धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर, अजीब था इनका रिश्ता भीष्म और ऋषि वेदव्यास से

अनिरुद्ध जोशी
रामायण और महाभारत में भारत का प्राचीन इतिहास दर्ज है। महाभारत में रिश्ते और उनके द्वंद्व, जिसमें छल, ईर्ष्या, विश्वासघात और बदले की भावना का बाहुल्य है, लेकिन इसी में प्रेम-प्यार, अकेलापन और बलिदान भी है। परंतु इसमें एक खास बात यह भी है कि सभी के आपसी रिश्‍ते बड़े ही विचित्र हैं। आओ हम जानते हैं कि धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का भीष्म और वेदव्यास से क्या रिश्ता था? आओ जानते हैं इस उलझे हुए रिश्ते को।
 
 
राजा शांतनु ने गंगा से विवाह किया था। गंगा ने सात पुत्रों को जन्म दिया उन्हें पानी में बहा दिया। आठवें पुत्र को बहाने गई तो राजा शांतनु ने शर्त का उल्लंघन करके उसे बचा लिया। चूंकि शर्त का उल्लंघन हो चला था तो गंगा पुन: अपने लोक चली गई और शांतनु अकेले अपने पुत्र देवदत्त के साथ रह गए। यही पुत्र बड़ा होकर भीष्म कहलाया, परंतु इस बीच राजा शांतनु का दिल धीवर नामक एक मछुवारे की पुत्री सत्यवती पर आ गया जो कि निषाद समाज से थी।
 
 
सात्यवती ने पहले ही ऋषि पराशर के साथ अवैधरूप से समागम करके एक पुत्र को जन्म दे दिया था जिसका नाम कृष्‍णद्वैपयान था जो आगे चलकर वेदव्यास कहलाएं। बाद में सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु के समक्ष यह शर्त रखी की मेरी पुत्र का पुत्र ही हस्तिनापुर का युवराज बनाया जाए। राजा इस प्रस्ताव को सुनकर अपने महल लौट आए और सत्यवती की याद में व्याकुल रहने लगे। जब यह बात भीष्म को पता चली तो उन्होंने अपने पिता की खुशी के खातिर आजीवन ब्रह्मचारी रहने की शपथ ली और सत्यवती का विवाह अपने पिता से करवा दिया।
 
 
अब आप समझ ही गए होंगे कि भीष्म पितामह सत्यवती के पुत्र नहीं थे। वेद व्यास ही असलरूप में सत्यवती के पुत्र थे। फिर सत्यवती ने राजा शांतनु के सात समागम करके दो पुत्रों को जन्म दिया चित्रागंद और विचित्रवीर्य। बहुत ही कम आयु में चित्रागंद किसी रोग के कारण मर किया और अब बच विचित्रवीर्य जिसका विवाह भीष्म ने काशी की राजकुमारी अम्बिका और अम्बालिका से कर दिया। परंतु विचित्रवीर्य किसी पुत्रों का जन्म नहीं दे सकता और उसकी भी असमय ही मौत हो गई। तब फिर से धर्मसंकट खड़ा हो गया। मतलब यह कि सत्यवती से शांतनु का वंश नहीं चला।
 
 
ऐसे में सत्यवती ने भीष्म से कहा कि अब तुम अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर विवाह कर लो, परंतु भीष्म ने कहा कि मैं अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता। ऐसे में सत्यवती ने अपने ही पुत्र जो ऋषि पराशर के साथ समागम से जन्मा था उससे कहा कि अब तुम ही कुछ करो। तब वेदव्यासजी ने अपनी माता के आदेश से सबसे पहले विचित्रवीर्य की पत्नी अम्बिका को सामने आने को कहा। वह आई परंतु उसने किसी कारणवश आंखें बंद कर ली तो उनको एक जन्मजात अंधा पुत्र मिला जिसका नाम धृतराष्ट्र रखा गया। फिर विचित्रवीर्य की दूसरी पत्नी अम्बालिका सामने आए तो वह वेदव्यास को देखकर भयभित हो गई जिसके चलते उनको रोगग्रस्त्र पुत्र मिला जिसका नाम पांडु रखा गया। एक बार फिर अम्बिका को वेदव्यास के पास जाने के लिए कहा गया परंतु उसने अपनी जगह अपनी दासी को भेज दिया जिससे विदुर नामक पुत्र का जन्म हुआ।
 
 
कथा अनुसार सत्यवती के पुत्र वेदव्यास माता की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिए कि वे मेरे सामने से निर्वस्त्र होकर गुजरें जिससे कि उनको गर्भ धारण होगा।' सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी अम्बालिका गई, पर अम्बिका ने उनके तेज से डरकर अपने नेत्र बंद कर लिए जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देखकर भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास लौटकर माता से बोले, 'माता अम्बिका को बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किंतु नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा।'
 
 
यह जानकर के माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आकर कहा, 'माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदांत में पारंगत अत्यंत नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।' इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने चले गए।... अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संताने थीं।

 
इस तरह देखा जाए तो सत्यवती और पराशर मुनि का ही वंश चला। परंतु सोचने वाली बात यह कि अब किससे किसका क्या रिश्ता माना जाए। भीष्म पितामह धृतराष्ट्र और पांडु का यह सोचकर साथ दे रहे थे कि वे मेरे पिता के पुत्र के पुत्र हैं और वेदव्यास यह सोचकर साथ थे कि वे सभी मेरे पुत्र हैं। दूसरी ओर धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के पिता तो एक ही थे परंतु माताएं अलग अलग थी फिर भी विदुर को क्यों नहीं बराबरी का दर्जा मिला? अब यह भी सोचिये की आगे चलकर इन्हीं वेदव्यास की कृपा से धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों का जन्म हुआ।

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