कृष्ण जब बन गए कालिका माता, जानिए ऐसे ही पांच रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
अवतार भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व जितना विवादित है उतना ही रहस्यमयी भी है। वैसे तो उनके बारे में कई रहस्य छुपे हुए हैं लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे पांच रहस्य जिन्हें संभवत: आप नहीं जानते होंगे।
 
 
पहला रहस्य : वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के 8वें अवतार हैं लेकिन देवी और कालिका पुराण अनुसार वे विष्णु के नहीं बल्कि कालिका माता के अवतार थे। श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृंदावन में एक ऐसा मंदिर विद्यमान है, जहां कृष्ण की काली रूप में पूजा होती है। उन्हें काली देवी कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि जब राधा का विवाह अयंग नामक गोप के साथ होना तय हुआ था तब व्याकुल होकर राधा, 'कृष्ण-कृष्ण' पुकारने लगी थीं। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें काली रूप में दर्शन देकर उनके दु:ख को दूर किया था। उसी दिन से श्रीकृष्ण की काली के रूप में पूजा होती है।
 
 
देवी पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण, विष्णु के नहीं बल्कि मां काली के अवतार थे, वहीं उनकी प्रेमिका राधा, देवी लक्ष्मी का स्वरूप नहीं, अपितु महादेव का अवतार थीं। देवी पुराण के अनुसार भगवान महादेव वृषभानु पुत्री राधा के रूप में जन्मे। साथ ही श्रीकृष्ण की 8 पटरानियां रुक्मिणी, सत्यभामा आदि भी महादेव का ही अंश थीं। पार्वती की जया-विजया नामक सखियां श्रीदाम और वसुदाम नामक गोप के रूप अवतरित हुईं। देवी पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने बलराम तथा अर्जुन के रूप में अवतार लिया। पांडव जब वनवास के दौरान कामाख्या शक्तिपीठ पहुंचे तो वहां उन्होंने तप किया। इससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हुईं और उन्होंने पांडवों से कहा कि मैं श्रीकृष्ण के रूप में तुम्हारी सहायता करूंगी तथा कौरवों का विनाश करूंगी।
 
 
दूसरा रहस्य : भगवान श्रीकृष्ण की परदादी मारिषा एवं सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) दोनों ही नाग जनजाति की थीं। भगवान श्रीकृष्ण की माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण से जेल में बदली गई यशोदा पुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जाती हैं। श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है इसीलिए उनका अन्य नाम कृष्णानुजा है। इसका अर्थ यह कि वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं। इस बहन ने श्रीकृष्ण की जीवनभर रक्षा की थी। इसे ही योगमाया कहते हैं।
 
 
गर्ग पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की मां देवकी के 7वें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था जिससे बलराम का जन्म हुआ। बाद में योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था। इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया, जो कंस के प्रमुख मल्ल माने जाते थे। श्रीमद्भागवत पुराण में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है जबकि शिवपुराण में उन्हें सती का अंश बताया गया है।
 
 
तीसरा रहस्य : भगवान श्रीकृष्ण की मांसपेशियां बहुत ही कोमल थीं, परंतु युद्ध के समय वे उसे कठोर और विस्तॄत कर लेते थे इसलिए सामान्यत: लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था। शरीर की यही विशेषता कर्ण और द्रौपदी के शरीर में भी थी।

 
इसी तरह प्रचलित जनश्रुति के अनुसार माना जाता है कि उनके शरीर से मादक गंध निकलती रहती थी। इस गंध को वे अपने गुप्त अभियानों में छुपाने का उपक्रम करते थे। यही खूबी द्रौपदी में भी थी। माना जाता है कि श्रीकृष्‍ण के शरीर से निकलने वाली गंधी गोपिकाचंदन और कुछ-कुछ रातरानी की सुगंध से मिलती-जुलती थी।
 
 
चौथा रहस्य : भगवान श्रीकृष्ण को कलारीपट्टु का प्रथम आचार्य माना जाता है। कृष्ण ने जिस कलारीपट्टु की नींव रखी थी, वो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। इस आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया गया था। इसी कारण श्रीकृष्ण की 'नारायणी सेना' भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी। इस सेना ने कौरवों की ओर से लड़ाई लड़ी थी। डांडिया रास का आरंभ भी श्रीकृष्ण ने किया था। आजकल नवरात्रि में इसकी खूब धूम रहती है।
 
 
पांचवां : भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव, बरसाना आदि जगहों पर बीता। द्वारिका को उन्होंने अपना निवास स्थान बनाया और सोमनाथ के पास स्थित प्रभास क्षेत्र में उन्होंने देह छोड़ दी। एक दिन वे इसी प्रभास क्षेत्र के वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे थे, तभी 'जरा' नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी। यह जरा नामक भील अपने पिछले जन्म में सुग्रीव का भाई बालि था जिसे प्रभु श्रीराम ने छुपकर मारा था। उसी का बदला इस जन्म में निकला। जनश्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब देह त्याग किया तब उनकी देह के केश न तो श्वेत थे और न ही उनके शरीर पर किसी प्रकार से झुर्रियां पड़ी थीं अर्थात वे 119 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसे ही थे।
 
 
 

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