dipawali

श्री कृष्ण से जुड़े 5 विवाद, जानकर रह जाएंगे हैरान

अनिरुद्ध जोशी
भगवान श्रीकृष्ण धर्म के केंद्र में हैं। उन्हें विष्णु का अवतार और धर्म संस्थापक कहा जाता है। विष्णु के सभी अवतारों का अपना अलग कार्य, उद्देश्य और चरित्र रहा है। जैसे परशुराम आवेश अवतार है तो श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार। इसी तरह श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। इस अवतार के साथ कई विवाद भी जुड़े होने का दावा किया जाता रहा है। आलोचक ऐसा करते हैं। आओ जानते हैं कि वे कौन से 5 विवाद हैं?
 
1. छली कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण को बहुत से लोग छली या कपटी कहते हैं, जो कि बहुत ही गलत है। राजनीति और युद्ध में कूटनीति का सहारा लेना छल नहीं होता। छल का अर्थ होता है धोखा। चाणक्य का एक वाक्य है कि 'यदि अच्छे उद्देश्य के लिए गलत मार्ग का चयन किया जाए तो यह अनुचित नहीं होगा। मार्ग कैसा भी हो लेकिन उद्देश्य सत्य और धर्म की जीत के लिए ही होना चाहिए।'
 
दरअसल, छल और भेद नीति में बहुत फर्क होता है। छल एक धोखा है जबकि भेद एक युक्ति है। जब युद्ध में सारे नियम तोड़कर कौरव पक्ष ने भगवान श्रीकृष्ण के भानजे अभिमन्यु को निर्ममतापूर्वक मार दिया तो भगवान श्रीकृष्ण को भी नियम तोड़ने का अधिकार स्वत: ही मिल गया। उन्होंने फिर नियमों को ताक में रख दिया और एक के बाद एक वीर योद्धाओं को मरवा दिया। पहले जयद्रथ को युक्तिपूर्वक मारा गया, फिर भीष्म, द्रोण और फिर कर्ण को मारा गया।
 
चूंकि श्रीकृष्ण भविष्य जानते थे इसलिए उन्होंने भविष्य को बदलने के लिए पहले दुर्योधन के शरीर को वज्र के समान नहीं होने दिया, कर्ण के कवच और कुंडल हथिया लिए और बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया। यदि वे यह कार्य नहीं करते तो युद्ध जीतना मुश्किल होता।
 
2. क्या श्रीकृष्ण रसिक थे? : विरोधी लोग कहते हैं कि श्रीकृष्ण मनचले थे। दरअसल, श्रीकृष्ण के जीवन को नहीं जानने वाले ही ऐसा कहते हैं। श्रीकृष्ण की ऐसी छवि भक्ति और रीतिकाल के कवियों ने बनाई थी। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होते ही उन्हें अपने माता-पिता से दूर गोकुल में यशोदा और नंदबाबा के घर रहना पड़ा, जहां उन्हें ढूंढते हुए कंस की सेना पहुंच गई। तब गोकुल से श्रीकृष्ण को नंदगांव ले जाना पड़ा।
 
नंदगांव में भी कंस के खतरे के चलते ही नंदबाबा कृष्ण को लेकर वहां से दूसरे गांव वृंदावन चले गए थे। नंद मथुरा के आसपास गोकुल और नंदगांव में रहने वाले आभीर गोपों के मुखिया थे। यहीं पर वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था। मथुरा से गोकुल की दूरी महज 12 किलोमीटर है। वृंदावन मथुरा से 14 किलोमीटर दूर है।
 
श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराण के अनुसार कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुम्बियों और सजातियों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे, जहां बरसाने के लोग भी थे। मान्यता है कि यहीं पर वृंदावन में श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे।
 
इससे पहले कृष्ण की राधा से मुलाकात गोकुल के पास संकेत तीर्थ पर हुई थी। इसके बाद अंतिम मुलाकात उनकी द्वारिका में हुई थी। वृंदावन में ही श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात होली आदि तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे।
 
यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है। उस वक्त कृष्ण 7 साल के थे और राधे 12 की, उनके साथ उन्हीं की उम्र के बच्चों की एक बड़ी टोली रहा करती थी, जो गांव की गलियों में धमाचौकड़ी मचाया करती थी। बच्चों की इस धमाचौकड़ी को पुराणों और बाद में भक्तिकाल के कवियों ने प्रेमलीला में बदल दिया।
 
