समाधि ले ली। श्रीकृष्ण को प्रभाष क्षेत्र में एक बहेलिये ने पैर में तीर मार दिया जिसे कारण बनाकर उन्होंने देह त्याग दी। बचे लोगों ने कृष्ण के कहने के अनुसार द्वारका छोड़ दी और हस्तिनापुर की शरण ली। यादवों और उनके भौज्य गणराज्यों का अंत होते ही कृष्ण की बसाई द्वारका सागर में डूब गई।
 
धृतराष्ट्र और गांधारी ने पांडवों के साथ रहते-रहते 15 साल गुजार दिए तब एक दिन भीम ने धृतराष्ट्र व गांधारी के सामने कुछ ऐसी बातें कह दी जिसे सुनकर उनके मन में बहुत शोक हुआ और दोनों वन चले गए। उनके साथ गांधारी, कुंती, विदुर और संजय भी वन में रहकर तप करने लगे। विदुर और संजय इनकी सेवा में लगे रहते और तपस्या किया करते थे। एक दिन युधिष्ठिर के वन में पधारने के बाद विदुर ने देह छोड़कर अपने प्राणों को युधिष्ठिर में समा दिया।
 
फिर एक दूसरे दिन जब धृतराष्ट्र और अन्य गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती भागने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने उसी अग्नि में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। संजय ने यह बात तपस्वियों को बताई और वे स्वयं हिमालय पर तपस्या करने चले गए। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की मृत्यु का समाचार जब महल में फैला तो हाहाकार मच गया। तब देवर्षि नारद ने उन्हें धैर्य बंधाया। युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक सभी का श्राद्ध-कर्म करवाया और दान-दक्षिणा देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए संस्कार किए।

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