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गांधारी क्यों अपने पुत्र दुर्योधन को निर्वस्त्र देखना चाहती थीं?

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अनिरुद्ध जोशी

गांधारी भगवान शिव की परम भक्त थीं। शिव की तपस्या करके गांधारी ने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि वह जिस किसी को भी अपने नेत्रों की पट्टी खोलकर नग्नावस्था में देखेगी, उसका शरीर वज्र का हो जाएगा।
 
भीम से युद्ध से पहले ऐसे में गांधारी ने अपनी आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन के शरीर को वज्र का करना चाहा, लेकिन कृष्ण के बहकावे के कारण दुर्योधन ने अपने गुप्तांग को पत्तों से छिपा लिया था जिसके चलते उसके गुप्तांग और जांघें वज्र के समान नहीं बन पाए।
घटना इस प्रकार है कि गांधारी दुर्योधन से कहती है कि मैं तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद तो नहीं दूंगी किंतु यह शिव भक्तिनी एक कवच पहना सकती है। हे पुत्र गंगा जाकर स्नान कर आओ और वहां से सीधे मेरे पास आओ किंतु ऐसे ही जैसे तुम जन्म के समय थे। तब दुर्योधन कहता है नग्न माताश्री? गांधारी कहती है मां के समक्ष कैसी लज्जा? जाओ स्नान करके निर्वस्त्र आओ। दुर्योधन कहता है जो आज्ञा माताश्री।
 
दुर्योधन के जाने के बाद श्रीकृष्ण गांधारी के कक्ष में जाते हैं। गांधारी कहती है कि आओ देवकीनंदन। ये तो तुम्हें याद ही होगा की 17 दिन पहले मैं सौ पुत्रों की मां थी और अब केवल एक ही पुत्र की मां हूं? श्रीकृष्ण हाथ जोड़कर कहते हैं कि हां माते। इन शवों में एक शव ऐसा भी है जिन्हें आप पहचानकर भी नहीं पहचानती हैं और वह शव है ज्येष्ठ कौंतेय का। तब गांधारी कहती है क्या युधिष्ठिर का? तब श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं माता। राधेय था ज्येष्ठ कौंतेय। यह सुनकर गांधारी दंग रह जाती है। श्रीकृष्ण कहते हैं इसलिए ये मत सोचिए माता कि आपके पुत्रों की ओर से मेरी बुआ का कोई पुत्र युद्ध नहीं कर रहा था।
 
यह राज बताकर श्रीकृष्ण शिविर से बाहर निकल कर जाने लगते हैं तब रास्ते में दुर्योधन नग्न अवस्था में ‍अपनी माता के शिविर में जाता हुआ श्रीकृष्ण को दिखाई देता है। श्रीकृष्ण हंसते हुए कहते हैं युवराज दुर्योधन आप और इस अवस्था में? तुम अपने वस्त्र कहां भूल आए? और तुम्हारा मुंह तो माता गांधारी के शिविर की ओर है। यह सुनकर दुर्योधन सकपका जाता है।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं क्या तुम अपनी माता के पास इस दशा में जा रहे हो? तब दुर्योधन कहता है कि माताश्री का यही आदेश था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं किंतु वो तुम्हारी माता है। उन्होंने अनेक बार तुम्हें गोदी में लिया होगा। तुम तो पुत्र हो लेकिन अब एक वयस्क पुत्र हो। और कोई वयस्क अपनी माता के सामने पूर्ण नग्न नहीं जाता युवराज। भरतवंश की तो ये परंपरा नहीं है। फिर श्रीकृष्ण हंसते हुए कहते हैं किंतु तुमने तो भरतवंश की परंपरा का पालन करना कभी का छोड़ दिया। जाओ जाओ माता को प्रतिक्षा नहीं करवाना चाहिए, जाओ। यह कहते हुए श्री हंसते हुए वहां से चले जाते हैं।
 
तब दुर्योधन सोच में पड़ जाता है और फिर वह अपने गुप्तांगों पर केल के पत्ते लपेटकर माता गांधारी के समक्ष उपस्थित हो जाता है और कहता है कि मैं स्नान करके आ गया माताश्री। तब गांधारी कहती है मैं क्षणभर के लिए अपनी आंखों पर बंधी ये पट्टी खोलने जा रही हूं। मैंने तुम्हारे भाइयों को तो नहीं देखा। मैं तुम्हें आज देखूंगी।
 
ऐसा कहकर गांधारी अपनी आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन को देखती है तो उसकी आंखों से प्रकाश निकलकर दुर्योधन के शरीर पर गिरता है। बाद में गांधारी देखती है कि ये क्या दुर्योधन ने तो अपने गुप्तांग छुपा रखे हैं। तब वो कहती है ये तुमने क्या किया पुत्र। तब दुर्योधन कहता है कि मैं आपके सामने नग्न कैसे आता माताश्री? तब गांधारी कहती है किंतु मैंने तो तुम्हें यही आदेश दिया था। 
दुखी होकर वह पुन: अपनी आंखों की पट्टी बांध लेती हैं। फिर वह कहती हैं, तुम्हारे शरीर का वह भाग जिस पर मेरी दृष्टि पड़ी ही नहीं दुर्बल रह गया पुत्र। शरीर का शेष भाग वज्र का हो गया। यदि तुम बड़ों का आदेश मानने की परंपरा भूले ना होते तो अजेय हो गए होते पुत्र।
 
यह सुनकर दुर्योधन कहता है कि तो मैं ये केले के पत्ते हटा देता हूं माताश्री। तब गांधारी कहती है कि मैं कोई मायावी नहीं हूं। मैंने उस एक दृष्टि में अपनी भक्ति, अपना सतित्व और अपनी ममता की सारी शक्ति मिला दी थी पुत्र।
 
तब दुर्योधन कहता है कि आप चिंता न करें माताश्री। मैं कल भीम से गया युद्ध करूंगा और गदा युद्ध के नियम के अनुसार कमर के नीचे प्रहार करना वर्जित है। कल में उसको इतनी मार मारूंगा कि वह घबराकर विरगति को प्राप्त हो जाएगा। फिर चाहे इस युद्ध का अंत कुछ भी हो।...अंत में भीम दुर्योधन की जंघा उखाड़कर उसका वध कर देता है।

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