11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे और वहां उन्होंने कंस का वध कर दिया जिसके चलते मगध और भारत का सबसे शक्तिशाली सम्राट उनकी जान का दुश्मन बन गया, क्योंकि कंस उसका दामाद था। अब सोचिए उसके बाद तो श्रीकृष्ण कई वर्षों तक जरासंध से लड़ते-भागते रहे फिर सामने महाभारत का युद्ध आकर खड़ा हो गया। ऐसे में रासलीला कैसे और कब की होगी?
 
3. श्रीकृष्ण की 16,000 रानियां थीं? : कृष्ण की जिन 16,000 पटरानियों के बारे में कहा जाता है, दरअसल वे सभी भौमासर जिसे नरकासुर भी कहते हैं, के यहां बंधक बनाई गई महिलाएं थीं जिनको श्रीकृष्‍ण ने मुक्त कराया था। ये महिलाएं किसी की मां थीं, किसी की बहन तो किसी की पत्नियां थीं जिनको भौमासुर अपहरण करके ले गया था। महाभारत में इसका जिक्र नहीं मिलता कि श्रीकृष्ण की राधा नामक प्रेमिका थीं और उनकी 16,000 पटरानियां थीं।
 
दरअसल, पुराणों के अनुसार ये सभी अपहृत नारियां थीं या फिर भय के कारण उपहार में दी गई थीं और किसी और माध्यम से उस कारागार में लाई गई थीं। वे सभी भौमासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं। सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर द्वारा बंधक बनकर रखी गई इन नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया।
 
ऐसी स्थिति में उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को ही अपना सबकुछ मानते हुए उन्हें पति रूप में स्वीकार किया, लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें इस तरह का नहीं मानते थे। उन सभी को श्रीकृष्ण अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए। वहां वे सभी महिलाएं स्वतंत्रपूर्वक अपनी इच्छानुसार सम्मानपूर्वक द्वारका में रहती थीं, महल में नहीं। वे सभी वहां भजन, कीर्तन, ईश्वर भक्ति आदि करके सुखपूर्वक रहती थीं।
 
उन्हें वहां किसी भी पुरुष से विवाह करने की अनुमति थी और उनमें से कुछ ने ऐसा किया भी था। द्वारका एक भव्य नगर था, जहां सभी समाज और वर्ग के लोग रहते थे। ऐसे में यह सोचना होगा कि यह सचमुच ऐसा था या कि यह एक झूठ है?
 
4. राधा और कृष्ण क्या सचमुच प्रेमी-प्रेमिका थे? : क्या राधा, भगवान कृष्ण की प्रेमिका थीं? यदि थीं तो फिर कृष्ण ने उनसे विवाह क्यों नहीं किया? कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में। नंदगांव और बरसाने से मथुरा लगभग 42-45 किलोमीटर दूर है। उल्लेखनीय है कि महाभारत में 'राधा' के नाम का उल्लेख नहीं मिलता है।
 
यह सच है कि कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में राधा का नाम नहीं के बाराबर ही है। यदि भगवान कृष्ण के जीवन में राधा का जरा भी महत्व था, तो क्यों नहीं राधा का नाम कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में मिलता है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि वेद व्यासजी ने जान-बूझकर श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम-प्रसंग को नहीं लिखा?
 
राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। वृषभानु वैश्य थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा, कृष्ण की मित्र थीं और उसका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। उस जमाने में स्त्री का विवाह किशोर अवस्था में ही कर दिया जाता था। बरसाना और नंदगाव के बीच 4 मील का फासला है।
 
महाभारत के सभी प्रमुख पात्र भीष्म, द्रोण, व्यास, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदि श्रीकृष्ण के महान चरित्र की प्रशंसा करते थे। उस काल में भी परस्त्री से अवैध संबंध रखना दुराचार माना जाता था। यदि श्रीकृष्ण का भी राधा नामक किसी औरत से संबंध हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर भी अंगुली उठाई जाती?
 
बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। बरसाने से मात्र 4 मील पर नंदगांव है, जहां श्रीकृष्ण के सौतेले पिता नंदजी का घर था। होली के दिन यहां इतनी धूम होती है कि दोनों गांव एक हो जाते हैं। बरसाने से नंदगाव टोली आती है और नंदगांव से भी टोली जाती है। कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था।
 
राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है। बरसाना गांव के पास 2 पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं।
 
यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते थे। अब यह समझने के बाद जरूरी है इस पर शोध करना कि राधा, भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका थी या नहीं? हालांकि यदि वे उनकी प्रेमिका थीं, तो इस पर विवाद नहीं होना चाहिए। ऐसा भी कहा जाता है कि जयदेव ने पहली बार राधा का जिक्र किया था और उसके बाद से श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम जुड़ा हुआ है।
 
5. श्रीकृष्ण युद्ध की शिक्षा देते हैं? : बहुत से लोग यह आरोप लगाते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का पक्ष लेते हैं और वे युद्ध की ही शिक्षा देते हैं। इसके लिए वे कहते हैं कि उन्होंने अर्जुन को युद्ध करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया था। इसका मतलब यह कि श्रीकृष्ण युद्ध के पक्षधर हैं, शांति के नहीं। इस मामले को लेकर रशिया में गीता पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
 
दरअसल, गीता में सिर्फ युद्ध की ही बातें नहीं हैं। उसमें मनुष्‍य जीवन के हर पहलुओं को छुआ गया है, साथ ही आध्यात्मिक रास्ते का जिक्र भी किया गया। जिन्होंने गीता और महाभारत पढ़ी है, वे जानते हैं कि उसमें युद्ध तो संपूर्ण जीवन का एक छोटा-सा पार्ट है।
 
यह सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने कौरव और पांडवों के बीच सुलह और शांति कायम करने के लिए कितना प्रयास किया था लेकिन दुष्‍ट दुर्योधन माना ही नहीं। अंत में वे मात्र 5 गांव मांगने गए थे ता‍कि इसे मसला हल हो जाए और युद्ध टाला जा सके, क्योंकि वे भी जानते थे कि युद्ध कितना भयावह हो सकता है।
 
लेकिन जब युद्ध तय ही हो जाता है, तो फिर युद्ध से पीछे हटना कायरता ही होगी। यही बात श्रीकृष्ण, अर्जुन को हर तरह से समझाते हैं। जब नहीं समझ में आती है तो फिर वे अपना विश्‍वरूप दिखाकर कहते हैं कि 'न कोई मरता है और न कोई मारता है, सभी मेरी इच्छा से मरते और जन्म लेते हैं। सभी निमित्त मात्र हैं। यह समझता है कि वह खुद कर्ता है तो वह भ्रम में जी रहा है। मरने से डरने वाला कभी भी जीवन और मोक्ष को प्राप्त नहीं होता इसलिए युद्ध से क्या डरना? आज मरे या कल, मरना तो सभी को है।'
 
सचुमच ही श्रीकृष्ण युद्ध के कभी पक्षधर नहीं रहे लेकिन यदि युद्ध थोपा ही जाए तो फिर क्या करें?

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Mahavir Nirvan Diwas 2025: महावीर निर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है? जानें जैन धर्म में दिवाली का महत्व

Diwali Muhurat 2025: चौघड़िया के अनुसार जानें स्थिर लग्न में दीपावली पूजन के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त

Bhai dooj 2025: कब है भाई दूज? जानिए पूजा और तिलक का शुभ मुहूर्त

Govardhan Puja 2025: अन्नकूट और गोवर्धन पूजा कब है, जानिए पूजन के शुभ मुहूर्त

Diwali Vastu Tips: वास्तु शास्त्र के अनुसार दिवाली पर कौन सी चीजें घर से निकालें तुरंत?, जानें 6 टिप्स

सभी देखें

धर्म संसार

20 October Birthday: आपको 20 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 20 अक्टूबर, 2025: सोमवार का पंचांग और शुभ समय

Aaj Ka Rashifal: आज का दैनिक राशिफल: मेष से मीन तक 12 राशियों का राशिफल (19 अक्टूबर, 2025)

19 October Birthday: आपको 19 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 19 अक्टूबर, 2025: रविवार का पंचांग और शुभ समय

अगला लेख